Wednesday, June 15, 2011

लोकपाल पर चिदंबरम ने दिखाए दो चेहरे


अब यह साफ है कि केंद्र सरकार लोकपाल के अधिकार क्षेत्र के मामले में अपने ही घोषित रुख से पीछे हट रही है। खुद गृहमंत्री चिदंबरम ने माना था कि प्रधानमंत्री के भ्रष्टाचार के मामलों की जांच का अधिकार लोकपाल को होना चाहिए। उन्होंने लोकपाल विधेयक के सरकारी मसौदे में प्रधानमंत्री को राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे कई मामलों में दी गई छूट को भी ज्यादा बताया था। चिदंबरम अपने ये विचार गृह मंत्रालय की ओर से आधिकारिक तौर पर सरकार के सामने रख चुके हैं। लोकपाल साझा समिति की 30 मई की बैठक में भले ही मंत्रियों ने एक स्वर में प्रधानमंत्री के भ्रष्टाचार को लोकपाल के दायरे में लाने के विरोध में राय दी हो, लेकिन दैनिक जागरण के पास मौजूद गृह मंत्रालय के दस्तावेज बताते हैं कि न सिर्फ सरकारी मसौदे में प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में रखा गया था, बल्कि गृह मंत्रालय ने तो इस दायरे को और सख्त करने की सलाह दी थी। सात मार्च को गृह मंत्रालय की ओर से कार्मिक मंत्रालय की सचिव अल्का सिरोही को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि लोकपाल विधेयक 2010 प्रधानमंत्री को राष्ट्रीय सुरक्षा, रक्षा, कानून व्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय संबंध से जुड़े अपने दायित्वों के सिलसिले में लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को लोकपाल के दायरे से बाहर रखता है, लेकिन यह छूट बहुत व्यापक लगती है और इसका दायरा कम करते हुए इसे परिभाषित करना होगा। हालांकि प्रधानमंत्री से जुड़े कुछ मसले लोकपाल के दायरे से बाहर होने चाहिए। धारा 10 (1) के पहले प्रावधान को इसी मुताबिक नए सिरे से तैयार किया जा सकता है। उक्त पत्र में यह भी कहा गया था कि इसे चिदंबरम की मंजूरी के साथ जारी किया जा रहा है। लोकपाल साझा समिति के सह अध्यक्ष शांति भूषण ने कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि गृहमंत्री ने साझा समिति में इस पत्र के उलट राय क्यों रखी? भूषण के मुताबिक चिदंबरम ने 30 मई की बैठक में कहा था कि प्रधानमंत्री के खिलाफ अगर लोकपाल की जांच हुई तो वे अपनी महती जवाबदेही को पूरा करने में असमर्थ हो जाएंगे। इसके अगले दिन केंद्र सरकार की ओर से चिदंबरम और दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने प्रेस कांफ्रेंस कर यह भी कहा था कि लोकपाल पर सरकार का न तो कोई मसौदा है और न ही कोई विचार। सोमवार को भी सिब्बल ने यही दोहराया।


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