Tuesday, March 20, 2012

अगर रेल किराया बढ़ाने पर मेरा इस्तीफा लिया गया तो ‘दादा’ का क्यों नहीं : दिनेश


रेल मंत्री पद से इस्तीफा दे चुके तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिनेश त्रिवेदी का मन यह मानने को तैयार ही नहीं है कि उनसे मात्र इसलिए इस्तीफा लिया गया कि उन्होंने रेल किराया में वृद्धि का प्रस्ताव किया। उन्होंने कहा कि अगर रेल किराया बढ़ाने पर उन्हें हटाया गया तो वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी को भी हटाया जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने भी तो आम बजट में विभिन्न वस्तुओं के दाम महंगे किए हैं। त्रिवेदी के चेहरे पर आज किसी तरह का तनाव नहीं दिखा और एक तरह से वे दार्शनिक मुद्रा में नजर आए। क्या आपको मोहरा बनाया गया, इस सवाल पर त्रिवेदी ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि मोहरा बनाया गया। पार्टी की लीडर (ममता बनर्जी) ने कहा कि इस्तीफा दो तो मैंने यह नहीं पूछा क्यों और इस्तीफा दे दिया। मैंने किसी का भरोसा नहीं तोड़ा।यह पूछे जाने पर कि उन्होंने क्या गलती की थी, त्रिवेदी ने कहा, ‘यह सवाल लोग पूछें। एक अनुशासित सिपाही के नाते मुझे यह सवाल नहीं करना चाहिए। रेलवे राष्ट्रीय संपदा है और एक अनुशासित सिपाही के नाते मुझे अनुशासन का पालन करना होगा।
क्या वह रेलवे को मझधार में छोड़कर जा रहे हैं, इस सवाल पर उन्होंने कहा, ‘व्यवस्था ऐसी ही है। मैं किसी को दोष नहीं दे रहा हूं और मुझे किसी से कोई शिकायत भी नहीं है। हम व्यवस्था का अंग हैं।त्रिवेदी ने कहा, ‘मैंने अपना काम किया, मुझे कोई अफसोस नहीं है। प्रधानमंत्री सहित हर व्यक्ति ने मुझे सहयोग दिया। मुझे खुशी है कि मैंने अपना कर्तव्य निभाया।दिनेश त्रिवेदी ने नए रेल मंत्री मुकुल राय पर कोई भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा, ‘मुझे इसमें नहीं पड़ना है। पार्टी के ही लोगों द्वारा षडयंत्र की संभावना के सवाल पर त्रिवेदी ने कहा, ‘मैं इस बात में भी नहीं पड़ना चाहता कि मेरे साथ कोई षडयंत्र हुआ।
रेल भवन में उनके अनुभव के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘यह एक बेहतर अनुभव रहा। अपने कार्यकाल के अंत में मैं एक बहुत संतुष्ट व्यक्ति के तौर पर विदा ले रहा हूं। मैं रेल परिवारके 14 लाख सदस्यों के स्नेह और प्यार से अभिभूत हूं। ज्ञान, अनुभव और भावनात्मक स्तर पर मैं एक बहुत समृद्ध व्यक्ति के तौर पर विदा ले रहा हूं।
रेल बजट, जिसकी वजह से उन्हें अपना मंत्री पद छोड़ना पड़ा, के बारे में त्रिवेदी ने कहा कि एक बार बजट जब संसद में पेश कर दिया जाता है तो फिर वह संसद का ही हो जाता है और संसद भारत की जनता की है। उन्होंने कहा, ‘मेरे साथ अहम की कोई समस्या नहीं है। मैंने केवल सही समय पर सही काम करना चाहा था।
लोकसभा में सोमवार को ज्यादातर समय दिनेश त्रिवेदी सत्ता पक्ष में कांग्रेस सदस्यों के साथ ही बैठे। फिर कुछ देर बाद वह आगे आ गए और गृह मंत्री के पास बैठे। कुछ कांग्रेस सदस्यों ने उनसे हाथ मिलाया और उनकी पीठ ठोंकी।
कहा, मेरे साथ अहं की कोई समस्या नहीं है। मैंने केवल सही समय पर सही काम करना चाहा था रेलवे राष्ट्रीय संपदा है और एक अनुशासित सिपाही के नाते मुझे अनुशासन का पालन करना होगा पार्टी की लीडर ने कहा कि इस्तीफा दो तो मैंने यह नहीं पूछा क्यों और इस्तीफा दे दिया

Wednesday, March 14, 2012

गहने-बंगले-बैंक बैलेंस-रिवाल्वर पर गाड़ी नहीं


आठ साल पहले की ही तो बात है। बसपा प्रमुख मायावती की माली हैसियत सिर्फ 11 करोड़ रुपये की थी, लेकिन 2012 में वह 111 करोड़ रुपये की हैसियत वाली बन गई हैं। यह बात खुद मायावती ने तीन चुनावों (2004 में राज्यसभा, 2010 में विधान परिषद और 2012 में राज्यसभा) के वक्त नामांकन पत्र के साथ अपनी संपत्तियों को लेकर जो हलफनामा दाखिल किया है उससे सामने आई है। 2004 में मायावती के पास लखनऊ में सरकारी मकान के अलावा दिल्ली में बस एक अदद मकान हुआ करता था। उसकी कीमत उस वक्त यही कोई पौने दो करोड़ रुपये के करीब थी, लेकिन आज बसपा प्रमुख दिल्ली और लखनऊ में चार-चार आलीशान भवनों की मालकिन बन चुकी हैं, जिनकी कीमत 96 करोड़ रुपये से ज्यादा है। दिल्ली के महंगे इलाकों में से एक कनाट प्लेस में मायावती के पास दो भवन हैं (बी-34 का ग्राउंड फ्लोर और फ‌र्स्ट फ्लोर)। मायावती ने अपने हलफनामे में इनमें से एक की वर्तमान कीमत नौ करोड़ 39 लाख और दूसरे की 9 करोड़ 45 लाख रुपये बताई है। दिल्ली में एसपी मार्ग पर भी उनका एक आवास है, जिसकी कीमत उन्होंने 61 करोड़ 86 लाख रुपये बताई है। लखनऊ में 9, माल एवन्यू उनका निजी आवास हो गया है और उसकी कीमत 15 करोड़ रुपये बताई गई है। आठ साल में माया का बैंक बैलेंस भी बढ़ा है। 2004 के चुनाव के वक्त उनके बैंक एकाउंट में नौ करोड़ 68 लाख रुपये थे। 2010 में वह 11 करोड़ रुपये हो गया और 2012 में 13 करोड़ 95 लाख रुपये। माया के पास आज की तारीख में दस लाख 20 हजार रुपये नकद हैं। मायावती के पास अपनी कोई गाड़ी नहीं है, लेकिन उनके पास जेवर खूब हैं। 2004 में उनके पास सिर्फ 30 लाख रुपये के जेवर थे, लेकिन आज उनके पास एक करोड़ रुपये से ज्यादा के गहने हैं। सोना यही कोई 1034 ग्राम है, हीरा 380 रत्ती है, जिनकी लागत 96 लाख 53 हजार रुपये थी। एक चांदी का डिनर सेट भी है, जिसका वजन 18 किलो के करीब है, इसके अलावा 15 लाख रुपये की अन्य संपत्तियां भी हैं। उनके पास एक रिवाल्वर भी है।

यूपी विधानसभा में 47 फीसदी दागी दो तिहाई सदस्य करोड़पति


उत्तर प्रदेश के 403 विधायकों में 189 यानी कुल 47 फीसदी ऐसे हैं, जिनके खिलाफ मुकदमे चल रहे हैं। इनमें 98 ऐसे हैं जिन पर गंभीर अपराधों के तहत मुकदमे दर्ज हैं। वहीं दो तिहाई से कुछ ज्यादा यानी 271 विधायक करोड़पति हैं। उत्तर प्रदेश इलेक्शन वॉच ने रविवार को पत्रकार वार्ता में नवनिर्वाचित विधायकों के हलफनामे का विश्लेषण करते हुए संख्या जारी की। पिछली बार 140 दागी थे। सूबे में आपराधिक मामलों में लिप्त विधायकों की संख्या में 12 फीसदी की वृद्धि हुई है। आपराधिक आरोपों से घिरे विधायकों में बसपा के 29, सपा के 111, भाजपा के 25, कांग्रेस के 13, रालोद के दो, पीस पार्टी के दो, कौमी एकता दल के एक समेत पांच निर्दलीय भी हैं। यूपी इलेक्शन वॉच के मुताबिक सूबे में सबसे अमीर विधायक नवाब काजिम अली खान हैं जो रामपुर जिले के स्वार क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुने गए हैं। दूसरे नंबर पर मुबारकपुर विधानसभा क्षेत्र से बसपा से चुने गए शाह आलम व तीसरे नंबर पर नोएडा के भाजपा विधायक महेश शर्मा हैं। नवाब काजिम अली खान की संपत्ति 56.89 करोड़, शाह आलम की 54.44 करोड़ और महेश शर्मा की 37.45 करोड़ है। छह विधायकों ने अपनी संपत्ति पांच लाख या इससे भी कम घोषित की है। 22 विधायकों ने अपनी देनदारियां एक करोड़ या इससे ज्यादा घोषित की है। 2012 में चुने गए 271 विधायक करोड़पति हैं जबकि 2007 में इनकी संख्या सिर्फ 124 थी। करोड़पति विधायकों की संख्या में यह इजाफा करीब 37 फीसदी का है। इलेक्शन वॉच ने मुख्य राजनीतिक दलों के प्रत्येक उम्मीदवार की औसतन संपत्ति भी घोषित की है। इसमें बसपा की 4.44 करोड़, सपा की 2.52 करोड़, भाजपा की 4.01 करोड़ और कांग्रेस की 4.61 करोड़ है। सूबे के 239 विधायकों की शैक्षिक योग्यता स्नातक या इससे अधिक है। दस फीसदी भी नहीं महिलाएं : सूबे में कुल 32 महिला विधायक चुनी गई हैं। इनमें सपा की 19, बसपा की तीन, भाजपा की छह और कांग्रेस से जीतने वाली दो महिलाएं हैं। केवल 40 विधायक आठवीं पास और इससे भी कम हैं। इनमें 14 केवल साक्षर हैं। दसवीं पास 41 और 12वीं पास 76 विधायक हैं। इस बार विधान सभा चुनाव में 6839 उम्मीदवारों ने 223 दलों का प्रतिनिधित्व किया है। 2007 में 6086 उम्मीदवारों ने 131 दलों का प्रतिनिधित्व किया था। 2007 के मुकाबले 2012 में राजनीतिक दलों में 70 फीसदी और उम्मीदवारों में 12 फीसदी की वृद्धि है। विधानसभा के अबकी चुनाव में केवल 11 दलों के उम्मीदवार जीते, जिनमें छह निर्दलीय उम्मीदवार भी हैं।

वादें और भी हैं ....


हृ सरकारी व अनुदानित कॉलेजों में स्नातक स्तर तक लड़कियों को मुफ्त शिक्षा हृ असाध्य रोग हृदय का ऑपरेशन, कैंसर, लीवर, किडनी आदि के मरीजों का मेडिकल कालेज में मुफ्त इलाज हृ निजी उच्च व व्यावसायिक शिक्षा के लिए पांच लाख वार्षिक आय से कम वाले परिवारों के बच्चों की फीस माफ होगी हृ हाईस्कूल तक की शिक्षा प्राप्त लड़कियों को कन्या विद्या धन व अच्छे अंक पाने वाली लड़कियों को साइकिल हृ कक्षा दस पास मुस्लिम लड़कियों को आगे की शिक्षा या निकाह के लिए 30 हजार रुपये का अनुदान हृ विश्वविद्यालय व कालेजों में छात्रसंघ की बहाली हृ सरकारी उर्दू मीडियम स्कूलों की स्थापना हृ सच्चर आयोग व रंगनाथ मिश्र कमेटी की रिपोर्ट की सिफारिशों पर अमल हृ दहशतगर्दी के नाम पर बंद बेकसूर मुसलिम नौजवान की रिहाई और मुआवजा भी हृ मुसलमानों को दलित की तरह जनसंख्या के आधार पर अलग से आरक्षण हृ किसानों की उपज का लागत मूल्य निर्धारित करने के लिए आयोग का गठन हृ 65 वर्ष की उम्र प्राप्त करने वाले छोटी जोत के किसानों के लिए पेंशन का इंतजाम हृ दो फसल देने वाली जमीन के अधिग्रहण में किसानों को सर्किल रेट का छह गुना मुआवजा मिलेगा हृ शिक्षामित्रों का दो वर्ष में विनियमितीकरण हृ सिंचाई के सरकारी साधन नहर, सरकारी नलकूप से किसानों को मुफ्त पानी हृ किसानों का कर्ज माफ करना, सीमान्त किसानों को 4 फीसदी ब्याज पर कर्ज देना हृ अधिवक्ता कल्याण निधि होगी दो सौ करोड़ की व वृद्ध अधिवक्ताओं को मिलेगी पेंशन हृ सभी तरह के लाइसेंस दस वर्ष का एकमुश्त धन लेकर आजीवन करने हृ साइकिल व रिक्शा बनाने का कारखाना लगाने हृ 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करना हृ वैट की दरें पड़ोसी राज्यों के बराबर करना हृ पदोन्नति में आरक्षण संबंधी हाईकोर्ट के आदेश पर कार्यवाही करना।

भत्ते के लिए ही चाहिए 15 हजार करोड़


स्पष्ट बहुमत के साथ ही सूबे की सत्ता हासिल कर चुकी सपा के सामने अब सूबे के लोगों से किए वादों को पूरा करने की बड़ी चुनौती होगी। वादा निभाने के लिए सरकार को न केवल अरबों रुपये की दरकार होगी बल्कि कानून व्यवस्था दुरुस्त रखने के साथ भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए कड़े फैसले भी लेने होंगे। बेरोजगारी भत्ते के लिए ही चाहिए डेढ़ हजार करोड़ : समाजवादी पार्टी ने सत्ता में आने पर बेरोजगारी भत्ता देने की घोषणा कर रखी है। पार्टी ने इससे पहले के कार्यकाल में जहां पांच सौ रुपये महीने भत्ता दिया था वहीं इस बार बेरोजगार नौजवानों को एक हजार रुपये देने का वायदा किया गया है। पिछले कार्यकाल में बेरोजगारी भत्ता देने से सरकारी खजाने पर हर वर्ष पांच सौ करोड़ रुपये का वित्तीय भार पड़ा था। वैसे तो बेरोजगारी भत्ता पाने के लिए पात्र बेरोजगार नौजवानों का अभी सही-सही आंकड़ा नहीं है, लेकिन भत्ते की राशि दुगनी करने के साथ ही सीमित सरकारी नौकरियों को देखते हुए मोटे तौर पर यह माना जा रहा है कि बेरोजगारी भत्ता देने से इस बार तकरीबन डेढ़ हजार करोड़ रुपये का सालाना वित्तीय भार आएगा। ज्यादा व मुफ्त बिजली देना होगी चुनौती : पार्टी ने दो वर्ष में गांवों के लिए 20 घंटे व शहर को 22 घंटे बिजली देने का वादा किया है। किसानों की तरह गरीब बुनकर को भी मुफ्त बिजली देने की बात घोषणा पत्र में कही गई है। उद्योग व कृषि क्षेत्र को भरपूर बिजली देने के साथ ही निजी व सरकारी क्षेत्र में बिजली उत्पादन को प्राथमिकता देते हुए नए बिजलीघरों का निर्माण व पुराने का सुधार तथा बिजली चोरी रोकने को लाइन लॉस घटाने की घोषणा भी की गई है। गौर करने की बात यह है कि अभी बिजली के उत्पादन व उपलब्धता की जो स्थिति है उससे ज्यादातर शहरों को ही 16-18 घंटे बिजली नहीं मिल पा रही है जबकि गांवों को तो औसतन नौ घंटे बिजली ही आपूर्ति हो रही है। चूंकि बिजली घरों की स्थापना में ही करीब चार वर्ष लगते हैं इसलिए फिलहाल बिजली की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार होता नहीं दिखता। मुफ्त बिजली देने से डेढ़-दो हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का अतिरिक्त बोझ उस पावर कारपोरेशन पर पड़ेगा जो पहले से ही आठ हजार करोड़ रुपये से अधिक के घाटे में है। ऐसे में सपा सरकार के सामने इस वादे को पूरा करने के लिए न केवल महंगी दरों पर अतिरिक्त बिजली खरीदनी पड़ेगी बल्कि गरीब किसानों-बुनकरों को मुफ्त बिजली देने के लिए बिजली दर बढ़ाकर सूबे के लोगों पर बोझ डालने जैसे अप्रिय निर्णय लेने की चुनौती भी होगी। टैबलेट व लैपटॉप के लिए 3800 करोड़ की होगी दरकार : पार्टी ने हाईस्कूल व इंटर पास विद्यार्थियों को मुफ्त टैबलेट पीसी और लैपटॉप बांटने का वादा किया है। मोटे तौर पर इस वर्ष हाईस्कूल पास विद्यार्थियों की संख्या 25 लाख व इंटर पास 21 लाख रहने की उम्मीद है। अगर टैबलेट पीसी का न्यूनतम मूल्य 50 डालर यानी लगभग 2500 रुपये ही माना जाए तो हाईस्कूल उत्तीर्ण विद्यार्थियों को उसे देने के लिए सालाना 625 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। इसी तरह लैपटॉप की न्यूनतम कीमत 15000 रुपये मानने पर इंटरमीडिएट पास विद्यार्थियों को मुफ्त लैपटॉप मुहैया कराने पर प्रति वर्ष 3150 करोड़ रुपये का वित्तीय भार आएगा। इस तरह से मुफ्त टैबलेट पीसी तथा लैपटॉप देने के लिए ही सरकारी खजाने पर तकरीबन 3800 करोड़ का वित्तीय भार आएगा।

लड़कियों को मुफ्त मिलेगी उच्च शिक्षा : बादल


जनता से पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनने का फरमान लेकर होला मोहल्ला में सियासी कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए प्रकाश सिंह बादल ने कहा कि वाहेगुरु शक्ति दें, ताकि वह जनता की और सेवा कर सकें। बादल ने विधानसभा चुनाव में बहुमत देने के लिए जनता का धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि अकाली दल धर्मनिरपेक्ष पार्टी है। पार्टी ने नौ हिंदू मैदान में उतारे, सभी जीते। मालेरकोटला से मुसलमान महिला विधानसभा में पहुंची। अकाली दल सभी धर्मो का सम्मान करता है। बादल ने कहा कि पंजाब में लंगर प्रथा बहुत अच्छी है। इसी से प्रेरित होकर उन्होंने प्रदेश में आटा-दाल स्कीम चलाई है, जो कि देश में पहली स्कीम है। उन्होंने कहा कि गठबंधन सरकार बराबरी की नीति पर काम करती है। लड़कियों को लड़के के बराबर करने के उद्देश्य से सरकार नौवीं व दसवीं में पढ़ने वाली लड़कियों को मुफ्त साइकिल देगी। इसी तरह बीए व एमए की पढ़ाई भी मुफ्त की जाएगी। कांफ्रेंस में रूपनगर के विधायक डा. दलजीत सिंह चीमा की मांग पर उन्होंने आनंदपुर साहिब व चमकौर साहिब में अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम बनाने की घोषणा की। आनंदपुर साहिब में भाई जीवन सिंह व चमकौर साहिब में भाई संगत सिंह की याद में स्टेडियम बनाया जाएगा। बादल ने मंच से ही सुखबीर बादल को स्टेडियम की रूपरेखा तय करने का निर्देश दिया। इससे पहले कांफ्रेंस में पार्टी अध्यक्ष सुखबीर बादल ने घोषणा की कि पंजाब को नशामुक्त राज्य बनाया जाएगा। नशा बेचने वालों को सलाखों के पीछे किया जाएगा। वह यहां परमात्मा का शुक्रिया अदा करने आए हैं।

मणिपुर में इबोबी, गोवा में पार्रिकर सीएम बनेंगे


गोवा में भाजपा-महाराष्ट्रवादीगोमांतक पार्टी (एमजीपी) गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिल गया है। सत्ता विरोधी लहर में दिगंबर कामत सरकार के आठ मंत्री चुनाव हार गए। राकांपा का खाता भी नहीं खुला। कामत ने राज्यपाल के शंकरनारायणन को इस्तीफा सौंप दिया। कांग्रेस को गोवा में मिले जख्म पर मणिपुर ने मरहम लगाया। मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस ने 42 सीटें जीतकर लगातार तीसरी बार सत्ता की चाबी अपने ही पास रखी। गोवा में भाजपा की जीत के नायक रहे मनोहर पार्रिकर, जिनकी अगुवाई में पार्टी ने 40 में 21 सीटें जीतकर अकेले दम बहुमत हासिल किया है। एमजीपी को तीन सीटें मिलीं। कांग्रेस सिर्फ नौ पर सिमट गई। क्षेत्रीय गोवा विकास पार्टी दो सीट जीतने में कामयाब रही। पांच सीटें निर्दलीयों के खाते में गई हैं। मणिपुर में कांग्रेस ने 60 में 42 सीटें जीतीं। तृणमूल कांग्रेस को सात, मणिपुर स्टेट कांग्रेस पार्टी को पांच, नगा पीपुल्स फ्रंट को चार, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, लोक जनशक्ति पार्टी को एक-एक सीट मिली हैं। मुख्यमंत्री इबोबी सिंह और उनकी पत्नी लांधोनी देवी ने जीत हासिल की है। इबोबी सिंह पूर्वोत्तर राज्यों के ऐसे दूसरे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने लगातार तीसरी बार कांग्रेस को सत्ता का स्वाद चखाया है। कांग्रेस की यह सफलता इसलिए अहम है क्योंकि कांग्रेस के विरोध में ग्यारह दल एकजुट होकर चुनाव लड़ रहे थे।

पंजाब में बादल फटे तो बह गई कांग्रेस


पंजाब में प्रकाश सिंह बादल की अगुआई वाले अकाली दल-भाजपा गठबंधन ने सत्ता विरोधी रुझानों को दरकिनार करते हुए स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता पर कब्जा बरकरार रखा। बादल ने जोरदार प्रदर्शन कर कांग्रेस को करारा झटका ही नहीं दिया बल्कि दूसरी बार सत्ता में वापसी की है, जो अपने आप में एक इतिहास है। चार दशक में कोई भी दल लगातार दूसरी बार सत्ता पर काबिज नहीं हो सका है। नई सरकार के शपथ-ग्रहण से पहले गुरुवार को अकाली दल और भाजपा के बीच बैठक की उम्मीद है। राज्य की 117 सदस्यीय विधानसभा के लिए हुए चुनाव में अकाली-भाजपा गठबंधन ने 68 सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत हासिल किया है। अकाली दल को 56 सीटों पर विजय हासिल हुई है तो भाजपा को 12 सीटों पर फतह मिली है। कांग्रेस तमाम कोशिशों के बावजूद 46 सीटों पर आकर सिमट गई। तीन सीटें अन्य उम्मीदवारों के खाते में गई हैं। पीपीपी एक भी सीट नहीं जीत सकी है और इस हार से यह साफ हो गया है पंजाब में तीसरा मोर्चा फिलहाल दूर की कौड़ी है। मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने लांबी क्षेत्र में कांग्रेस उम्मीदवार व अपने चचेरे भाई महेशिंदर सिंह बादल को 24,739 मतों से पराजित किया। जलालाबाद सीट पर सुखबीर बादल ने निर्दलीय उम्मीदवार को 50,246 मतों से हराया। भाजपा सांसद नवजोत सिंह सिद्धू की पत्‍‌नी नवजोत कौर सिद्धू ने अमृतसर पूर्व से जीत हासिल की है। पूर्व ओलंपिक खिलाड़ी व अकाली दल के प्रत्याशी परगट सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी जगबीर सिंह बरार को 6798 मतों से हराया। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह पटियाला शहरी क्षेत्र जीत गए, जबकि उनके बेटे रनिंदर सिंह समाना से चुनाव हार गए। प्रकाश सिंह बादल (84) ने अपने पुत्र सुखबीर के साथ बादल गांव स्थित आवास पर पत्रकारों से बातचीत में कहा, मैं पंजाब की जनता को धन्यवाद देना चाहता हूं, जिन्होंने मुझमें दोबारा विश्वास दिखाया। पिता-पुत्र ने कहा, हम राज्य में शांति एवं विकास का एजेंडा लेकर लोगों के पास गए। मैं खुश हूं कि हम उनकी उम्मीदों पर खरा उतरे। वहीं, अमरिंदर सिंह ने नतीजों पर हैरानी जताते हुए कहा, मैं हार की पूरी जिम्मेदारी लेता हूं। नतीजे चौंकाने वाले हैं। उन्होंने कहा, देखेंगे कि कहां गलती हुई।

कांग्रेस चारों खाने चित्त


उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के चुनावी नतीजों ने कांग्रेस को लगभग हाशिये पर धकेल दिया है। देश के सबसे बडे़ और राजनीतिक दृष्टि से अहम उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने सभी अनुमानों को ध्वस्त कर 403 सदस्यीय विधानसभा में 224 सीटें हासिल कर लीं। अभूतपूर्व बहुमत के साथ सपा ने बसपा को तो सत्ता से बेदखल किया ही, कांग्रेस को भी जोर का झटका दिया, जो कि राहुल गांधी के धुंआधार प्रचार के बल पर 22 सालों बाद सत्ता में वापसी का सपना देख रही थी। पंजाब और उत्तराखंड में सत्ता विरोधी लहर के भरोसे उम्मीदें पाले बैठी कांग्रेस को मायूसी ही हाथ लगी। बादल की अगुआई में भाजपा-अकाली गठबंधन ने 43 साल के इतिहास में पहली बार दोबारा सत्ता में लौट कर इतिहास रच डाला। उत्तराखंड में त्रिशंकु विधानसभा सामने आई। हालांकि कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी रही, लेकिन बहुमत न मिलने से सत्ता की चाबी छोटे दलों एवं निर्दलियों के हाथ आ गई है। गोवा की सत्ता छीनकर भाजपा ने देश की सबसे पुरानी पार्टी को चारों खाने चित कर दिया। कांग्रेस के लिए राहत की खबर सिर्फ मणिपुर से आई जहां पार्टी तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी 224 सीटें जीतने के साथ ही अकेले प्रदेश की सत्ता संभालेगी। 16वीं विधानसभा के लिए हुए चुनाव के नतीजे पार्टी के लिए उम्मीदों से बहुत बड़ी जीत है, जबकि बसपा के लिए यह अनुमानों से बड़ी हार है। सत्ता विरोधी लहर के चलते बसपा 80 तक ही पहुंच पाई। साइकिल के कद्रदान यूपी ने कांग्रेस और भाजपा को क्रमश: 28 और 47 पर रोक दिया। हालांकि यह संख्या कांग्रेस के पिछले आंकड़े से छह ज्यादा है, लेकिन भाजपा को तो चार सीटों का नुकसान हुआ है। सपा की आंधी में माया के तमाम मंत्री और दिग्गज नेताओं को हार का सामना करना पड़ा। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डा. रमापति राम त्रिपाठी, विस अध्यक्ष रहे केशरीनाथ त्रिपाठी, भाजयुमो प्रदेश अध्यक्ष हरीश द्विवेदी, पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीराम चौहान, ओम प्रकाश सिंह, पूर्व मंत्री व कांग्रेसी नेता जगदंबिका पाल के पुत्र अभिषेक पाल, कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष डा. रीता बहुगुणा जोशी के भाई शेखर बहुगुणा, केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद की पत्नी लुईस खुर्शीद, पूर्व मंत्री जनार्दन प्रसाद ओझा, अपना दल के बाहुबली नेता व पूर्व सांसद अतीक अहमद को भी जनता ने फेल कर दिया। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही ने शर्मनाक प्रदर्शन की नैतिक जिम्मेदारी स्वीकारते हुए अपना इस्तीफा नितिन गडकरी को भेज दिया है। रिकार्ड तोड़ बहुमत से उत्साहित सपा ने बुधवार को संसदीय दल की बैठक बुलाई है, जिसमें नवनिर्वाचित विधानमंडल दल की बैठक बुलाने और सरकार बनाने का दावा पेश करने पर विचार किया जाएगा। सूत्रों का कहना है कि सपा बुधवार को ही सरकार बनाने का दावा पेश कर सकती है। शपथ ग्रहण होली बाद होगा। मुख्यमंत्री कौन होगा इस सवाल को अखिलेश यादव ने प्रेस कांफ्रेंस में स्पष्ट किया। उन्होंने कहा,मुख्यमंत्री नेता जी यानी मुलायम ही होंगे। सूत्रों के मुताबिक, सपा में शीर्ष स्तर पर इस पर सहमति बनी है कि मंत्रिमंडल छोटा रखा जाए और उसमें ऐसे लोगों का शामिल किया जाए, जिनकी छवि साफ सुथरी हो। अखिलेश यादव ने सपा सरकार की प्राथमिकताएं भी गिना दी। उन्होंने कहा कि कानून-व्यवस्था को किसी भी सूरत में बिगड़ने नहीं दिया जाएगा। अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। जनकल्याण योजनाओं को प्राथमिकता दी जाएगी। 

उत्तराखंड में कोटद्वार का नतीजा सबसे पहले


लगभग सवा दो महीने चली विधानसभा चुनाव प्रक्रिया के बाद अब अंतत: मंगलवार को इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों में कैद कुल 788 प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला हो जाएगा। साथ ही साफ हो जाएगा कि उत्तराखंड में जनता ने अगले पांच साल के लिए किस पार्टी के पक्ष में जनादेश दिया। सुबह ठीक आठ बजे राज्य के सभी तेरह जिलों में बनाए गए 16 मतगणना केंद्रों में एक साथ वोटों की गिनती आरंभ होगी। संभावना है कि दोपहर बाद लगभग एक बजे तक सभी 70 सीटों के नतीजे सामने आ जाएंगे। सबसे कम बूथों वाली विधानसभा सीट होने के कारण पौड़ी जिले में कोटद्वार का नतीजा सबसे पहले सामने आ सकता है, इस सीट से मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी मैदान में हैं। राज्य की 70 विधानसभा सीटों के लिए 30 जनवरी को 9744 मतदान केंद्रों पर एक साथ मतदान हुआ था। इस बार राज्य के कुल 63.63 लाख मतदाताओं में से 67.22 प्रतिशत ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। सभी 70 सीटों पर भाजपा, कांग्रेस, बसपा, सपा, उत्तराखंड क्रांति दल-पी, रक्षा मोर्चा समेत कई अन्य दलों व निर्दलीय समेत कुल 788 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। इनमें निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों की संख्या 262 है। जिन दिग्गजों की किस्मत दांव पर है उनमें मुख्य हैं, भुवन चंद्र खंडूड़ी, डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक, विस अध्यक्ष हरबंस कपूर, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य, डॉ. हरक सिंह रावत। राज्य की मुख्य निर्वाचन अधिकारी राधा रतूड़ी ने बताया कि मतगणना के लिए राज्य के सभी 16 मतगणना केंद्रों में चाकचौबंद व्यवस्था कर दी गई है। उन्होंने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये सभी जिला निर्वाचन अधिकारियों को मतगणना को लेकर भारत निर्वाचन आयोग के निर्देशों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि ड्यूटी पर न आने वाले कार्मिकों और आचार संहिता का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई जाएगी।

राहुल-अखिलेश की मेहनत का नतीजा आज


उत्तर प्रदेश में 22 साल सत्ता वापसी के लिए प्रयासरत कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी और एक बार फिर से अपने पिता को मुख्यमंत्री देखने का सपना सजोने वाले सपा प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव की मेहनत का फैसला मंगलवार को होगा। वोटों की गिनती मंगलवार को सुबह आठ बजे से शुरू होगी और दोपहर तक नतीजे आने की संभावना है। इस बार के चुनाव में 403 सीटों की नुमाइंदगी का फैसला 6839 उम्मीदवारों में होगा। इनमें कई बड़े सूरमा भी हैं। पहला नतीजा 11 बजे तक आ जाने की संभावना है। अनुमान है कानपुर की आर्यनगर सीट का परिणाम सबसे पहले आएगा। वहां सबसे कम मतदान केंद्र हैं। 24 दिसंबर को 16वीं विधानसभा के लिए चुनाव कार्यक्रम घोषित होने के साथ शुरू चुनावी गहमा-गहमी तीन मार्च को अंतिम चरण के मतदान के बाद भले थम गई हो लेकिन नतीजों को लेकर उत्सुकता अब शबाब पर है। रिकार्ड मतदान से अप्रत्याशित नतीजों के कयास लगाए जा रहे हैं। लाख टके का सवाल फिजा में यही तैर रहा है कि किसकी सरकार बनेगी। एक्जिट पोल में किसी को भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने की बात आने से जोड़-तोड़ की संभावना को बल मिला है। इस बीच नेताओं के बीच जुबानी जंग बढ़ गई है। नतीजे आने से पहले ही केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने कांग्रेस-रालोद व बसपा गठबंधन की वकालत कर यूपी की राजनीति में नए विकल्प की संभावना जगा दी है। वर्मा इस पर अड़े हैं कि स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति में वह सपा की सरकार नहीं बनने देंगे तो उधर सपा नेताओं ने भी बेनी प्रसाद वर्मा को खूब खरी-खोटी सुनाई। अखिलेश ने उन्हें कांग्रेस में उधार का कमांडर करार दिया जोकि अपनी हार सुनिश्चित जानकर अनर्गल बयानबाजी कर रहे हैं। राजनीतिक हलकों में स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति में अलग-अलग तरह के विकल्पों की चर्चा हो रही है। प्रमुख विकल्प के रूप में सपा-कांग्रेस व रालोद गठबंधन के कयास लग रहे हैं। कहा जा रहा है कि भले ही अभी दोनों दल एक दूसरे को नकार रहे हों लेकिन सत्ता तक पहुंचने के लिए साम्प्रदायिक ताकतों को परास्त करने के नाम पर हाथ मिला सकते हैं। एक विकल्प यह भी जताया जा रहा है कि अगर समाजवादी पार्टी को ज्यादा विधायकों की जरूरत नहीं पड़ी तो रालोद और अन्य छोटे दलों के साथ सपा सरकार बना सकती है। तीसरे विकल्प में बसपा-कांग्रेस-रालोद की चर्चा है। चौथा विकल्प जो चर्चा में है वह बसपा-रालोद और छोटे दलों का है। भाजपा भले ही बार-बार दोहराया रही है कि बसपा के साथ उसका कोई समझौता नहीं होगा पर बसपा-भाजपा गठबंधन की भी खूब चर्चा है। सभी चैनलों के एक्जिट पोल में नंबर एक सपा में उत्साह का माहौल है। वैसे तो पार्टी के लोग आन रिकार्ड स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि उसे स्पष्ट बहुमत नहीं मिल रहा है लेकिन आफ द रिकार्ड वो लोग यह कह रहे हैं कि अगर स्पष्ट बहुमत नहीं भी मिलता है तो भी उन्हें जरूरी समर्थन जुटाने में कोई मुश्किल नहीं आएगी। समर्थन किससे लिया जाएगा, यह इस पर निर्भर है कि समर्थन के लिए उसे कितने विधायकों की जरूरत पड़ती है। सपा प्रमुख मुलायम सिंह व अखिलेश यादव सोमवार को लखनऊ में ही थे। उनकी मीडिया के लोगों से जब-जब भी बात हुई, उनसे यही सवाल हुआ कि स्पष्ट बहुमत न आने की स्थिति में क्या कांग्रेस से समर्थन लिया जा सकता है, दोनो नेताओं ने कहा उन्हें पूरा विश्वास है कि सपा को स्पष्ट बहुमत मिल रहा है। मुलायम ने कहा, अब जब नतीजे आने में कुछ ही घंटे का रह गए हैं तो कयासबाजी करने का कोई औचित्य नहीं है। सपा और कांग्रेस में इस बार मुस्लिम मतों की मारामारी रही है। परिणाम से साबित हो जाएगा कि सूबे के मुस्लिम ने सियासी रूप से किसका साथ दिया है। बसपा की सोशल इंजीनियरिंग इस बार शुरू से ही छितराई नजर आई है। चुनाव से पहले मायावती के बीस से अधिक मंत्रियों और सौ से अधिक विधायकों का टिकट काटने का फार्मूला कितना असरदार होता है, यह भी देखने की बात होगी। इसके अलावा सुशासन के राग के साथ उतरी भाजपा की पिछड़ों को साथ जोड़ने व बाबू सिंह कुशवाहा के खतरों को नजरअंदाज करने के रणनीतिक फैसले की मीमांसा भी होगी। कांग्रेस ने यूपी के इस समर में बड़ी उम्मीदें पाली हैं। उसके मुस्लिम आरक्षण कार्ड, रालोद से गठबंधन और बाहरी उम्मीदवारों पर भरोसा जताने के निर्णय पर जनता का क्या रुख रहा, परिणाम यह भी साबित कर देंगे।

विपक्ष में बैठने को तैयार भाजपा-कांग्रेस


उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब,मणिपुर और गोवा में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे मंगलवार दोपहर तक देश-दुनिया के सामने होंगे। चार राज्यों में कांग्रेस-भाजपा में सीधी भिड़ंत है,जबकि राजनीतिक रूप से सबसे अहम उत्तर प्रदेश में दोनों राष्ट्रीय दलों को बसपा और सपा से भी पार पाना है। नतीजे तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन एक्जिट पोल द्वारा उत्तर प्रदेश की 16 वीं विधानसभा के त्रिशंकु होने की तस्वीर दिखा कर गठजोड़ की कयासबाजी चरम पर पहुंचा दी है। विभिन्न दलों के नेताओं में तेज होती जुबानी जंग के बीच कांग्रेस और भाजपा ने दो टूक कह दिया है कि बहुमत न मिला तो विपक्ष में बैठेंगे। राष्ट्रीय दलों के इन तेवरों ने सरकार गठन की राह को पेचीदा बना दिया है। कांग्रेस व भाजपा का भविष्य इन चुनाव नतीजों पर टिका है, क्योंकि इनका असर केंद्र सरकार से लेकर राष्ट्रपति चुनाव तक होना है। इससे भी इंकार नहीं कि ये नतीजे 2014 लोकसभा चुनाव के संकेत हैं। बीते वर्षो में केंद्रीय राजनीति में हैसियत रखने वाली सपा और बसपा का अस्तित्व इसी पर टिका है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा की 690 विधानसभा सीटों का नतीजा यूं तो राज्य की सत्ता तय करेगा। वक्त कुछ ऐसा है इसका असर दूरगामी होगा। इन पांच राज्यों से लोकसभा में 102 और राज्यसभा में 43 सांसद चुनकर आते हैं। अकेले उत्तर प्रदेश से लोकसभा में 80 और राज्यसभा में 31 सांसद आते हैं जो केंद्र की राजनीतिक दिशा तय करने की क्षमता रखता है। यही कारण है कि बाकी चार राज्यों में जहां कांग्रेस और भाजपा की सीधी लड़ाई है और उनकी राजनीतिक सेहत टिकी है वहीं यूपी को लेकर बेचैनी है। माना जा सकता है कि कांग्रेस और भाजपा के भी राजनीतिक एजेंडे में सबसे ऊपर यूपी ही है। कभी राज्य में सत्ता की कमान संभालने वाली कांग्रेस और भाजपा फिलहाल अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन तलाशने में जुटी है। उन्हें इसका अहसास है कि उत्तर प्रदेश की जमीन दुरुस्त हुई तभी आगे की लड़ाई जीती जा सकती है। बसपा व सपा को भी इल्म है कि कांग्रेस और भाजपा मजबूत हुए तो उनके लिए खतरा है। कांग्रेसी नेता और केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने नतीजे आने से पहले ही कांग्रेस- रालोद व बसपा गठबंधन की वकालत कर यूपी में नए विकल्प की संभावना जगा दी है। वर्मा अड़े हैं कि स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति में वह सपा की सरकार नहीं बनने देंगे। वहीं, कांग्रेस महासचिव और मीडिया प्रकोष्ठ के चेयरमैन जनार्दन द्विवेदी ने गठजोड़ के कयासों को सिरे से खारिज करते हुए कहा, बहुमत न मिलने पर पार्टी किसी भी दल से गठजोड़ नहीं करेगी, बल्कि विपक्ष में बैठेगी। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, बेनी प्रसाद वर्मा के विचार उनके निजी विचार हैं, पार्टी इस मुद्दे पर अपना रुख कतई नहीं बदलेगी। भाजपा में गठजोड़ के मुद्दे पर दो वर्ग हैं। एक बसपा से गठजोड़ चाहता है तो दूसरा विपक्ष में बैठने की ढपली बजा रहा है। पूर्व भाजपा सांसद संघप्रिय गौतम का कहना है कि बसपा से गठजोड़ का विकल्प खुला है। उनका तर्क है कि यूपी में बसपा की मदद करनी चाहिए, क्योंकि उत्तराखंड और पंजाब में बसपा की मदद की दरकार होगी। इस बयान के कुछ ही देर बाद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही ने कहा, बहुमत मिला तो सरकार बनाएंगे, वर्ना विपक्ष में बैठेंगे। गठजोड़ को लेकर जारी कयासबाजी पर लोकसभा में पार्टी की नेता सुषमा स्वराज ने विराम लगाया। उन्होंने कहा, भाजपा उत्तर प्रदेश में सरकार गठन के लिए किसी भी दल के साथ समझौैता करने नहीं जा रही। हमारी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष इस बारे में बिल्कुल स्पष्ट कह चुके हैं कि या तो हम सरकार बनाएंगे या फिर विपक्ष में बैठेंगे। दरअसल यूपी के चुनावी नतीजे केंद्र की राजनीति पर भी असर डालेंगे। इसी साल जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिहाज से भी नतीजों पर सबकी और खासकर कांग्रेस की निगाहें टिकी होंगी। अप्रैल माह में राज्यसभा से 58 सांसद रिटायर कर रहे हैं। इनमें से 10 यूपी से हैं। जाहिर है कि विधानसभा में जिसकी ताकत बढ़ी केंद्र में भी उसकी अहमियत बढ़ेगी। कांग्रेस की ताकत केंद्र वहां कमजोर है लोकपाल समेत कई दूसरे विधेयकों को पेश करते वक्त सरकार को यह कमी कचोटती रही है। परेशानी यह भी है कि केंद्र में कांग्रेस को समर्थन दे रहे राजद के दो राज्यसभा सांसदों की जगह इस बार बिहार से राजग के सांसद चुनकर आने तय हैं। उत्तराखंड से आए सत्यव्रत भी अप्रैल में रिटायर हो रहे हैं। राज्य में सरकार बनी तभी कांग्रेस के लिए फिर से अपने उम्मीदवार जिताना संभव होगा। भाजपा की मुश्किलें भी कम नहीं हैं। उत्तराखंड और पंजाब की बागडोर गई तो नीतिगत मुद्दों पर केंद्र के साथ लड़ाई में उनकी स्थिति कमजोर होगी। वहीं साल के अंत तक भाजपा को गुजरात और हिमाचल प्रदेश में अपनी सत्ता बचाने के लिए भी जूझना होगा।