नई दिल्ली आधी रात में पुलिस कार्रवाई कर अनशन पर बैठे बाबा रामदेव और उनके समर्थकों को रामलीला मैदान से हटाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट और मानवाधिकार आयोग ने केंद्र व दिल्ली सरकार से जवाब-तलब किया है। वहीं राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी दिल्ली पुलिस से पूरे मामले की रिपोर्ट मांगी है। सुप्रीमकोर्ट के न्यायमूर्ति बीएस चौहान व स्वतंत्र कुमार की पीठ ने अखबारों में आई खबरों पर स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्रीय गृह सचिव, दिल्ली के मुख्य सचिव व दिल्ली पुलिस कमिश्नर को नोटिस जारी किए। कोर्ट ने पूछा कि ऐसी कौन सी परिस्थितियां थीं कि आधी रात में पुलिस कार्रवाई करनी पड़ी। कोर्ट ने तीनों अधिकारियों को दो सप्ताह में निजी तौर पर हलफनामा दाखिल कर जवाब देने को कहा है। इससे पहले कोर्ट ने रामलीला मैदान की घटना पर कार्रवाई की मांग वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इंकार कर दिया। जैसे ही याचिकाकर्ता वकील अजय अग्रवाल ने पीठ के समक्ष अपनी याचिका का जिक्र किया तो पीठ ने कहा कि वे भी घटना से सकते में हैं, लेकिन इस याचिका पर सुनवाई नहीं की जा सकती क्योंकि याचिका सुनवाई के लिए आने से पहले मीडिया में लीक हो चुकी है। कोर्ट ने मामले को जुलाई के दूसरे सप्ताह में फिर सुनवाई के लिए लगाए जाने का निर्देश दिया है। अग्रवाल ने अपनी याचिका में मांग की थी कि कोर्ट रामलीला मैदान की घटना और बाबा व सरकार के बीच हुई बातचीत का सारा रिकार्ड कोर्ट में तलब करे। इतना ही नहीं याचिका में पूरे प्रकरण पर श्वेतपत्र जारी कराने की भी मांग की गई थी। अग्रवाल ने अपनी याचिका में प्रधानमंत्री सहित नौ लोगों को प्रतिवादी बनाया था। इसी तरह मानवाधिकार आयोग ने भी केंद्रीय गृह सचिव, दिल्ली के मुख्य सचिव और दिल्ली पुलिस कमिश्नर को नोटिस जारी कर पूछा है कि मध्यरात्रि में इस तरह की कार्रवाई क्यों जरूरी थी। आयोग ने भी दो हफ्ते के अंदर घायलों व लापता लोगों की संख्या के बाबत जवाब देने को कहा है। राष्ट्रीय महिला आयोग ने दिल्ली पुलिस को एक पत्र जारी कर इस मामले में 15 दिन में जवाब मांगा है। आयोग की अध्यक्ष यास्मीन अबरार ने भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष स्मृति ईरानी से मुलाकात के बाद पत्रकारों को यह जानकारी दी। स्मृति ईरानी ने आयोग जाकर महिलाओं के संवैधानिक अधिकार के हनन की जांच के लिए समिति बनाने की मांग की थी। उन्होंने टीवी पर दिखाए गए चित्रों का हवाला देते हुए आरोप लगाया था कि शुरू में अधिकतर पुरुष पुलिसकर्मी ही शिविर में आए थे और उन्होंने महिलाओं को भी नहीं बख्शा।
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