Wednesday, June 15, 2011

बातचीत नहीं रुकनी चाहिए


बाबा रामदेव द्वारा भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन की घोषणा करने के तुंरत बाद ही केंद्र सरकार हरकत में आ गई थी। आंदोलन की शुरुआत से पहले ही सरकार ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए बाबा रामदेव के साथ अपनी बातचीत भी शुरु कर दी थी। अपनी इसी नीति के तहत दिल्ली हवाई अड्डे पर भारत सरकार के चार मंत्रियों और कुछ वरिष्ठ नौकरशाहों ने बाबा रामदेव द्वारा उठाए गए मुद्दों पर लंबी बात की। सरकार ने बाबा के साथ उनका सत्याग्रह शुरु होने के बाद भी दूसरे दौर की बात की थी। बाबा और सरकार के बीच हुई बातचीत में दोनों तरफ से यह दावा किया गया कि 90 प्रतिशत से ज्यादा मुद्दों पर उनकी सहमति बन गई है और इस बारे में दोनों ही पक्षों द्वारा मीडिया को भी तत्काल ही सूचित कर दिया गया। सहमति के करीब-करीब पहुंचे आंदोलन के संयोजकों और सरकार के बीच अचानक तनाव इस कदर बढ़ा कि सरकार ने शांतिपूर्वक चलने वाले इस आंदोलन को दमनचक्र चलाकर कुचल दिया। इस दमन के विरुद्व जनहित को देखते हुए तत्काल संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सरकार और संबंधित विभागों से जवाब मांगा है। अन्ना हजारे और उसके बाद बाबा रामदेव द्वारा भ्रष्टाचार के विरुद्व छेड़े गए इस आदोलन के चलते देश में भ्रष्टाचार विरोधी महौल बनने लगा था। इसी से ध्यान हटाने के मकसद से कांग्रेस पार्टी और सरकार से जुड़े कुछ लोगों ने एक गैर-राजनीतिक जनता के आंदोलन को राजनीतिक रंग देने में कोई कसर नही छोड़ी। सरकार ने अपनी गलती को छिपाने के लिए कभी इसे भाजपा तसे कभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ जोड़ने की कोशिश की। यहां समझने वाली बात यह है कि अगर यह संघ का आंदोलन होता तो क्या दिल्ली का कैथोलिक चर्च रामदेव के साथ मंच साझा करता? दिल्ली कैथोलिक चर्च के प्रवक्ता फादर डोमनिक इमैनुएल, दिल्ल्ी कैथोलिक आर्च डायसिस के आर्च बिशप विंसेंट कांसिसियों के बेहद करीबी और सरकार द्वारा सांप्रदायिकता विरोधी पुरस्कार से नवाजे गए यह पादरी ऐसे मंच पर कभी नहीं जाते जिस पर संघ की परछाई भी नजर आती। यहां यदि यह मान भी लिया जाए कि बाबा रामदेव को संघ का समर्थन है तो क्या हुआ? आखिर संघ भी तो एक सामाजिक संगठन ही है और अगर वह इस तरह के किसी अभियान को अपना समर्थन देता है तो उसमें सरकार के लिए परेशानी वाली क्या बात हो सकती है। संघ जयप्रकाश नारायण की संर्पूण क्रांति और वीपी सिंह के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों को भी पूर्व में समर्थन दे चुका है। सरकार ने तब क्यों नहीं विरोध किया जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने समाजसेवी अन्ना हजारे के आंदोलन को अपना समर्थन दिया था। इसका मतलब यह तो नहीं है कि इन आंदोलनों का नेतृत्व करने वाले लोग संघ के स्वयंसेवक हो गए। सरकारी डंडे की ताकत से दिल्ली से खदेड़ दिए गए बाबा रामदेव हरिद्वार में भी अपना अनशन जारी रखे हुए है तो क्या सरकार उन्हें देश से बाहर फेंक देगी। सरकार और बाबा के बीच तनाव बना हुआ है और बातचीत का सिलसिला रुक गया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बाबा रामदेव और केंद्र सरकार के बीच बातचीत दोबारा शुरू करने की मांग की है। सरकार भी बार बार यह कह रही है कि वह भ्रष्टाचार पर गंभीर है और अन्ना हजारे के साथ वह लोकपाल बिल बनाने को संकल्पबद्ध है। काले धन को वापस लाने के प्रयास हो रहे है। सरकार यह भी कह रही है कि बाबा रामदेव के साथ उनकी मांगों पर लगभग सहमति बन गई थी तो फिर सवाल है कि आखिर समस्या क्या है और क्यों बाबा को अपना अनशन जारी रखना पड़ रहा है। आंदोलनकारी निर्दोष लोगों पर हुई दमनत्मक कार्यवाही पर सुप्रीम कोर्ट ने जो संज्ञान लिया है उम्मीद की चाहिए कि उसका सरकार पर कुछ न कुछ असर अवश्य पड़ेगा। बाबा रामदेव ने अपनी तरफ से पहल करते हुए व्यक्तिगत रूप से सरकार को क्षमा करने की बात कहकर सकारात्मक संकेत दिए हैं। मेरा मानना है कि इस पहल का लाभ उठाते हुए सरकार को बातचीत दोबारा शुरू करने के लिए फिर से विचार करना चाहिए। सिविल सोसाइटी के लोगों के साथ बातचीत का सिलसिला किसी भी हाल में रुकना नहीं चाहिए, क्योंकि इस मुद्दे का समाधान बातचीत से ही निकलेगा। इसलिए बेहतर यही होगा कि नए सिरे से बातचीत शुरू की जाए।

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