Sunday, January 23, 2011

मंत्रिमंडल में फेरबदल या चुनावी कवायद


कई दिनों की लंबी कवायदों का अगर यही नतीजा है तो फिर इस पर टिप्पणी करने के लिए शब्द ढूंढ़ने मुश्किल हैं। जिन मंत्रियों के विभाग बदले, जिनको प्रोन्नति मिली या जो नए चेहरे मंत्रिमंडल के अंग बने उन सबको एक फ्रेम में डालिए और फिर देखिए कैसी तस्वीर बनती है। क्या इसका कोई संतोषजनक निष्कर्श निकलता है? कहने के लिए तो 36 विभागों को इधर से उधर किया गया, कुल जमा तीन नए चेहरे और तीन को प्रोन्नति और किसी को भी बाहर का रास्ता नहीं दिखाया गया। कुछ प्रश्नों को कसौटी बनाकर हम मंत्रिमंडल के इस फेरबदल का विश्लेषण कर सकते हैं। एक, क्या इस समय कांग्रेस एवं संप्रग की जो राजनीतिक आवश्यकता है उसकी पूर्ति इससे होती है? दूसरा, भ्रष्टाचार, महंगाई, हिंसा और अपने साथी दल के मुख्यमंत्री द्वारा जम्मू-कश्मीर के विलय पर प्रश्न उठाने के कारण आम जन में सरकार की छवि जैसी कुंठित है और विपक्ष आक्रामक है उसका किसी हद तक भी प्रत्युत्तर इससे मिल सकता है क्या? कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के बयानों के बाद नए एवं युवा चेहरों को ज्यादा जिम्मेवारी देने की जो उम्मीद जगी थी उसकी पूर्ति इससे होती है या नहीं। चौथा, क्या सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस और संप्रग में महिलाओं को अत्यधिक प्रतिनिधित्व देने की जो घोषणाएं की जा रहीं हैं उसकी झलक इसमें दिखती है। सबसे बढ़कर कि क्या इससे सरकार की कार्यसंस्कृति बदलने या बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद जगती है? अगर इन सारे या इनमें से एक भी प्रश्न का उत्तर आपको हां में नहीं में मिलता तो फिर अलग से कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं रह जाती। संप्रग-2 का 20 महीने बाद का यह पहला फेरबदल था और इस नाते इसमें प्रधानमंत्री की सोच की झलक दिखनी चाहिए थी। इस मंत्रिमंडल से तो आप पूरी तौर पर यह भी निष्कर्ष नहीं निकाल सकते कि जिनका प्रदर्शन अच्छा रहा उनको पुरस्कृत किया गया और जिनका अच्छा नहीं रहा उनसे पिंड छुड़ाया गया। मान लीजिए राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी एवं निर्माण में देश की गाढ़ी कमाई लूटी गई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारी जो छवि खराब हुई उसकी जिम्मेवारी खेल मंत्रालय एवं शहरी विकास मंत्रालय पर आता है तो फिर इनके मंत्रियों एमएस गिल एवं जयपाल रेड्डी का मंत्रालय बदलना किस तरह तर्कसंगत माना जाए। रेड्डी को पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस जैसा महत्वपूर्ण मंत्रालय मिलने का कोई संदेश नहीं निकलता। यही बात गिल को सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय दिए जाने का सवाल भी है। प्रफुल्ल पटेल हवाई जहाज चलाने वाली कंपनियों के किराए आदि को नियंत्रित नहीं कर पा रहे थे और सरकारी उड्डयन कंपनियों को मुनाफा में नहीं ला पा रहे थे तो उद्योग जैसे आर्थिक विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण मंत्रालय के कामकाम को वह किस तरह बेहतर कर पाएंगे इस सोच का क्या आधार हो सकता है? सीपी जोशी के विरोधी उन पर ग्रामीण विकास को शिथिल करने का आरोप लगा रहे थे, लेकिन कमलनाथ जैसे बड़े कद वाले नेता को सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय मिल गया। शरद पवार से उपभोक्ता एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय लिया गया। कोई इसका यदि यह अर्थ निकाले कि महंगाई के कारण उपजे गुस्से को कम करने के लिए ऐसा किया गया तो उनको खाद्य प्रसंस्करण क्यों दिया गया? यह भी मजेदार तथ्य है कि उनके ही राज्य मंत्री रहे केवी थॉमस को उपभोक्ता एवं सार्वजनिक वितरण का स्वतंत्र प्रभार दे दिया गया। पेट्रोलियम मूल्य बढ़ते रहने के कारण मुरली देवड़ा के खिलाफ भी खीझ थी, लेकिन उन्हें कंपनी एवं कॉरपोरेट मामलों का मंत्रालय दे दिया गया। हम जानते है कि पेट्रोल के मूल्य को बाजार के हवाले छोड़ने का नीतिगत निर्णय सरकार था और इसके लिए अकेले देवड़ा जिम्मेवार नहीं हो सकते तो फिर उन्हें हटाने की आवश्यकता क्या थी? विलासराव देसमुख के बारे में भी कयास थे कि उन्हें मुक्त किया जा सकता है, लेकिन उनको भी केवल उद्योग मंत्रालय से वंचित किया गया और ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज जैसा महत्वपूर्ण मंत्रालय दिया गया। वीरभद्र सिंह पर अगर कोई आरोप लगा और उसमें दम है तो उन्हें हटाना चाहिए था किंतु उन्हें छोटे और मझोले उद्योग का म्ंात्रालय दे दिया गया। ऐसे न जाने कितने प्रश्न इस फेरबदल से उठते हैं। राजनीतिक दृष्टि से विचार करें तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अपनी ताकत बढ़ाने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रही है। इस नाते श्रीप्रकाश जायसवाल एवं सलमान खुर्शीद की प्रोन्नति एवं बेनी प्रसाद वर्मा को जगह दिया जाना समझ में आता है। खुर्शीद का अल्पसंख्यक मंत्रालय कायम रखते हुए जल संसाधन मंत्रालय दे दिया गया। कांग्रेस अल्पसंख्यकों को सकारात्मक संदेश देने की कोशिश कर रही है, लेकिन कोयला मंत्रालय लेकर श्रीप्रकाश जायसवाल प्रदेश में कैसे राजनीतिक प्रभाव छोड़ पाएंगे यह समझना मुश्किल है। बेनी प्रसाद वर्मा तो वैसे ही कैबिनेट का दर्जा न मिलने से नाखुश हंै। मंत्रिमंडल के नए सदस्यों के रूप में अश्विनी कुमार अच्छे बहस करते हैं एवं संयमित व्यवहार के लिए जाने जाते हैं। शायद प्रधानमंत्री को उम्मीद हो कि वे संसदीय कार्यमंत्री के रूप में विपक्ष का संसद संचालन में सहयोग ले पाएंगे। अभी उनका परीक्षण होना शेष है। ई. अहमद को रेल मंत्रालय से निकालकर संप्रग-1 की तरह विदेश मंत्रालय में राज्यमंत्री का दर्जा देकर विदेश नीति में मुस्लिम देशों का ध्यान रखा गया है। इस समय मुस्लिम देशों को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई निर्णय होने हैं। इनमें हमारे देश का प्रतिनिधित्व कोई मुस्लिम मंत्री करे तो कम से कम कोई एकपक्षीय संदेश नहीं जाएगा, लेकिन ऐसा ही था तो फिर इन्हें पहले ही यह दायित्व क्यों नहीं दिया गया या फिर सलमान खुर्शीद को विदेश मंत्रालय क्यों नहीं मिला? कुल मिलाकर इस फेरबदल का राजनीतिक या प्रशासनिक सार्थकता, प्रासंगिकता या औचित्य ढूंढ़ना मुश्किल है। मंत्रिमंडल प्रधानमंत्री की सोच को प्रतिबिंबित करता है। अगर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की सोच यही है तो हमारे आपके लिए निराश होने के अलावा कोई विकल्प रह ही नहीं जाता है। यदि उनकी सोच कुछ और थी और वह चाहकर भी भारी फेरबदल नहीं कर पाए या कुछ लोगों को मंत्रिमंडल से बाहर करना उनके लिए संभव नहीं हो पाया तो उनकी विवशता और लाचारी का इससे बड़ा प्रमाण कोई और नहीं हो सकता। यह ज्यादा निराश होने वाली स्थिति है। वास्तव में डीएमके के ए. राजा से लिया गया संचार मंत्रालय के लिए कोई स्वतंत्र मंत्री नियुक्त न कर पाना उनकी लाचारी का सबसे बड़ा प्रमाण है? अब प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि पूर्ण विस्तार और शेष फेरबदल बजट सत्र के बाद किया जाएगा। यदि बजट सत्र के बाद भी फेरबदल करना है तो फिर इस समय ऐसे टोकन बदलाव की आखिर आवश्यकता ही क्या थी? शायद तृणमूल एवं डीएमके की राजनीति का ध्यान भी इसके पीछे रखा जा रहा हो, लेकिन यह भी तो एक तरह की विवशता ही है। प्रधानमंत्री का अपनी इच्छा से मंत्रिमंडल तक का गठन न कर पाना साधारण चिंता की बात नहीं है। प्रधानमंत्री के हाथों देश का भविष्य होता है और उसे वह अपने सहयोगी मंत्रियों के साथ ही मिलकर संवार सकता है। इसके लिए उसे अपने मनमाफिक मंत्रियों के चुनाव की आजादी तो होनी ही चाहिए। इस फेरबदल ने इसके विपरीत संदेश दिया है और यह पूरे देश के लिए एक चेतावनी है कि ऐसी राजनीतिक स्थिति का अंत जरूरी है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)



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