दिल्ली के रामलीला मैदान में सत्याग्रहियों पर ढ़ाए गए जुल्म की हर तरफ हो रही आलोचना से बेपरवाह केंद्र की संप्रग सरकार देश से माफी मांगने के बजाए अपने भोथरे तर्क से यह सिद्ध करने में जुटी है कि उसने सत्याग्रहियों के साथ जैसा भी सलूक किया वह अनुचित नहीं था और वे इसी के हकदार थे। दूसरी ओर दस जनपथ के अत्यंत करीबी कांग्रेसी महासचिव दिग्विजय सिंह सत्याग्रहियों पर हुई बर्बरता पर संवेदना जताने की बजाय लोगों का मानमर्दन और पगड़ी उछालने का काम कर रहे हैं। अपने राजनीतिक विरोधियों को नीचा दिखाने के लिए वह जिस भाषा का प्रयोग कर रहे हैं उसे लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता है। दिग्विजय सिंह के सियासी आचरण और फिसलती जुबान को देखकर नहीं लगता है कि उनमें देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी के एक जिम्मेदार महासचिव होने की तनिक भी मर्यादा बची है। विश्व के सर्वाधिक वांछित आतंकवादी ओसामा-बिन-लादेन को ओसामाजी कहकर पुण्य लाभ बटोरने वाले दिग्विजय सिंह से पूछा जा सकता है कि आखिर उन्हें देश का हर भगवाधारी संत और समाज सुधारक ठग और आतंकी ही क्यों नजर आता है और हर आतंकवादी अपना भाई-बंधु क्यों? दिग्विजय सिंह की देशभक्ति और राजनीतिक गंभीरता किसी से छिपी नहीं है। वह चाहे जितना ढिंढोरा पीटें, लेकिन उनकी असलियत देश के सामने आ ही चुकी है। बात चाहे दिल्ली के बाटला हाउस कांड की हो या मुंबई पर आतंकी हमले की, दिग्विजय सिंह का बयान देश के लोगों को कभी रास नहीं आया, बल्कि तकलीफदेह ही रहा। इंस्पेक्टर एमसी शर्मा और हेमंत करकरे जैसे वीर जवानों की शहादत पर भी वह राजनीति करने से बाज नहीं आए। सियासी फायदे के लिए आजमगढ़ के संजरपुर गांव जाकर आतंकियों के आगे घडि़याली आंसू बहाना उनकी फरेबी सियासत की महज एक बानगी भर है। देश में होने वाली हर आतंकी घटना का रिश्ता-नाता हिंदू संगठनों से जोड़ने की उनकी कुप्रवृत्ति यह बताने के लिए काफी है कि हिंदू जनमानस और भारतीय संस्कृति को लेकर उनके मन में कितना जहर भरा हुआ है। समझ में नहीं आता है कि हिंदू संगठनों को बदनाम करने का ठेका उठा रखे दिग्विजय सिंह की जुबान उस वक्त क्यों खामोश हो जाती है जब नई दिल्ली में कश्मीरी अलगाववादियों के नेता गिलानी और नक्सलियों की पैरोकार अरुंधती राय जैसे लोग सरकार की बांह मरोड़कर निकल जाते हैं। देखा यही जा रहा है कि दिग्विजय सिंह सत्ता के अहंकार में हिंदू संगठनों, समाजसेवियों और विपक्षी दलों के खिलाफ लगातार जहर उगल रहे हैं। हाल ही में उन्होंने सारी राजनीतिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर देश के मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी को एक नचैया पार्टी कह दिया। सवाल उठता है कि क्या इस तरह का शर्मिंदगी भरा बयान एक जिम्मेदार राजनीतिक व्यक्ति का हो सकता है? उनके जैसे व्यक्ति इस तरह की उम्मीद तो नहीं ही की जा सकती। वैसे सुषमा स्वराज ने दिग्विजय सिंह को गुलामी की मानसिकता से ग्रस्त व्यक्ति बताकर अपना हिसाब-किताब बराबर कर लिया है। इसी तरह दिग्विजय सिंह ने बाबा रामदेव के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण के बारे में भी अनाप-शनाप आरोप लगाए। उन्होंने यहां तक कह डाला कि बालकृष्ण नेपाल भाग गया है। वह भारतीय नागरिक नहीं है। वह नेपाल से जुर्म करके भारत आया है। उसके पास फर्जी पासपोर्ट है और न जाने क्या-क्या? दिग्विजय सिंह को अपने अंतर्मन में झांककर देखना चाहिए कि कौन भारतीय है और कौन विदेशी, लेकिन एक बड़ा सवाल यह है कि दिग्विजय सिंह को इस तरह की बयानबाजी करने का अधिकार आखिर किसने दे रखा है? अब जब बालकृष्ण देश के सामने आ गए हैं और अपनी आपबीती भी सुना दिए हैं तो क्या ऐसे में यह सवाल नहीं उठता है कि दिग्विजय सिंह देश में बिना वजह भ्रम फैलाकर समाज को अराजकता की ओर ले जाने का प्रयास कर रहे हैं? दिग्विजय सिंह राजनीतिक और सामाजिक मर्यादा का कितना खयाल रख रहे हैं यह इसी से समझा जा सकता है कि वह बाबा रामदेव पर एक अरसे से अनर्गल बयानबाजी करते देखे जा रहे हैं। कभी उन्हें आरएसएस का एजेंट बता रहे हैं तो कभी भाजपा का मुखौटा और कभी महाठग। क्या आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद या अन्य कोई भी हिंदू संगठन का सदस्य होना या उसकी विचारधारा से सहमत होना गुनाह है? दिग्विजय सिंह को यह हक किसने दे रखा है कि वह किसी संगठन को यह प्रमाण देते फिरें कि कौन राष्ट्रभक्त है और कौन देशद्रोही? दिग्विजय सिंह को खुद अपनी सरकार के शर्मिदगी भरे आचरण पर ध्यान टिकाना चाहिए कि संसद का हमलावर अफजल गुरु जिसे उच्चतम न्यायालय फांसी की सजा सुना चुका है वह सरकार के संरक्षण में मौज काट रहा है। कसाब की सुरक्षा पर सरकार पानी की तरह पैसा बहा रही है। दिग्विजय सिंह इस बात से अनभिज्ञ नहीं होंगे कि उनकी सरकार ने नक्सलियों के पैरोकार विनायक सेन जिन्हें न्यायालय द्वारा सजा सुनाया गया है को योजना आयोग में सदस्य बनाया गया है। दिग्विजय सिंह की सरकार को तनिक भी सुध नहीं है कि कश्मीर के पांच लाख पंडित समुदाय आज दिल्ली की सड़कों पर खानाबदोशी का जीवन गुजार रहा है। दिग्विजय सिंह जैसे व्यक्ति ने आज तक इस मसले पर एक शब्द तक नहीं कहा आखिर इसकी वजह क्या है? अगर दिग्विजय सिंह और उनकी सरकार के लिए ओसामा और अफजल गुरु महत्वपूर्ण हो सकते हैं तो फिर कश्मीरी पंडित क्यों नहीं जो अपने ही राज्य से बेदखल किए गए हैं? सच तो यह है कि दिग्विजय सिंह राजनीति और समाज दोनों की नैतिकता को भूल रहे हैं, अन्यथा संत जैसा आचरण व्यवहार रखने वाले और लाखों-लाख लोगों को निरोग बनाने वाले बाबा रामदेव को वह ठग नहीं कहते। अगर बाबा रामदेव ठग होते तो उनके पीछे लाखों का हुजूम नहीं होता और न ही उनके एक आह्वान पर लोग दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन करने आते। दिग्विजय सिंह के गैर-जिम्मेदराना बयान को लेकर देश भर में कड़ी प्रतिक्रिया देखी गई। स्वयं केंद्र सरकार को समर्थन दे रहे मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस को ही देश का सबसे बड़ा ठग बता डाला। भारतीय जनता पार्टी के अलावा सिविल सोसाइटी ने भी दिग्विजय की निंदा की। बिहार के मुजफ्फरपुर में बाबा के एक भक्त ने आहत होकर दिग्विजय सिंह पर मुकदमा भी ठोंक दिया है, लेकिन ताज्जुब होता है कि कांग्रेस पार्टी दिग्विजय सिंह के इस तरह के बयानों के प्रति तनिक भी विचलित नहीं है। फिर क्यों न माना जाए कि दिग्विजय सिंह की इस तरह की बयानबाजी के पीछे कांग्रेस पार्टी है और उन्हें ऐसा कहने के लिए उकसा रही है। विपक्षी दल तो दिग्विजय सिंह की मानसिक दृढ़ता को लेकर ही अब सवाल उठाने लगे हैं। सभी को आश्चर्य हो रहा है कि दिग्विजय सिंह परिस्थितियों को समझे बगैर देश में हर घटने वाली घटनाओं को आएएसएस, विहिप और भाजपा से जोड़कर बयानबाजी क्यों कर रहे हैं? हाल ही देखने को मिला कि दिल्ली के कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कांफे्रंस के दौरान पार्टी महासचिव जनार्दन द्विवेदी को जूता दिखाने वाले फर्जी पत्रकार सुनील कुमार को दिग्विजय सिंह ने तत्काल आरएसएस और विहिप का आदमी बता डाला। डर इस बात का भी है कि कहीं उनके ऐसे बयानों से देश का माहौल न खराब हो जाए। आरएसएस ने दिग्विजय सिंह के इस अनुचित बयान पर गहरी आपत्ति व्यक्त की है और कानूनी कार्रवाई करने की बात भी कही है। देखने वाली बात यह होगी कि अपनी जुबानी जंग से अपने विरोधियों को मात देने में जुटे दिग्विजय सिंह और उनकी सरकार के गृहमंत्री पी. चिदंबरम कब तक देशवासियों की आंख में धूल झोंकते रहेंगे। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
Wednesday, June 15, 2011
बाबा के खिलाफ दिग्विजय की जुबानी हिंसा
दिल्ली के रामलीला मैदान में सत्याग्रहियों पर ढ़ाए गए जुल्म की हर तरफ हो रही आलोचना से बेपरवाह केंद्र की संप्रग सरकार देश से माफी मांगने के बजाए अपने भोथरे तर्क से यह सिद्ध करने में जुटी है कि उसने सत्याग्रहियों के साथ जैसा भी सलूक किया वह अनुचित नहीं था और वे इसी के हकदार थे। दूसरी ओर दस जनपथ के अत्यंत करीबी कांग्रेसी महासचिव दिग्विजय सिंह सत्याग्रहियों पर हुई बर्बरता पर संवेदना जताने की बजाय लोगों का मानमर्दन और पगड़ी उछालने का काम कर रहे हैं। अपने राजनीतिक विरोधियों को नीचा दिखाने के लिए वह जिस भाषा का प्रयोग कर रहे हैं उसे लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता है। दिग्विजय सिंह के सियासी आचरण और फिसलती जुबान को देखकर नहीं लगता है कि उनमें देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी के एक जिम्मेदार महासचिव होने की तनिक भी मर्यादा बची है। विश्व के सर्वाधिक वांछित आतंकवादी ओसामा-बिन-लादेन को ओसामाजी कहकर पुण्य लाभ बटोरने वाले दिग्विजय सिंह से पूछा जा सकता है कि आखिर उन्हें देश का हर भगवाधारी संत और समाज सुधारक ठग और आतंकी ही क्यों नजर आता है और हर आतंकवादी अपना भाई-बंधु क्यों? दिग्विजय सिंह की देशभक्ति और राजनीतिक गंभीरता किसी से छिपी नहीं है। वह चाहे जितना ढिंढोरा पीटें, लेकिन उनकी असलियत देश के सामने आ ही चुकी है। बात चाहे दिल्ली के बाटला हाउस कांड की हो या मुंबई पर आतंकी हमले की, दिग्विजय सिंह का बयान देश के लोगों को कभी रास नहीं आया, बल्कि तकलीफदेह ही रहा। इंस्पेक्टर एमसी शर्मा और हेमंत करकरे जैसे वीर जवानों की शहादत पर भी वह राजनीति करने से बाज नहीं आए। सियासी फायदे के लिए आजमगढ़ के संजरपुर गांव जाकर आतंकियों के आगे घडि़याली आंसू बहाना उनकी फरेबी सियासत की महज एक बानगी भर है। देश में होने वाली हर आतंकी घटना का रिश्ता-नाता हिंदू संगठनों से जोड़ने की उनकी कुप्रवृत्ति यह बताने के लिए काफी है कि हिंदू जनमानस और भारतीय संस्कृति को लेकर उनके मन में कितना जहर भरा हुआ है। समझ में नहीं आता है कि हिंदू संगठनों को बदनाम करने का ठेका उठा रखे दिग्विजय सिंह की जुबान उस वक्त क्यों खामोश हो जाती है जब नई दिल्ली में कश्मीरी अलगाववादियों के नेता गिलानी और नक्सलियों की पैरोकार अरुंधती राय जैसे लोग सरकार की बांह मरोड़कर निकल जाते हैं। देखा यही जा रहा है कि दिग्विजय सिंह सत्ता के अहंकार में हिंदू संगठनों, समाजसेवियों और विपक्षी दलों के खिलाफ लगातार जहर उगल रहे हैं। हाल ही में उन्होंने सारी राजनीतिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर देश के मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी को एक नचैया पार्टी कह दिया। सवाल उठता है कि क्या इस तरह का शर्मिंदगी भरा बयान एक जिम्मेदार राजनीतिक व्यक्ति का हो सकता है? उनके जैसे व्यक्ति इस तरह की उम्मीद तो नहीं ही की जा सकती। वैसे सुषमा स्वराज ने दिग्विजय सिंह को गुलामी की मानसिकता से ग्रस्त व्यक्ति बताकर अपना हिसाब-किताब बराबर कर लिया है। इसी तरह दिग्विजय सिंह ने बाबा रामदेव के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण के बारे में भी अनाप-शनाप आरोप लगाए। उन्होंने यहां तक कह डाला कि बालकृष्ण नेपाल भाग गया है। वह भारतीय नागरिक नहीं है। वह नेपाल से जुर्म करके भारत आया है। उसके पास फर्जी पासपोर्ट है और न जाने क्या-क्या? दिग्विजय सिंह को अपने अंतर्मन में झांककर देखना चाहिए कि कौन भारतीय है और कौन विदेशी, लेकिन एक बड़ा सवाल यह है कि दिग्विजय सिंह को इस तरह की बयानबाजी करने का अधिकार आखिर किसने दे रखा है? अब जब बालकृष्ण देश के सामने आ गए हैं और अपनी आपबीती भी सुना दिए हैं तो क्या ऐसे में यह सवाल नहीं उठता है कि दिग्विजय सिंह देश में बिना वजह भ्रम फैलाकर समाज को अराजकता की ओर ले जाने का प्रयास कर रहे हैं? दिग्विजय सिंह राजनीतिक और सामाजिक मर्यादा का कितना खयाल रख रहे हैं यह इसी से समझा जा सकता है कि वह बाबा रामदेव पर एक अरसे से अनर्गल बयानबाजी करते देखे जा रहे हैं। कभी उन्हें आरएसएस का एजेंट बता रहे हैं तो कभी भाजपा का मुखौटा और कभी महाठग। क्या आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद या अन्य कोई भी हिंदू संगठन का सदस्य होना या उसकी विचारधारा से सहमत होना गुनाह है? दिग्विजय सिंह को यह हक किसने दे रखा है कि वह किसी संगठन को यह प्रमाण देते फिरें कि कौन राष्ट्रभक्त है और कौन देशद्रोही? दिग्विजय सिंह को खुद अपनी सरकार के शर्मिदगी भरे आचरण पर ध्यान टिकाना चाहिए कि संसद का हमलावर अफजल गुरु जिसे उच्चतम न्यायालय फांसी की सजा सुना चुका है वह सरकार के संरक्षण में मौज काट रहा है। कसाब की सुरक्षा पर सरकार पानी की तरह पैसा बहा रही है। दिग्विजय सिंह इस बात से अनभिज्ञ नहीं होंगे कि उनकी सरकार ने नक्सलियों के पैरोकार विनायक सेन जिन्हें न्यायालय द्वारा सजा सुनाया गया है को योजना आयोग में सदस्य बनाया गया है। दिग्विजय सिंह की सरकार को तनिक भी सुध नहीं है कि कश्मीर के पांच लाख पंडित समुदाय आज दिल्ली की सड़कों पर खानाबदोशी का जीवन गुजार रहा है। दिग्विजय सिंह जैसे व्यक्ति ने आज तक इस मसले पर एक शब्द तक नहीं कहा आखिर इसकी वजह क्या है? अगर दिग्विजय सिंह और उनकी सरकार के लिए ओसामा और अफजल गुरु महत्वपूर्ण हो सकते हैं तो फिर कश्मीरी पंडित क्यों नहीं जो अपने ही राज्य से बेदखल किए गए हैं? सच तो यह है कि दिग्विजय सिंह राजनीति और समाज दोनों की नैतिकता को भूल रहे हैं, अन्यथा संत जैसा आचरण व्यवहार रखने वाले और लाखों-लाख लोगों को निरोग बनाने वाले बाबा रामदेव को वह ठग नहीं कहते। अगर बाबा रामदेव ठग होते तो उनके पीछे लाखों का हुजूम नहीं होता और न ही उनके एक आह्वान पर लोग दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन करने आते। दिग्विजय सिंह के गैर-जिम्मेदराना बयान को लेकर देश भर में कड़ी प्रतिक्रिया देखी गई। स्वयं केंद्र सरकार को समर्थन दे रहे मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस को ही देश का सबसे बड़ा ठग बता डाला। भारतीय जनता पार्टी के अलावा सिविल सोसाइटी ने भी दिग्विजय की निंदा की। बिहार के मुजफ्फरपुर में बाबा के एक भक्त ने आहत होकर दिग्विजय सिंह पर मुकदमा भी ठोंक दिया है, लेकिन ताज्जुब होता है कि कांग्रेस पार्टी दिग्विजय सिंह के इस तरह के बयानों के प्रति तनिक भी विचलित नहीं है। फिर क्यों न माना जाए कि दिग्विजय सिंह की इस तरह की बयानबाजी के पीछे कांग्रेस पार्टी है और उन्हें ऐसा कहने के लिए उकसा रही है। विपक्षी दल तो दिग्विजय सिंह की मानसिक दृढ़ता को लेकर ही अब सवाल उठाने लगे हैं। सभी को आश्चर्य हो रहा है कि दिग्विजय सिंह परिस्थितियों को समझे बगैर देश में हर घटने वाली घटनाओं को आएएसएस, विहिप और भाजपा से जोड़कर बयानबाजी क्यों कर रहे हैं? हाल ही देखने को मिला कि दिल्ली के कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कांफे्रंस के दौरान पार्टी महासचिव जनार्दन द्विवेदी को जूता दिखाने वाले फर्जी पत्रकार सुनील कुमार को दिग्विजय सिंह ने तत्काल आरएसएस और विहिप का आदमी बता डाला। डर इस बात का भी है कि कहीं उनके ऐसे बयानों से देश का माहौल न खराब हो जाए। आरएसएस ने दिग्विजय सिंह के इस अनुचित बयान पर गहरी आपत्ति व्यक्त की है और कानूनी कार्रवाई करने की बात भी कही है। देखने वाली बात यह होगी कि अपनी जुबानी जंग से अपने विरोधियों को मात देने में जुटे दिग्विजय सिंह और उनकी सरकार के गृहमंत्री पी. चिदंबरम कब तक देशवासियों की आंख में धूल झोंकते रहेंगे। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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