Wednesday, June 29, 2011

निगमानंद की मौत पर राजनीति गरमाई


गंगा में खनन व स्टोन क्रेशर के खिलाफ अनशन करते हुए जान देने वाले स्वामी निगमानंद का मामला उत्तराखंड सरकार के लिए मुसीबत बन गया है। कांग्रेस ने तो राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा किया ही है, राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संरक्षक के एन गोविंदाचार्य ने भी कई सवाल खड़े किए हैं। दोनों ने ही मामले की सीबीआइ जांच की मांग की है। भाजपा नेता उमा भारती ने भी प्रशासन की भूमिका स्पष्ट करने को कहा है। हालांकि भाजपा ने अपनी सरकार का पक्ष लेते हुए कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि वह केवल सरकार को अस्थिर करना चाहती है। बाबा रामदेव के मामले में कांग्रेस को कठघरे में खड़ी करने वाली भाजपा अब भाजपा को निगमानंद की मौत पर सवालों का जवाब देते नहीं बन रहा है। हालांकि पार्टी ने इस मामले में अपने विरोधियों को करारा जवाब देते हुए कहा है कि राज्य सरकार इस मामले में किसी भी तरह की जांच के लिए तैयार है। राज्य सरकार स्वामी निगमानंद के लगातार संपर्क में थी और उसने उन्हें बेहतर चिकित्सीय सुविधाएं देने व उनकी मांगों के लिए पूरी कोशिश की। राज्य सरकार में मंत्री मदन कौशिक पूरी तरह से निगमानंद के संपर्क में थे। पार्टी प्रवक्ता निर्मला सीतारमन ने कहा है कि स्वामी निगमानंद का अनशन राज्य की निशंक सरकार के खिलाफ नहीं, बल्कि निशंक सरकार के निर्णय पर हाईकोर्ट की रोक के खिलाफ था। हालांकि दूसरी तरफ कांग्रेस प्रवक्ता जयंती नटराजन ने स्वामी निगमानंद की मौत पर राज्य की भाजपा सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए सीबीआइ जांच की मांग की है। नटराजन ने कहा कि निगमानंद को जहर देने का मामला सामने आया है जो बेहद गंभीर है। राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता हरक सिंह रावत ने भी निगमानंद की मौत के लिए राज्य की निशंक सरकार को दोषी ठहराया है। भाजपा को कांग्रेस से ज्यादा झटका उमा भारती व गोविंदाचार्य के बयानों से लगा है। उमा भारती ने इस मामले में राज्य प्रशासन की भूमिका पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने न्याय विभाग की भूमिका व मातृ सदन में स्वामी से मिलने-जुलने वालों की भूमिका भी साफ करने को कहा है। उमा भारती निगमानंद के अनशन के बाद से लगातार उनके संपर्क में थीं। दूसरी तरफ गोविंदाचार्य ने भी इस मामले की सीबीआइ जांच की मांग करते हुए राज्य सरकार से मांग की है कि वह जहर दिए जाने वाले मामले में दर्ज रिपोर्ट के आरोपियों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करे। अनशन के दौरान कोमा में जाना, जांच के दौरान खून में जहर के अंश का पता चलना और उसे दूर किए जाने के लिए दवाइयां दिया जाना इस मामले की कलई खोलता है.

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