लोकपाल बिल पर सरकार चौतरफा दबाव में आ गई है। अन्ना हजारे ने ताल ठोंक दिया है कि अगर सरकार लोकपाल बिल पर सकारात्मक रुख नहीं अपनाती है तो चाहे गोली खानी पड़े या लाठी, 16 अगस्त से वे अनशन पर जरूर जाएंगे। विपक्षी दल भी सरकार को खूब आड़े हाथों ले रहे हैं। सरकार भले ही अन्ना की धमकी को हवा में उड़ाने की कोशिश कर रही हो, लेकिन सच यह है कि वह अंदर से डरी हुई है। वह नहीं चाहती है कि अन्ना दोबारा अनशन पर जाएं और देश में सरकार के खिलाफ माहौल बनें। इसलिए उसने साफ कर दिया है कि अन्ना को अनशन करने की अनुमति नहीं दी जाएगी, लेकिन अन्ना सरकार के तेवर से खौफ खाने वाले नहीं हैं। ऐसे में सरकार अब सर्वदलीय बैठक बुलाकर अपने ऊपर पड़ रहे दबाव को कम करना चाहती है। अन्ना टीम को साधने के लिए सरकार पहले ही साम, दाम, दंड और भेद की नीति अपना चुकी है। लेकिन नाकामी हाथ लगने के बाद अब वह राजनीतिक दलों के सिरों को जोड़कर अपने बचाव में एक नई पैंतरेबाजी कर रही है। सरकार को आभास हो चला है कि बाबा रामदेव के सत्याग्रह को नृशंसतापूर्वक कुचलने के बाद अगर वह एक बार फिर ऐसा हथकंडा अपनाती है तो देश में जनआक्रोश भड़कते देर नहीं लगेगी। ऐसे में सरकार आत्मघाती कदम उठाने के बजाए विपक्षी दलों को अपने पाले में खड़ा कर नागरिक समाज के नुमाइंदों को हाशिए पर धकेल देना चाहती है, लेकिन सरकार को अपनी इस ओछी मुहिम में शायद ही सफलता मिले। सर्वदलीय बैठक में विपक्षी दल आंख बंदकर सरकार की दलीलों पर हां-हूं करने के बजाए कई तरह के सवाल पूछ सकते हैं, जो सरकार को चुभ सकते हैं। मसलन, जब लोकपाल बिल मसौदा समिति का गठन किया गया, उस वक्त सरकार ने उनसे रायशुमारी करना क्यों नहीं जरूरी समझा? मसौदा समिति में विपक्षी दलों के सदस्यों को भी शामिल क्यों नहीं किया गया? इसके अलावा मसौदा समिति में शामिल सरकारी नुमाइंदों के आचरण-व्यवहार को लेकर भी विपक्षी दल सवाल दाग सकते हैं। मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी रामलीला मैदान में सत्याग्रहियों पर हिंसक कार्रवाई और रामदेव के आंदोलन में उसे और आरएसएस को लपेटे जाने पर भी सवाल उठा सकती है। सर्वदलीय बैठक में और भी ऐसे तमाम सवाल उभर सकते हैं, जिनका जवाब देना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। लोकपाल पर सरकार के दोमुंहे आचरण को लेकर विपक्षी दल पहले से ही हमलावर हैं। ऐसे में सरकार की मंशा के मुताबिक वे लोकपाल बिल पर अपने पत्ते खोल देंगे, संभव नहीं लगता है। पिछले दिनों प्रणब मुखर्जी द्वारा लोकपाल पर मांगे गए सुझावों को गैर-कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के अलावा राजनीतिक दलों ने न सिर्फ नकार दिया, बल्कि इस कवायद को संसदीय प्रक्रिया के विपरीत भी
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