लोकपाल विधेयक पर सरकारी रुख से बेजार अन्ना हजारे की टीम अब दूसरे राजनीतिक दलों को भी अपने साथ खड़ा करने की कोशिश में जुट गई है। यह और बात है कि उन्हें भी अहसास है कि लोकपाल की उनकी सभी शर्तो पर शायद ही कोई पार्टी उनके साथ खड़ी होगी। शुक्रवार की उनकी पहली कवायद में जहां भाजपा ने सलाह मशविरा का हवाला देकर फिलहाल मुद्दे को टाल दिया। वहीं भाकपा ने पीएम को दायरे में लाने पर तो समर्थन दिया पर न्यायाधीशों के मामले में असहमति जता दी। पहली अगस्त से शुरू हो रहे मानसून सत्र से पहले टीम अन्ना दूसरे दलों को भी टटोलने की कोशिश करेगी। पिछले दिनों में सरकार की ओर से आरएसएस का राजनीतिक हथियार बनने का आरोप झेल रही टीम अन्ना की नई कोशिश अहम है। संसद में विधेयक पेश होने से पहले जहां टीम अन्ना राजनीतिक दलों से बातचीत कर सरकार पर दबाव बनाने में जुट गई है। वहीं मतभेद बरकरार रहे तो स्पष्ट हो जाएगा कि वह किसी राजनीतिक दल के प्रभाव में नहीं है। इस क्रम में शुक्रवार को अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी और मनीष सिसोदिया ने भाजपा के संसदीय दल के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी व भाकपा महासचिव एबी वर्धन से मुलाकात की। दोनों नेताओं के साथ मुलाकात में अन्ना की टीम ने लोकपाल पर अपने मसौदे व सरकार के मसौदे के अंतर को सामने रखा और उनके विचार जानने की कोशिश की है। आडवाणी ने फिलहाल कोई विचार नहीं दिया। उन्होंने कहा कि कहा कि भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी व दोनों सदनों में विपक्ष के नेता सुषमा स्वराज व अरुण जेटली इस समय दिल्ली से बाहर हैं। इनके लौटने के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता इस बारे में विचार करेंगे। आडवाणी ने आश्वस्त किया कि सर्वदलीय बैठक से पहले भाजपा नेता उनसे बात करेंगे। बर्द्धन ने कुछ मुद्दों पर अपनी सहमति और असहमति स्पष्ट कर दी। पीएम को दायरे में लाने पर तो वह अन्ना के साथ हैं, पर जजों को वह इससे बाहर रखना चाहते हैं। उनका मानना था कि जजों का मामला न्यायाधीश उत्तरदायित्व विधेयक में होना चाहिए। संसद के अंदर सांसदों के चरित्र व व्यवहार के मामले में लोकपाल के अधिकार को लेकर भी बर्द्धन को थोड़ी आपत्ति थी। हालांकि उन्हें यह समझाने की कोशिश की गई कि संसद सदस्यता खत्म करने का अधिकार सदन के संबंधित अध्यक्षों को ही होगा। उनके प्रस्तावित विधेयक में लोकपाल को केवल भ्रष्टाचार के मामले की जांच करने का अधिकार होगा। मानसून सत्र से पहले टीम दूसरे राजनीतिक दलों से भी मिलेगी।
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