करीब छह साल के वनवास के बाद भाजपा में लौटीं उमा ने माना कि उनका भाजपा से बाहर कोई वजूद नहीं है। वे राम और रोटी की लड़ाई भाजपा में रहकर ही बेहतर तरीके से लड़ सकती हैं। न्यूज 24 की अनुराधा प्रसाद के साथ उनके साप्ताहिक कार्यक्रम आमने-सामने में उन्होंने स्वीकार किया कि मध्य प्रदेश के पिछले विधान सभा चुनावों के नतीजों ने उनकी आंखें खोल दीं। उन्हें तब लगा कि भाजपा से बाहर रहकर अपने लिए जगह बनाने के संबंध में सोचना उनका अहंकार था। साक्षात्कार के अंश : उमा जी, एक दौर में आप बहुत ही जिद्दी मानी जाती थीं। जो फैसला कर लिया, उससे हटती नहीं थीं। क्या भाजपा से बाहर रहकर आपको जन्नत की हकीकत समझ आ गई? कुछेक पल सोचकर वे बताने लगीं कि अटल जी और आडवाणी जी ने उन्हें बहुत Fेह दिया। वे जब मात्र आठ साल की थीं तो उनके पास कार थी। वे बहुत ही कम उम्र में दुनिया भर में जाने लगीं। अटल जी की सरकार में मंत्री रहते हुए वे जब किसी बात को लेकर अड़ जाती थीं तो प्रधानमंत्री उन्हें स्वयं अपने घर भोजन के लिए ले जाते थे। इन सब बातों का उनके व्यक्तित्व पर असर तो पड़ा। तो आप उत्तर प्रदेश की चुनावी रणभूमि में दिग्विजय सिंह के साथ दो-दो हाथ करने के लिए तैयार हैं? पहले की तुलना में काफी शांत दिख रहीं उमा भारती कहने लगीं, बेशक। इस वक्त तो मेरा सारा फोकस उत्तर प्रदेश के आगामी चुनाव पर है। मैं वहां की भीषण गरीबी और दीनता से दुखी हूं। वहां पर दिग्विजय सिंह के साथ जोरदार मुकाबला होगा। उनका वहां पर भी वही हश्र होगा जो उनका मैंने पहले मध्य प्रदेश और बिहार में किया था। पर हम एक-दूसरे पर हमला करते वक्त मर्यादाओं में ही रहेंगे। उमा जी, आप अपने और दिग्विजय सिंह को लेकर तो कह रही हैं कि आप दोनों मर्यादाओं में रहेंगे, पर आपके राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी की तो जुबान खूब फिसलती..? गडकरी का बचाव करते हुए वे कहने लगीं, मुझे तो उनका एक भी बयान आपत्तिजनक नहीं लगा है। मुझे एक बात समझ नहीं आती कि कांग्रेसी महात्मा गांधी और इंदिरा गांधी के लिए कुछ भी सुन सकते हैं, पर वे सोनिया पर किसी भी टिप्पणी करने वाले पर क्यों पिल पड़ते हैं। आपका यूपी में दुश्मन नंबर एक कौन है? उत्तर प्रदेश के विगत बीस सालों के राजनीतिक इतिहास के पन्नों को खोलते हुए वे बताने लगीं कि वहां पर असली मुकाबला तो भाजपा और बसपा के बीच ही होगा। कांग्रेस और मुलायम कहीं नहीं हैं। फिर कहने लगीं, उत्तर प्रदेश में मुकाबला मेरा, दीदी (मायावती) और भतीजे (राहुल गांधी) के बीच ही होगा.
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