Wednesday, June 29, 2011

संघीय ढांचे का असम्मान


लेखक केंद्रीय सत्ता पर गैर-कांग्रेसी राज्य सरकारों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगा रहे हैं...
तानाशाही और लोकतंत्र साथ-साथ नहीं चलते। लोकतंत्र का मुख्य तत्व है सत्ता का विकेंद्रीकरण। संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच सत्ता संचालन का सुस्पष्ट बंटवारा है। बावजूद इसके सोनिया नियंत्रित केंद्र सरकार गैरकांग्रेसी राज्यों के साथ भेदभाव कर रही हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार केंद्र के भेदभाव से खफा हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र पर गुजरात के साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार का आरोप लगाया है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री येद्दयुरप्पा को कांग्रेसी राज्यपाल के जरिए परेशान किया जा रहा है। राज्यपाल ने कर्नाटक सरकार की बर्खास्तगी की रिपोर्ट भेजी थी। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश को आवंटित कोयले की मात्रा न दिए जाने सहित ढेर सारे केंद्रीय भेदभावों से परेशान हैं। गरीबों को चावल और गेहूं बांटने की योजना के लिए लोकप्रिय छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह बेहद हलकान हैं। केंद्र ने राज्य का खाद्यान्न कोटा घटा दिया है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड व झारखंड की सरकारें भी केंद्र के रवैये से पीडि़त हैं। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने भी केंद्र सरकार पर भेदभाव के आरोप लगाए हैं। संघीय ढांचे पर प्रश्नचिह्न है। सरकारिया आयोग की सिफारिशें मिमिया रही हैं। संविधान के खोल में असंवैधानिक तानाशाही है। बिहार पिछड़ा राज्य है। केंद्रीय मानक के अनुसार इस समय डेढ़ करोड़ परिवार गरीबी की रेखा के नीचे (बीपीएल) हैं, लेकिन केंद्र 65 लाख बीपीएल का ही खाद्यान्न व किरोसिन दे रहा है। बिहार के पास सिर्फ 150 मेगावाट विद्युत उत्पादन की क्षमता है। बिजली उत्पादन इकाइयों के ढेर सारे प्रस्ताव हैं। इनके लिए कोल लिंकेज की जरूरत है। केंद्र हीलाहवाला कर रहा है। प्रधानमंत्री सड़क योजना की स्वीकृत राशि देने में भी बिहार भेदभाव का शिकार है। कई औद्योगिक घराने एथनॉल उत्पादन की इकाइयां लगाने को तैयार हैं, लेकिन केंद्र की अड़ंगेबाजी है। गुजरात की सरदार सरोवर परियोजना के बारे में नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री को जनवरी 2011 में पत्र भी लिखा था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। सरकार ने सरदार पटेल की कर्मभूमि कर्मसाद, गांधी की जन्मभूमि पोरबंदर व गांधीनगर में जेएनयूआरएम योजना लागू करने का आग्रह किया था। केंद्र ने गांधीजी की जन्मभूमि वाले प्रस्ताव को ही स्वीकृति दी। सरदार पटेल से जुड़े प्रस्ताव को टरका दिया। केंद्र ने गुजरात का किरोसिन तेल कोटा भी 33 प्रतिशत घटाया है। गुजरात सरकार ने रसोई गैस की पाइपलाइन घरों तक बिछाई है। केंद्र ने पाइपलाइन बिछाने के कार्य को भी गलत बताया है। कांग्रेसी नेतृत्व संविधान और राज्यों द्वारा किए गए विकास का सम्मान नहीं करता। गैरकांग्रेसी सरकारों की लोकप्रियता उसे बर्दाश्त नहीं हैं। नरेंद्र मोदी या नीतीश कुमार की तो कतई नहीं। गुजरात अब अपनी जरूरत से ज्यादा बिजली बना रहा है। मोदी कम बिजली वाले राज्यों को बिजली देने को तैयार हैं, लेकिन केंद्र ग्रिड संयोजन नहीं करता। गुजरात कपास उत्पादक है। निर्यात की सुविधा नहीं। किसानों का नुकसान जारी है। कर्नाटक में रेशम धागे का आयात शुल्क 30 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत करने से कर्नाटक की क्षति हुई। मध्य प्रदेश की थर्मल इकाइयों को मध्य प्रदेश के ही कोयला ब्लाकों से कोयला नहीं मिलता। केंद्र चाहता है कि वह अन्य राज्यों से कोयला उठाए, घाटा उठाए, सरकारी खर्च बढ़े। मानेसर पावर परियोजना के काम को बंद करने के केंद्रीय आदेश हैं। उत्तराखंड का विशेष औद्योगिक पैकेज काटा गया। बवाल हुआ तो 2010 तक बढ़ाया गया। पर्वतीय क्षेत्र में स्थित इस राज्य के औद्योगीकरण और विकास पर भी केंद्र की वक्रदृष्टि है। केंद्र नक्सली हिंसा के विरुद्ध राज्यों को हर तरह की मदद का दावा भी करता है, लेकिन केंद्र ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह को हैसियत बताने के लिए माओवादी संगठनों से रिश्तों के आरोपी विनायक सेन को योजना आयोग का सलाहकार बनाया है। तमिलनाडु की जयललिता से अभी उम्मीदें हैं, वरना उनके साथ भी यही भेदभाव होना है। सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने भी संघीय ढांचे पर हमला किया है। सांप्रदायिक हिंसा की रोकथाम के नाम पर लाया जा रहा विधेयक राज्य के क्षेत्राधिकार का अतिक्रमण है। गुजरात विधानसभा ने संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक दो बार पारित किया। राजस्थान की तत्कालीन भाजपा सरकार ने भी ऐसा ही विधेयक पारित करवाया था, लेकिन दोनों ही राज्यों में राज्यपाल ने अनुमति नहीं दी। कांग्रेस शासित महाराष्ट्र में ऐसा ही कानून (मकोका) लागू है। बिहार विधानसभा द्वारा पारित आधा दर्जन विधेयक राजभवन में हैं। झारखंड सरकार के दंड प्रक्रिया संशोधन, झारखंड विद्युत शुल्क, प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय व वस्तुओं पर प्रवेश कर के अधिनियम राष्ट्रपति के विचारार्थ लंबित हैं। हिमाचल प्रदेश के 3 विधेयक 2009 से व 2 विधेयक 2010 से राजभवन में लंबित हैं। कर्नाटक के राज्यपाल ने तो गोहत्या निरोधक विधेयक भी लटका रखा है। गुजरात में संगठित अपराधों वाले विधेयक के साथ ही पांच अन्य विधेयक राष्ट्रपति के यहां व सात विधेयक राज्यपाल के यहां लंबित हैं। मध्य प्रदेश सरकार के भी छह विधेयक राष्ट्रपति भवन में हैं, इसमें गोरक्षा निषेध व संगठित अपराध रोकने वाले विधेयक शामिल हैं। संविधान निर्माताओं ने बहुत सोच-विचार के बाद संघीय ढांचा बनाया था, लेकिन कांग्रेस संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करके ही सत्ता चलाती है। चौथे आम चुनाव तक केंद्र व राज्यों में टकराव कांग्रेस का अंदरूनी मामला था। फिर गैर-कांग्रेसी सरकारें बनीं। कांग्रेसी केंद्र ने स्वाभाविक ही भेदभाव किया। राज्यपालों का दुरुपयोग हुआ, सरकारों की बर्खास्तगी का खेल चला। योजना आयोग जैसी असंवैधानिक सत्ता ने राज्यों को औकात बताई। कर राजस्व के वितरण पर वित्त आयोग की व्यवस्था है, लेकिन सरकारी भेदभाव जारी है। संप्रग के शासन में सभी संवैधानिक संस्थाओं की शक्ति घटी है। प्रधानमंत्री का प्राधिकार घटा है। महामहिम राज्यपालों को मोहरा बनाया गया। मुख्य सतर्कता आयुक्त की गरिमा कांग्रेस ने ही गिराई है। लोक लेखा समिति में कांग्रेस प्रायोजित हुल्लड़ हुआ। नियंत्रक महालेखाकार (कैग) पर भी टिप्पणियां की गईं। न्यायपालिका को भी हदें बताई गईं। राज्य नाम की संवैधानिक इकाई व मुख्यमंत्री जैसी संस्थाएं भी कांग्रेसी कोप का शिकार हैं। परिणाम सामने है। आम जन संविधान तंत्र और संसदीय जनतंत्र को ही दोषी ठहरा रहे हैं, लेकिन सारा दोष कांग्रेसी राजनीतिक संस्कृति का है। (लेखक उप्र विधानपरिषद के सदस्य हैं)

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