उत्तर प्रदेश में प्यास बुझाने की राह में भी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता आड़े आ रही है। पर्याप्त जलापूर्ति के लिए राज्य सरकार की तीन दर्जन पेयजल परियोजनाएं तो केंद्र सरकार के स्तर पर ही लंबित हैं। जवाहर लाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्यूवल मिशन के तहत तकरीबन आठ सौ करोड़ रुपये की उक्त पेयजल परियोजनाएं को लगभग ढाई वर्ष पहले केंद्र को भेजा गया था, लेकिन केंद्र ने इनके लिए अब तक धन नहीं दिया है। राज्य सरकार इसे राजनीतिक विद्वेष के कारण उप्र के साथ नाइंसाफी बता रही है। प्रमुख सचिव नगर विकास दुर्गा शंकर मिश्र का कहना है सूबे में 630 नगर है जिसमें से 71 के लिए केंद्र सरकार ने जेएनएनयूआरएम के तहत धनराशि दी है। शेष नगरों के लिए भी केंद्र सरकार से धन मांगा जा रहा है ताकि उनके निवासियों को भी पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराया जा सके। जनता को मानक के मुताबिक जलापूर्ति सुनिश्चित करने के लिए 67 अरब रुपये का आकलन किया गया है। इसमें 13 नगर निगम वाले शहरों के लिए 39 अरब, 194 पालिका परिषदों के लिए 20 अरब व 423 नगर पंचायत वाले छोटे नगरों के लिए आठ अरब चाहिए। केंद्र का कहना है कि मिशन के तहत यूपी को दी जाने वाली धनराशि की परियोजनाएं स्वीकृत कर दी गई हैं, इसलिए अब अन्य प्रस्तावों पर विचार करना मुमकिन नहीं है। जल निगम के प्रबंध निदेशक एके श्रीवास्तव बताते हैं कि जेएनएनयूआरएम के तहत अभी 2682 करोड़ रुपये की 75 पेयजल परियोजनाओं पर ही काम चल रहा है। इस पर अब तक 13 अरब रुपये से ज्यादा खर्च हो चुके हैं। इसमें 645 नए ट्यूबवेल स्थापित किए जा रहे हैं। 221 भूमिगत व 348 ओवरहेड टैंक बनाने के साथ ही नौ हजार किलोमीटर की पेयजल लाइन का निर्माण हो रहा है। 808.5 एमएलडी क्षमता के सात नए जलकल बनाए जा रहे हैं। 27 सौ करोड़ रुपये की परियोजनाओं के बावजूद अन्य नगरों में पर्याप्त जलापूर्ति के लिए 40 अरब रुपये की और जरूरत होगी। प्रमुख सचिव नगर विकास मिश्र का कहना है कि जलापूर्ति के संबंध में बेंचमार्क तय कर इस साल न केवल जलापूर्ति व्यवस्था सुधारने पर जोर है बल्कि वसूली में भी पांच फीसदी का इजाफा करने के निर्देश दिए गए हैं। इसके लिए सन् 2015 तक 13वें वित्त आयोग के तहत केंद्र से मिलने वाले ढाई-तीन हजार करोड़ रुपये का बड़ा हिस्सा जलापूर्ति पर खर्च करने के निर्देश दिए गए हैं। बढ़ती आबादी व घटते भूजल स्तर से सूबे का पेयजल संकट गहराता जा रहा है। ऐसे में सतही जल की परियोजनाएं ही स्थायी तौर पर पेयजल संकट से निपटने में कारगर होंगी लेकिन इसमें सबसे बड़ी बाधा भारी-भरकम धनराशि की व्यवस्था करना है। नहरों में पानी न आने तथा पटते तालाबों के कारण सिंचाई के लिए भी टयूबवेलों की बोरिंग होती जा रही है। इससे भूगर्भीय जल भंडार पर लगातार दबाव बढ़ता जा रहा है। जानकारों के अनुसार नगरीय क्षेत्र में अभी सालाना 150 खरब क्यूबिक मीटर भूगर्भ जल की निकासी हो रही है, तेजी से बढ़ती आबादी के मद्देनजर वर्ष 2050 तक यह निकासी बढ़कर 600 खरब क्यूबिक मीटर सालाना पहुंचने का अनुमान है.
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