Wednesday, June 1, 2011

बेबसी की दूसरी सालगिरह


बगैर बड़े शोर-शराबे के यूपीए-2 सरकार के दो साल गुजर गये। पूरे समय भ्रष्टाचार की गूंज रही। महंगाई जहां रुकने का नाम नहीं ले रही वहीं सरकारी कामकाज के मानदंडों पर वह च्युत दिखी। सरकार इन अहम सवालों को हल करने में पूरी तरह विफल रही, जिससे आम जन में काफी निराशा है। सरकार को उनकी निराशा से उपजे आक्रोश का कोपभाजन भी होना पड़ रहा है। ऐसे में उसकी साख दांव पर है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यूपीए-2 के जारी रिपोर्ट कार्ड में इस सचाई को स्वीकार भी किया है। उन्होंने कहा है किटू जी स्पेक्ट्रम से जुड़े घटनाक्रम, राष्ट्रमंडल खेलों से संबंधित खरीद ठेकों के मामले तथा राज्य सरकारों से जुड़े ऐसे ही मामले संयोगवश एक साथ उठे। इन घटनाओं के कारण हमारे बहुत से संवेदनशील नागरिकों को प्रशासन की दशा और भ्रष्टाचार के फैलाव पर गहरी चिंता हुई। ये चिंताए तर्कसंगत हैं। यूपीए सरकार इससे निपटने के लिए ठोस कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है। हम उचित कानूनी प्रक्रिया के जरिये दोषियों को दंड देंगे और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए उचित कदम उठाएंगे।यह इंगित करता है कि सरकार की साख पर भ्रष्टाचार का दाग सबसे बड़ा है, जिसके चलते उसकी छवि को काफी नुकसान हुआ है। इस दाग को धोने और जनता का विश्वास हासिल करने के लिए सरकार को अब बहुत कुछ करके दिखाना होगा। क्योंकि जनता समझ रही है कि सरकार उसके हितों के लिए क्या कर रही है? यूपीए-2 की दूसरी सालगिरह की र्चचा करने से पहले पिछली पृष्ठभूमि पर नजर डालना जरूरी हो गया है। अपने पहले कार्यकाल में परमाणु करार पर लेफ्ट के समर्थन वापसी के बावजूद सरकार नहीं झुकी। प्रधानमंत्री उस समय जनमानस को यह संदेश देने में सफल हुए थे कि देश की कीमत पर राजनीति उन्हें बर्दाश्त नहीं है।
इसी तरह 26/11 मुम्बई हमले के बाद सरकार ने पाकिस्तान को घेरने तथा आतंकवाद से लड़ने के लिए दृढ़ता दिखायी थी। इसके चलते जनता के बीच ईमानदार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अलग साख थी, जिसको 2009 के चुनाव में कांग्रेस ने भुनाया। उसने दो सौ से अधिक सीटें जीती और सत्ता में वापसी की। भाजपा ने उस समय प्रधानमंत्री पर जितना हमला किया, वह अपनी साख गंवाती गयी। यह कहना अतिशयोक्ति होगी कि साख की पूंजी पर सवार होकर कांग्रेस ने पुन: सत्ता में वापसी की है। लोगों को इस बार उससे बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी किंतु उसके कामकाज की शैली और एक के बाद एक घोटालों ने जनता को काफी निराश किया है। प्रधानमंत्री की छवि कमजोर और बेबस प्रधानमंत्री की बन गयी है। उनके इस बदले रूप से जनता आहत है और लोग झुंझलाहट के साथ कहने लगे हैं कि आखिर सरकार को हो क्या गया है? घोटाले दर घोटाले उजागर हो रहे हैं और सरकार उनमें उलझकर रह गयी है। लोगों को लगने लगा है कि ऊंचे पदों पर बैठे रसूखदार लोग देश को लूटने में लगे हैं और जेबें भरने का यह काम आम आदमी की कीमत पर हो रहा है। क्योंकि भ्रष्टाचार संस्था का रूप ले चुका है। यही कारण है कि आज अदालतें शासन की संस्थाओं की तरह काम कर रही हैं। टू जी स्पेक्ट्रम मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो रही है। यद्यपि इस मामले में पूर्व टेलीकॉम मंत्री .राजा और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि की बेटी सांसद कनिमोझी सहित कई नौकरशाह कॉरपोरेट कम्पनियों के आला अधिकारी जेल में हैं फिर भी इसकी गुत्थी सुलझने का नाम नहीं ले रही है। यह कमजोर सरकारी तंत्र की पोल खोलता है। इतना ही नहीं, कालेधन और सीवीसी (केंद्रीय सतर्कता आयुक्त) की नियुक्ति के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी किसी सरकार को शर्मसार करने के लिए काफी है। काले धन के सवाल पर मार्च में जब न्यायमूर्ति सुदर्शन रेड्डी ने केंद्र की निष्क्रियता पर अपने गुस्से का इजहार किया तो सरकार हरकत में आयी और तब कहीं जाकर कालेधन के सरगना हसन अली को मुम्बई के प्रवर्तन निदेशालय से सम्मन भेजा गया। इतना ही नहीं, सीवीसी की नियुक्ति को लेकर सरकार के साथ चार महीने की खींचतान के बाद इसी 3 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने सीवीसी की नियुक्ति रद्द कर दी। देश के इतिहास में यह पहला अवसर है जब प्रधानमंत्री द्वारा की गयी नियुक्ति रद्द की गयी हो। न्यायालय के इस तीखे तेवर से सरकार की खूब किरकिरी हुई और सरकार बैकफुट पर चली गयी। इन मामलों में लोगों को उम्मीद थी कि सरकार तंत्र की गड़बड़ी को दूर करेगी किंतु ऐसा हुआ नहीं। उसके आचरण से लोगों को लगा कि वह राजा को सजा दिलाने की जगह बचाने और पूरे मामले में लीपापोती में लगी है। दूसरे, देश में भ्रष्टाचार रोकने के लिए ऐसे शख्स को बिठाया था, जो खुद संदेह के घेरे में था। इन घटनाओं से लोगों का प्रधानमंत्री से भरोसा टूटा। इस भरोसे की पुनर्वापसी के लिए वह क्या करते हैं, यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। महंगाई रोकने में भी सरकार पूरी तरह विफल रही है। उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं और सरकार का उस पर कोई नियंतण्रनहीं रह गया है। परिणामस्वरूप आमजन बेहाल है। पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने के एक ही दिन बाद सरकार ने पेट्रोल के दाम में पांच रुपये की वृद्धि कर दी। हालांकि सरकार इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमतों का हवाला दे रही है। आलम यह है कि छोटे से अंतराल में आठ बार पेट्रोल की कीमतें बढ़ चुकी हैं। भविष्य में और वृद्धि के संकेत हैं। साथ ही साथ डीजल और रसोई गैस के भी दाम बढ़ने वाले हैं। ऐसे में खाद्यान्न, फल और सब्जियों के दाम स्वत: बढ़ जाएंगे। यही नहीं, अब बिजली दरें बढ़ाने की तैयारी भी शुरू हो चुकी है। इन कड़वी सचाइयों के बीच सरकार अपने रिपोर्ट कार्ड में कुछ भी बताये पर आम आदमी का जीना मुहाल हो गया है। प्रधानमंत्री से इस मोर्चे पर लोगों को बड़ी आशा थी। वे राहत के लिए उनकी तरफ देख रहे हैं, किंतु उम्मीद वहां भी टूटी है। वैसे पांच राज्यों के चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए सुकून भरे हो सकते हैं पर उसे तमिलनाडु के चुनाव परिणाम की गहराई से समीक्षा करनी होगी। तभी उसे सच का पता लग सकेगा क्योंकिभरोसेका राजनीति में कितना महत्व है, यह चुनाव परिणाम उसी का आईना है। टूजी स्पेक्ट्रम में . राजा और करुणानिधि की बेटी के फंसने से वहां जनता में काफी आक्रोश था। इस भ्रष्टाचार के लपेटे में करुणानिधि का परिवार गया था, इसलिए जनता का उनसे भरोसा उठ गया और कांग्रेस के इस मामले में लीपापोती करने से भी नाराजगी थी। इसीलिए द्रमुक अपने राजनीतिक काल में सबसे कम 23 सीटें पा सकी और कांग्रेस जो गठबंधन के तहत 60 सीटों पर लड़ी थी, मात्र 5 ही सीटें जीत सकी। ऐसे में भ्रष्टाचार सरकार के समक्ष अहम मुद्दा बनकर खड़ा है। अब अगले साल उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड सहित कुछ अन्य राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में भ्रष्टाचार और जनता में सरकार के प्रति उपजी निराशा कांग्रेस के लिए मुसीबत का सबब बन सकती है। हम यहां दो घटनाओं का जिक्र कर प्रधानमंत्री को आगाह करना चाहते हैं। 26/11 की घटना को लेकर मुम्बई के लोगों में काफी गुस्सा था। पहली बार बिना किसी राजनीतिक पार्टी की अपील के हजारों लोग सड़कों पर उतर आये थे और उन्होंने खुलेआम राजनीतिक तंत्र और सत्ता प्रतिष्ठान में अनास्था जतायी थी। पूरे देश में आतंकवाद के खात्मे के लिए एकजुटता का माहौल बना था। उस समय मनमोहन सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ दृढ़ता दिखा जनता का भरोसा जीत लिया था किंतु कुछ दिनों पूर्व भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कठोर लोकपाल बिल की मांग को लेकर जब अन्ना हजारे ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर अनशन किया तो सरकार से नाराज पूरे देश की जनता उनके समर्थन में खड़ी हो गयी क्योंकि अन्ना के रूप में उसे भरोसा मिला। लगा कि वे उसे इस दलदल से निकाल सकते हैं। इसी एकजुटता ने सरकार को झुकने के लिए मजबूर कर दिया। यूपीए सरकार को जनता के इस मनोभाव को समझने की जरूरत है अन्यथा समय उसे सबक सिखाने में देर नहीं करेगा। इसलिए जरूरत जनता का भरोसा जीतने की है। यद्यपि इन चुनौतियों के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए प्रमुख सोनिया गांधी ने यूपीए-2 की दूसरी सालगिरह पर बिना हल्ला किये भ्रष्टाचार के सफाये का वायदा किया है। उन्होंने घोटालेबाजों को दंडित करने के प्रति प्रतिबद्धता जताते हुए भ्रष्टाचार को अपनी कार्यशैली से मिटाने का वचन दिया है साथ ही दोहराया है कि अब अधिकारियों द्वारा शक्तियों के मनमाने इस्तेमाल पर रोक लगायी जायेगी क्योंकि ईमानदारी और जवाबदेही सरकार के दिल में है। किंतु अब तक भ्रष्टाचार, महंगाई और उग्रवाद जैसी समस्याओं के चलते नौकरशाही के आगे सरकार की छवि बेबस की होकर उभरी है, जो सरकारी नकारेपन को उजागर करती है। आम जनता में जहां भ्रष्टाचार को लेकर गुस्सा है, वहीं वह मंहगाई की मार से बेहाल है। ऐसे में देखना यह है कि सरकार अपनी साख बचाने और बेचारगी के ताने-बाने से कैसे बाहर निकल पाती है? क्योंकिसमयकी उस पर पैनी नजर है।

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