संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की सत्ता में धूमधाम से वापसी के बाद कांग्रेस के एजेंडे में आम आदमी से जुड़ी सामाजिक योजनाओं को सबसे ऊपर रखा गया था। मंशा थी कि 2011 में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और फिर 2012 में उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े चुनावी दंगल से पहले पार्टी सामाजिक मुद्दों पर इतनी लंबी लकीर खींच दे कि विपक्षी पार्टियां आसपास भी ना फटक सकें। हालांकि अब जबकि साल खत्म हो रहा है, भ्रष्टाचार और विवादों के गुबार में यह सामाजिक चेहरा पीछे छूट गया है। अपनी स्थापना के 125वें साल में कांग्रेस ने सामाजिक चेहरे को उभारने के लिए सरकारी योजनाओं से संगठन के कार्यक्रमों तक एक सुविचारित योजना बनाई थी। सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) का गठन हुआ और उसे सुपर कैबिनेट की संज्ञा कांग्रेसियों ने ही दी। सरकार ने भी साफ कर दिया कि सामाजिक योजनाओं में एनएसी की सलाह अहम होगी। परिषद ने खाद्य सुरक्षा कानून और सांप्रदायिक हिंसा कानून का मसौदा तैयार करने का जिम्मा भी अपने हाथ लिया। इन पर साल भर सक्रियता भी खूब दिखी, लेकिन ये जमीन पर नहीं उतर सके। महिला आरक्षण विधेयक को जिस तरह सोनिया ने प्रतिष्ठा का मुद्दा बनाकर राज्यसभा से पेश कराया, उससे लगा भी कि सरकार आगे बढ़ेगी, लेकिन पूरा साल बीत गया पर यह विधेयक लोकसभा की मेज तक भी नहीं आ पाया। राजनीतिक रूप से कांग्रेस के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद रही संप्रग के पहले कार्यकाल की मनरेगा योजना। इस दफा इसे शहरों तक लाना उसकी प्राथमिकता में ऊपर था, लेकिन शहरी बेरोजगारों को रोजगार दिलाने की यह महत्वाकांक्षी योजना चर्चाओं तक सीमित रह गई। राष्ट्रपति के अभिभाषण में 2012 तक झुग्गी मुक्त शहर की परिकल्पना थी, लेकिन इसके लिए घोषित राजीव आवास योजना सिरे नहीं चढ़ सकी। अभी इसे लागू करने के लिए मैपिंग ही चल रही है। इस पर अमल में काफी समय लगेगा। पुनर्वास नीति और भूमि अधिग्रहण जैसे महत्वपूर्ण कानून भी तीन-चार बार कैबिनेट से गुजर आए, लेकिन जमीन पर नहीं उतर सके। पुनर्वास नीति तो कांग्रेस के एजेंडे में 2004 से है, लेकिन दूसरे कार्यकाल में आने के बाद संप्रग ने इस पर ज्यादा जोर दिया। राहुल गांधी के दखल के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शीतकालीन सत्र में भूमि अधिग्रहण विधेयक लाने का वादा किया था। मगर तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी के अड़ंगे की वजह से राहुल और मनमोहन की जुबान भी खाली गई। कांग्रेस आलाकमान ने ममता को मनाने के लिए अपने वरिष्ठ नेता प्रणब मुखर्जी को लगाया, लेकिन बात न बन सकी।
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