भ्रष्टाचार मुक्त भारत के संकल्प के साथ देश भर में जनांदोलन खड़ा करने वाली सिविल सोसाइटी सख्त लोकपाल के गठन को लेकर जारी लड़ाई में सरकार के अडि़यल रुख से हार गई। लोकपाल विधेयक का मसौदा बनाने को सरकार और टीम अन्ना की साझेदारी लगभग खत्म हो गई है, क्योंकि पीएम-न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में रखने समेत विभिन्न मुद्दों पर एकराय कायम न हो सकी। अब साझा मसौदा समिति की बैठक तो होगी, लेकिन कोई साझा मसौदा नहीं होगा। यह समिति सरकारी नुमाइंदों और टीम अन्ना के दो अलग-अलग मसौदे बनाएगी। दोनों मसौदे कैबिनेट के पास भेजे जाएंगे और वहां अंतिम फैसला होगा। बुधवार को हुई साझा मसौदा समिति की बैठक के बाद दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा,आज की बैठक में हमने पाया कि अधिकांश अहम मुद्दों पर दोनों पक्षों में सहमति नहीं बन रही है। इसलिए हम दोनों प्रावधान के साथ मसौदा तैयार करेंगे। इसे कैबिनेट के सामने रखा जाएगा और अंतिम फैसला वही लेगी। उन्होंने बताया कि समिति की अगली बैठक अब 20 जून को होगी। अगर काम पूरा नहीं हुआ तो 21 तारीख को एक और बैठक होगी। सरकार हर हाल में 30 जून से पहले मसौदे को अंतिम रूप दे देना चाहती है। बैठक में लोकपाल के मॉडल और सरकारी अफसरों पर कार्रवाई के अधिकार पर भी चर्चा हुई। सरकार का कहना था कि यह सिर्फ 11 सदस्यीय संस्था हो और इसके सारे फैसले ये सदस्य ही लें, जबकि टीम अन्ना का कहना था कि अगर इसे मान लिया तो लोकपाल जन्म लेने से पहले ही मर जाएगा, क्योंकि इन सदस्यों के लिए सारी शिकायतें सुनना नामुमकिन होगा। इसलिए दूसरी एजेंसियों की तरह इसे भी अपने अधिकारियों को अपने अधिकार सौंपने की व्यवस्था होनी चाहिए। सरकार ने टीम अन्ना के इस सुझाव को भी नकार दिया कि अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच लोकपाल ही करे। सरकारी रवैये से टीम अन्ना असंतुष्ट दिखी। अरविंद केजरीवाल ने कहा कि कैबिनेट तो सरकार की ही है, ऐसे में वे जो चाहेंगे वही होगा। लगता है कि सरकार ने तय कर लिया है कि उसे एक कमजोर लोकपाल बनाना है। इसीलिए वे बैठक में कोई तर्क नहीं देते सिर्फ फैसले सुनाते हैं। उन्होंने कहा, टीम अन्ना अगली बैठक के बहिष्कार के बजाय उसमें शामिल होकर जनता का पक्ष रखेगी। जब सरकार ने मसौदे पर साझेदारी खत्म कर दी तो अन्ना तुरंत इसका बहिष्कार क्यों नहीं कर देते? केजरीवाल ने कहा, सरकार की तो मंशा यही है कि हम मसौदा समिति छोड़ दें, जबकि हम चाहते हैं कि लोकपाल के सख्त प्रावधान इस समिति की कार्यवाही का हिस्सा बनें। सरकार मनमाने प्रावधानों को समिति का नतीजा नहीं बता सकती। कैबिनेट तो वैसे भी ड्राफ्ट में तब्दीली कर सकता था, लेकिन अब जनता के सामने यह साफ होगा कि सरकार की मंशा क्या है। टीम अन्ना के अनुसार सरकार की मंशा स्पष्ट होने के बाद वे फिर से जनता के बीच जाएंगे.
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