भ्रष्टाचार और काले धन के मुद्दे पर सरकार को दंडवत करा रहे बाबा रामदेव के लिए भी अब आगे की लड़ाई जटिल हो गई है। समर्थकों की लगातार बढ़ती भीड़ ने जहां अपेक्षाओं का भारी दबाव बढ़ा दिया है, वहीं अन्ना हजारे ने सरकारी रवैये के प्रति सचेत कर बाबा के सामने एक लकीर खींच दी है। यानी अब सरकार के साथ किसी समझौते का फैसला अकेले करना रामदेव के लिए संभव नहीं होगा। शनिवार से शुरू होने वाले सत्याग्रह से पहले शुक्रवार को केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल और सुबोध कांत सहाय के साथ बातचीत के लिए रामदेव पहुंचे तो सिर पर अपेक्षाओं का बोझ लेकर। दरअसल कुछ दिनों पहले ही अन्ना हजारे के आंदोलन में समर्थकों का दबाव दिख चुका है, जबकि अन्ना की चेतावनी ने दबाव और बढ़ा दिया है। अपने अनुभवों के आधार पर अन्ना ने गुरुवार को बाबा को आगाह किया था कि सरकार के जुबानी आश्वासनों पर भरोसा कर लड़ाई छोड़ दी तो धोखा मिल सकता है। ऐसे में उनके सामने एक लकीर खींच दी गई है कि सरकार के आश्वासन मात्र से सत्याग्रह खत्म नहीं हो सकता है, बल्कि पिछले दिनों टीम अन्ना से उभरे मतभेदों के बाद रामदेव के सामने यह चुनौती भी होगी कि उनकी मांगों का हश्र लोकपाल जैसा न हो। दूसरी तरफ बाबा पर समर्थकों का नैतिक दबाव है। काला धन के साथ-साथ सबको चुभने वाले भ्रष्टाचार व क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाई जैसी मांग कर रामदेव ने एक बड़े वर्ग को साथ में जोड़ लिया है। अब उन पर जिम्मेदारी होगी कि अधिकतर मांगें ठोस और कानूनी रूप से मानी जाएं। बाबा खुद महसूस करते हैं कि योग के जरिए देश-विदेश में बनी छवि का भविष्य इस लड़ाई के नतीजों पर भी निर्भर करेगा। सहाय के भरोसे बाबा को नरम करने की कोशिश रामदेव को साधने के लिए सरकार मंत्रिमंडल में शामिल पर्यटन मंत्री सुबोधकांत सहाय के साथ उनके रिश्तों पर आसरा लगाए बैठी है। शुक्रवार की वार्ता में कुछ मुद्दों पर बनी सहमति के बाद अब सहाय पर दबाव है कि वह खुद रामदेव और उनके खास सहयोगी बालकिशन को सत्याग्रह टालने या जल्द खत्म करने के लिए राजी करें। सुबोधकांत को उनकी अमेरिका यात्रा बीच में खत्म कर वापस बुलाया गया है तो विशेष मकसद से। दरअसल, कांग्रेस मंत्रिमंडल में वह अकेले हैं जिनके साथ रामदेव के व्यक्तिगत संबंध हैं। बताते हैं कि रामदेव के आश्रम में आयुर्वेद का जिम्मा संभाल रहे बालकिशन के साथ भी सहाय के अच्छे रिश्ते हैं। रांची प्रवास के वक्त रामदेव सहाय के घर भी जाते रहे हैं, जबकि कुछ अवसरों पर सहाय ने रामदेव का बचाव किया है। खासतौर पर तब जबकि रामदेव की दवाईयों में हड्डियों के मिश्रण का आरोप लगा था। उस समर्थन की कीमत अब वसूलने की कोशिश हो रही है। यही कारण है कि सरकार के रणनीतिकारों की सूची से अलग रहने वाले सहाय को इस बार सबसे अहम जिम्मेदारी दी गई है। रामदेव के साथ होने वाली हर वार्ता में उन्हें मौजूद रहने को कहा गया है। अनशन के पीछे आरएसएस का हाथ : दिग्विजय बाबा रामदेव पर निशाना साधते हुए कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने बाबा रामदेव के अनशन के पीछे आरएसएस का हाथ होने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, अगर आप राजनीति करना चाहते है तो मैदान में आइए। बाबा को समर्थन के मुद्दे पर संतों में भी मतभेद हरिद्वार, जागरण संवाददाता : अपने आंदोलन को लेकर फिलहाल बाबा रामदेव संतों की बड़ी जमात का समर्थन नहीं जुटा पाए हैं। उन्हें समर्थन देने के मुद्दे पर संत समाज दो गुटों में बंटा नजर आ रहा है। संत समाज का प्रतिनिधित्व करने वाली अखाड़ा परिषद के दोनों गुटों में उन्हें समर्थन देने के मुद्दे पर अभी तक आम सहमति नहीं बन पाई है। दोनों गुट बेहद सावधानी बरत रहे हैं और कोई भी प्रतिक्रिया देने से बच रहे हैं। अखाड़ा परिषद के बाबा को समर्थन देने के मामले में कोई निर्णय न लेने से ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। इस वजह से कोई भी समर्थन मुद्दे पर खुलकर सामने आने हिचकिचा रहा है। यहां तक कि कई प्रमुख संतों ने नाम न छापने और कुछ भी कहने से ही इंकार दिया। इसके विपरीत उनका विरोध कर रहे संत उनके खिलाफ खुलकर बयान दे रहे हैं। अखिल भारतीय संत समिति के प्रवक्ता बाबा हठयोगी खुलकर उनका विरोध कर रहे हैं।
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