Wednesday, June 15, 2011

बंगाल में बदलाव की बानगी


आज की राजनीति में जहां आश्वासन पूरा करने से ज्यादा उसे भूल जाने का चलन ज्यादा है, वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने चुनावी घोषणा पत्र में किए गए वादों को पूरा करने में गहरी संलग्नता से जुटी हुई हैं। बीते सात जून को राज्य प्रशासन के साथ गोरखा जनमुक्ति मोर्चा की बैठक के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पिछले दो दशकों से जारी दार्जिलिंग समस्या को सुलझाने का एलान किया। दोनों पक्षों के बीच एक समझौता हुआ है, जिसके तहत अलग राज्य के बजाय स्वायत्त परिषद का गठन कर उसे और ज्यादा अधिकार देने की बात कही गई है। यह समझौता ममता सरकार की बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि इससे पहाड़ में शांति कायम होने व वहां विकास योजनाओं के क्रियान्वयन में मदद मिलने की आस बढ़ी है। मुख्यमंत्री ने उत्तर बंगाल के जिलेवार विकास के लिए दो सौ करोड़ रुपये आवंटित किए हैं और उत्तर बंगाल में भी मुख्यमंत्री का एक सचिवालय बनाने की घोषणा की है। यह सर्वविदित है कि उत्तर बंगाल के छह जिलों के पिछड़े होने के कारण ही वहां कभी अलग गोरखालैंड तो कभी अलग कामतापुर राज्य की मांग उठती रही है। वहां के पिछड़ेपन की एक वजह प्रशासनिक अनुपस्थिति भी रही है। उत्तर बंगाल में मुख्यमंत्री बैठेंगी तो वहां के लोग भी उनसे मिलकर अपनी बात रख सकेंगे और मुख्यमंत्री भी वस्तुस्थिति का जायजा ले सकेंगी। ममता ने माओवाद प्रभावित इलाकों के विकास के लिए भी अलग मॉडल बनाया है और वहां उनकी सरकार ने दो रुपये किलो चावल देना शुरू कर दिया है। समझा जाता है कि इससे माओवाद के मुद्दे को हल करने की राह निकल सकती है। ममता ने वादे के अनुरूप राजनीतिक कैदियों की समीक्षा के लिए भी रिव्यू कमेटी बना दी है। कुल मिलाकर ममता बनर्जी द्वारा पश्चिम बंगाल की बागडोर थामने के साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में बदलाव की बानगी दिखने लगी है। नई मुख्यमंत्री द्वारा अब तक छह सरकारी अस्पतालों का दौरा किए जाने व भविष्य में कभी भी औचक निरीक्षण का एलान करने का असर यह हुआ है कि डाक्टर व कर्मचारी अब समय पर अस्पताल पहुंचने लगे हैं। राज्य सरकार के दूसरे विभागों में भी इसका असर पड़ा है। ममता ने मुख्यमंत्री बनते ही नौकरशाहों के सामंती रवैये पर जिस तरह नकेल कसी है उस तरह की कार्रवाई वाम राज में कभी नहीं होने के कारण ही बंगाल में कार्य संस्कृति क्रमश: नष्ट होती गई। वाम राज में कोई कार्रवाई नहीं होने की सबसे बड़ी वजह यह थी कि नीचे के कर्मचारी से लेकर ऊपर के अफसर तक सभी पार्टी कैडर या समर्थक थे। ममता के सामने यह चुनौती भी है कि वाम राज में दो लाख करोड़ रुपये के कर्ज में डूबे बंगाल को कैसे उबारा जाए। राज्य के आर्थिक हालात को देखते हुए ममता ने अपने मुख्यमंत्री कक्ष की साज-सज्जा पर खर्च हुए दो लाख रुपये का भुगतान खुद किया। दूसरे मंत्री व अफसर भी इससे प्रेरणा लेंगे, यह उम्मीद लाजिमी है। जबर्दस्त आर्थिक संकट से गुजर रहे बंगाल को आर्थिक पटरी पर लाने के लिए ममता ने देश के वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के कोलकाता आवास में जाकर जरूरी बैठक की। प्रणब ने ममता को हर संभव सहयोग का आश्वासन भी दिया है। राज्य की आर्थिक चुनौती से जूझने के साथ ही ममता बंगाल को एक नया बंगाल बनाने के लिए आकुल-व्याकुल हैं। उनमें तरक्की की कितनी तड़प है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने रतन टाटा को पत्र लिखकर राज्य में निवेश करने का न्यौता दिया है। सिंगुर में भी अनिच्छुक किसानों की 400 एकड़ जमीन को छोड़कर बाकी 600 एकड़ जमीन टाटा को देने को वे सहमत हो गई हैं। अमेरिका के अप्रवासी उद्योगपतियों से बातचीत के बाद ममता ने अपनी देख-रेख में एनआरआई सेल बनाया है। चटर्जी समूह के प्रमुख पूणर्ेंदु चटर्जी ने ममता सरकार में उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी और मुख्य सचिव समर घोष से मिलने के बाद बंगाल में आठ परियोजनाएं शुरू करने का एलान किया। अगले तीन वर्षो में इन परियोजनाओं के शुरू होने पर दो लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। गेल ने भी बंगाल में बड़ा निवेश करने का एलान किया है। ममता बनर्जी सरकार को जापान सरकार से लेकर लार्सन एंड टुब्रो तक से निवेश के प्रस्ताव भी मिले हैं। इस सबसे स्पष्ट है कि ममता भी बंगाल में निवेश ला सकती हैं और उद्योगों की स्थापना करवा सकती हैं। ममता को पता है कि बंगाल में शिक्षा का प्रसार तो है, नौकरियों की कमी है। कदाचित इसीलिए वे नए उद्योग लाने में जुट गई हैं ताकि निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ें। ममता ने निवेशकों को लुभाने के लिए दो ठोस कदम उठाए हैं। पहला कदम है-कोलकाता का सुंदरीकरण। ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री बनते ही ग्रीन कोलकाता, क्लीन कोलकाता की मुहिम तेजी से चलाई जा रही है। नई सरकार का दूसरा कदम राज्य की कानून एवं व्यवस्था की स्थिति को सुधारने से संबंधित है। बंगाल बदल रहा है। ममता भी बदल रही हैं। वे अब राजनीतिक तौर पर ज्यादा परिपक्वता का परिचय दे रही हैं। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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