गोपीनाथ मुंडे के बगावती तेवरों ने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को गहरे संकट में डाल दिया है। पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व मुंडे को गंवाना भी नहीं चाहता है और उनके सामने समर्पण करते हुए भी नहीं दिखना चाहता है। इसके लिए वह उनकी अधिकांश मांगों को मानने के लिए तैयार भी है, लेकिन मुंडे के कांग्रेस के साथ संपर्क और पार्टी तोड़ने की कोशिश से उसकी मुसीबतें बढ़ी हैं। इसी बीच, महाराष्ट्र में अपने विधायकों एवं सांसदों को संभालने के लिए पार्टी ने मंगलवार को मुंबई में इन सभी की बैठक भी बुलाई है। मुंडे को लेकर भाजपा नेतृत्व पिछले तीन दिनों से माथापच्ची कर रहा है। सोमवार को उनके द्वारा पार्टी तोड़ने की कोशिशों की भनक लगने के बाद शाम सात बजे आडवाणी के निवास पर वरिष्ठ नेताओं की आपात बैठक शुरू हुई। इसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी, पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह, लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, वेंकैया नायडू, अनंत कुमार, रामलाल मौजूद थे। बैठक में मुंडे के पार्टी से जाने से होने वाले नुकसान का आकलन करने के साथ उनको रोके रहने के लिए उनकी मांगों पर गंभीरता से विचार किया गया। सूत्रों के अनुसार भाजपा नेतृत्व मुंडे को अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी की कमान सौंपने एवं विधान परिषद में नेतृत्व परिवर्तन न करने के लिए तो तैयार है, लेकिन वह मुंडे को राज्य का प्रभारी बनाने और केंद्र से वापस राज्य में भेजने के पक्ष में नहीं है। बैठक के बाद वेंकैया नायडू ने कहा कि पिछली बैठक में सुषमा स्वराज और राजनाथ सिंह नहीं थे, इसलिए उनके साथ भी चर्चा की गई है। सूत्रों का कहना है कि पार्टी अब अपनी तरफ से कोई और पहल करने के बजाय मुंडे के अगले कदम को देखना चाहती है। इसके पहले रविवार को देर रात पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के साथ गडकरी और मुंडे की बैठक भी हुई, लेकिन इसमें भी कोई हल नहीं निकला। सोमवार को जब मुंडे के कांग्रेस में जाने और 15 विधायकों एवं तीन सांसदों को तोड़ने की भनक लगी तो पार्टी ने इसे गंभीरता से लिया। गडकरी ने प्रदेश अध्यक्ष सुधीर मुंगटीवार को मुंबई रवाना करते हुए वहां सभी विधायकों, सांसदों व प्रदेश पदाधिकारियों की बुधवार सुबह 11 बजे बैठक बुलाने के निर्देश दिए ताकि मुंडे के पार्टी तोड़ने के मंसूबों को पलीता लगाया जा सके। इन सारे घटनाक्रमों राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी की मुसीबतें भी बढ़ गई हैं, क्योंकि इस बार संकट उनके गृह राज्य से सामने आया है। अगर वह मुंडे के सामने झुकते हैं तो अपने गृह प्रदेश में ही कमजोर हो जाएंगे और अगर मुंडे पार्टी से बाहर जाते हैं तो सबको साथ लेकर साथ चलने की उनकी क्षमता पर पार्टी के भीतर ही सवाल खड़े होने लगेंगे।
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