प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के अध्यक्ष अरबिंद राजखोवा को गुरुवार को टाडा अदालत ने जमानत दे दी। जरूरी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद संभवत: उन्हें शुक्रवार को गुवाहाटी सेंट्रल जेल से रिहा कर दिया जाएगा। इसके साथ ही असम सरकार और उल्फा की शांति वार्ता का मार्ग प्रशस्त हो गया है। सरकार ने उल्फा से वार्ता का प्रस्ताव दिया है। इसी के मद्देनजर असम सरकार ने राजखोवा की जमानत पर कोई आपत्ति नहीं जताई। टाडा अदालत में राजखोवा पर छह मामले चल रहे हैं। उन्हें इन सभी में जमानत मिल गई। 54 वर्षीय उल्फा अध्यक्ष को पिछले साल नवंबर में बांग्लादेश की सुरक्षा एजेंसियों ने गिरफ्तार कर मेघालय सीमा पर भारतीय अधिकारियों के हवाले कर दिया था। तभी से वह जेल में हैं। रिहाई के बाद वह पिछले 30 साल में पहली बार अपने गृहनगर लखुवा जा सकेंगे। 7 अप्रैल, 1979 को उल्फा की स्थापना के बाद से ही वह ऊपरी असम स्थित अपने गांव से भूमिगत हो गए थे। पिछले वर्ष नवंबर में मेघालय सीमा के पास बांग्लादेशी अधिकारियों राजखोवा को गिरफ्तार कर भारत के हवाले किया था। राजखोवा इस साल जमानत पर रिहा होने वाले उल्फा के छठे नेता हैं। इससे पहले संगठन के उपाध्यक्ष प्रदीप गोगोई, उप प्रमुख कमांडर राजू बरुआ, सांस्कृतिक सचिव प्रनति डेका, प्रचार सचिव मिथिंगा दैमरी और वरिष्ठ नेता व राजनीतिक विचारक भीमकांत बुरागोहैन को जमानत मिल चुकी है। असम के पूर्व मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता प्रफुल्ल महंत ने हालांकि असम सरकार द्वारा उल्फा के साथ शांति प्रक्रिया खारिज कर दी है। उनका कहना है कि उल्फा के कमांडर इन चीफ परेश बरुआ के बिना यह कवायद निरर्थक है। उल्फा के शीर्ष नेताओं में बरुआ ही एकमात्र ऐसे बड़े नेता हैं जो अब भी भूमिगत हैं। दो बार मुख्यमंत्री रहे महंत ने संवाददाताओं से कहा, वार्ता के लिए सरकार की नवीन पेशकश सिर्फ राजनीतिक सोशेबाजी है और जब तक परेश बरूआ को शामिल नहीं किया जाता तब तक प्रक्रिया बेकार है।
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