लोकपाल विधेयक को राजनीतिक प्रक्रिया के चक्रव्यूह में लाने की शुरुआत सरकार ने अपने घटक दलों यानी यूपीए की बैठक के साथ की है। प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश को लोकपाल की जांच के दायरे में लाने के सिविल सोसाइटी के प्रस्ताव का विरोध कर रही कांग्रेस अपने कुनबे में तो समर्थन हासिल करने में सफल रही है। अब प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में लोकपाल मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाने का फैसला हुआ है। प्रबल संभावना है कि सर्वदलीय बैठक 3 जुलाई को बुलाई जाए। सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी की उपस्थिति में हुई यूपीए बैठक में सरकार के सभी अहम घटक एकजुट दिखे। वे इस बात पर सहमत रहे कि नीतिगत विषयों पर सिविल सोसाइटी से विचार-विमर्श करना तो ठीक, लेकिन उनके आगे विधायिका का समर्पण घातक होगा। तृणमूल सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने तो दिन में ही बिना किसी लाग-लपेट के टीम अन्ना को राजनीति में आने की चुनौती दे दी। ममता ने कहा कि व्यवस्था परिवर्तन के लिए उसके अंदर आना होगा, जो लोग भ्रष्टाचार से लड़ने की बात कर रहे हैं, वे आगे आएं, वह स्वागत करेंगी। खास बात है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद दिल्ली आईं ममता ने तो यूपीए की बैठक में शिरकत की, लेकिन राजधानी में होने के बावजूद तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि बैठक में नहीं गए। उन्होंने संसदीय दल के डीएमके नेता व पूर्व मंत्री टी.आर. बालू को भेजा। डीएमके एकमात्र यूपीए घटक है जो प्रधानमंत्री और न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में लाने का समर्थन कर रहा है। वहीं, एनसीपी ने तो खुलकर इसका विरोध किया। एनसीपी महासचिव और प्रवक्ता डी.पी. त्रिपाठी ने कहा कि हम पूरे देश में सबसे पहले से यह कहते आ रहे हैं कि प्रधानमंत्री और न्यायपालिका के ऊपर कोई नहीं हो सकता। लोकपाल को द्वारपाल होना चाहिए, न कि दंडपाल। यूपीए की बैठक के बाद नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री फारुख अब्दुल्ला ने बताया कि प्रणब मुखर्जी ने सभी दलों के सामने लोकपाल पर दोनों ड्राफ्ट रखे और उनका ब्यौरा दिया। अब सरकार जल्द ही सर्वदलीय बैठक बुलाएगी। सूत्रों के मुताबिक 3 जुलाई को सर्वदलीय बैठक हो सकती है। प्रधानमंत्री पर मंगलवार को हुई बैठक में आईयूएमएल के ई. अहमद, कांग्रेस के वरिष्ठ मंत्री ए.के. एंटनी और सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल भी शामिल रहे।
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