Wednesday, June 29, 2011

संप्रग के बड़बोले मंत्री


तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता माया और मुलायम की तरह नहीं हैं, जो बिना मांगे समर्थन देने के लिए होड़ मचाए रहते हैं। पिछले दिनों प्रधानमंत्री से मिलने के बाद जयललिता का गृहमंत्री पी चिदंबरम पर सधा हुआ वार करना अपने पुराने हिसाब को चुकता करने की तैयारी है। उन्होंने आरोप लगाया है कि 2009 लोकसभा चुनाव में चिदंबरम ने धोखाधड़ी कर चुनाव जीता है। जयललिता का यह हमला भले ही सरकार और विपक्ष के राजनीतिक धुरंधरों को अचंभित करता हो, लेकिन उनके द्वारा सियासी शतरंज की बिसात पर चला जाने वाला हर दांव उनकी झोली को भरने वाला ही होता है। तमिलनाडु में करुणानिधि को बेदखल करने के बाद अब वह दिल्ली से भी उनका पत्ता साफ कर देना चाहती हैं। जयललिता ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में चिदंबरम के बने रहने को लेकर भी सवाल उठा दिया है। जयललिता की मानें तो चिदंबरम को गलत तरीके से गत लोकसभा चुनावों में विजयी करार दिया गया है। आज की तारीख में यह मामला न्यायालय में है। अपने बचाव में चिदंबरम ने जयललिता के आरोप को बेबुनियाद बताया और इसे न्यायालय की अवमानना तक कहा है, लेकिन जयललिता ने चिदंबरम के खिलाफ बयानबाजी कर उनके खिलाफ माहौल तैयार कर दिया है। अवसर की ताक में जुटी भाजपा ने भी गृहमंत्री को अपने निशाने पर ले लिया है। उसने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले में उन पर धन खाने का गंभीर आरोप लगाया है। भाजपा ने मीडिया के हवाले से आरोप लगाया है कि तिहाड़ जेल में बंद पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा ने एक कॉरपोरेट लॉबिस्ट से कहा था कि स्पेक्ट्रम घोटाले में चिदंबरम ने काफी धन लिया है। जयललिता और भाजपा दोनों ही एक सुर में चिदंबरम का इस्तीफा मांग रहे हैं। विपक्ष के अलावा सत्ता पक्ष के सहयोगी दलों को भी पी चिदंबरम फूटी आंख नहीं सुहा रहे हैं। उनका बड़बोलापन और कार्य करने का शाही अंदाज सरकार के अन्य नुमाइंदों को बिल्कुल ही रास नहीं आ रहा है। सरकार में बैठे लोगों को लग रहा है कि चिदंबरम के बड़बोलेपन से समाज में अच्छा मैसेज नहीं जा रहा है। पिछले दिनों आतंकवाद के मसले पर उन्होंने जिस तरह भगवा आतंकवाद का जुमला उछालकर हिंदू समाज की घेराबंदी की, उससे उनकी छवि बिगड़ी है। सरकार के कई नुमाइंदों ने भी भगवा रंग से आतंकवाद को जोड़े जाने पर अपनी नाराजगी जताई। चिदंबरम की बची-खुची साख को रामलीला मैदान में घटी हिंसक घटना ने चौपट कर दिया। माना जा रहा है कि उन्हीं के इशारे पर सत्याग्रहियों पर लाठियां तोड़ी गई। गृहमंत्री के तौर पर चिदंबरम प्रधानमंत्री से यह कहलवाने में भले ही सफल रहे हों कि इसके अलावा कोई और विकल्प नहीं था, लेकिन सरकार अब भी डरी हुई है। गृहमंत्री की नाकामी की यह कोई पहली बानगी नहीं है। अभी पिछले दिनों ही पाकिस्तान को भेजी गई 50 वांछित आतंकियों-अपराधियों की सूची में शामिल दो आतंकियों की भारत में मौजूदगी को लेकर सरकार की तो नाक कटी ही, गृहमंत्री की भी खूब फजीहत हुई। लेकिन गृहमंत्री तो ठहरे चिकना घड़ा। वह अपनी नाकामी का ठीकरा किसी और के सिर फोड़ते देखे गए। विकिलीक्स ने भी गृहमंत्री की राजनीतिक गंभीरता की पोल खोलकर रख दी है। विकिलीक्स ने खुलासा किया कि भारत में अमेरिका के तत्कालीन राजदूत टिमोथी रोएमर से चिदंबरम ने कहा था कि अगर केवल दक्षिण और पश्चिम भारत होते तो भारत कहीं अधिक वृद्धि दर हासिल करता, क्योंकि देश के शेष भाग ने वृद्धि को रोक रखा है। विकास की अतार्किक अवधारणा और बुनियादहीन आर्थिक सिद्धांतों के अंध पैरोकार चिदंबरम की इस देशतोड़क चुगली ने उनकी ठग मानसिकता के सच को उजागर कर दिया। पिछले दिनों दिल्ली उच्च न्यायालय के बाहर बम विस्फोट की घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। खुफिया तंत्र की नाकामी के कारण ही एक बार फिर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में सिमी और इंडियन मुजाहिद्दीन जैसे आतंकी संगठन सिर उठाने लगे हैं। हो सकता है कि कल गृहमंत्री को इसमें भी भगवा रंग देखने को मिल जाए। संसद पर हमला करने वाले अफजल गुरु की फांसी में हो देरी के लिए शीला सरकार को दोषी ठहराने वाले गृहमंत्री अब क्यों इस मसले पर चुप्पी साधे हुए हैं, जबकि फाइल उनके मंत्रालय में पहुंच चुकी है। बहरहाल, सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतनी नाकामियों के बाद भी क्या गृहमंत्री अपने पद पर बने रहेंगे? संभावना कम ही लगती है। जिस दिन दस जनपथ को जयललिता की अदा भा गई, चिदंबरम की आहुति तय है।


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