उत्तराखंड विधानसभा के आगामी चुनाव में लगभग एक साल बाकी है। चुनाव के बाद सत्ता किस करवट बैठेगी अभी यह भी तय नहीं है। बावजूद इसके यह अभी से तय है कि सूबे में सत्तासीन भाजपा आधा दर्जन से ज्यादा सीटों के घाटे के साथ चुनावी समर में उतरेगी। नुकसान भाजपा की मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस को भी उठाना पड़ रहा है, लेकिन अपेक्षाकृत काफी कम, महज एक विधानसभा सीट का। अलबत्ता, मौजूदा विधानसभा में बहुजन समाज पार्टी व उत्तराखंड क्रांति दल ऐसे किसी भी नुकसान से साफ बचते नजर आ रहे हैं। चुनाव से पहले ही विधानसभा सीटों के नुकसान का यह समीकरण किसी सियासी जोड़-तोड़ का नतीजा नहीं है, बल्कि यह है राज्य विधानसभा सीटों के नए परिसीमन से उभरी तस्वीर है। अगले चुनाव नए परिसीमन के आधार पर होना तय है ऐसे में सियासी दलों को इससे प्रथमदृष्टया होने वाले लाभ हानि का गणित साफ दिखाई दे रहा है। सत्तारूढ़ भाजपा को आधा दर्जन से अधिक और मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को एक सीट का नुकसान इसी परिसीमन प्रक्रिया के नतीजों के रूप में होता नजर आ रहा है। सत्तारूढ़ भाजपा के पास मौजूदा विधानसभा में जितनी सीटें हैं उनमें से आधा दर्जन से ज्यादा चुनाव से पहले ही कम होने जा रही हैं। इन सीटों पर अभी भाजपा विधायक हैं। मसलन, राज्य के बागेश्र्वर जिले में तीन विधानसभा सीटें हैं और वर्तमान में तीनों भाजपा के ही पास हैं, लेकिन नए परिसीमन में यहां एक सीट खत्म हो गई है। यानि भाजपा को एक सीट का नुकसान। कमोवेश यही स्थिति चमोली जिले की भी है, जहां फिलवक्त चारों सीटें भाजपा के पास हैं,लेकिन भविष्य में इस जिले की एक सीट, नंदप्रयाग खत्म हो जाएगी।, मतलब सीधे-सीधे भाजपा को एक सीट का नुकसान यहां भी होगा। आरक्षण की नई व्यवस्था के कारण भी भाजपा को कई सीटों का घाटा उठाना पड़ रहा है। मसलन, ऊधमसिंह नगर जिले की बाजपुर सीट अब अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई है तो टिहरी जिले की धनोल्टी सीट आरक्षण के दायरे से बाहर हो गई है। ऐसा ही देहरादून जिले की सहसपुर व राजपुर सीटों के साथ भी हुआ है। रिजर्व सीट सहसपुर अब सामान्य हो रही है तो अभी सामान्य श्रेणी की राजपुर सीट नए परिसीमन में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई है। इन सभी सीटों पर सिटिंग विधायक भाजपा के हैं, यानि इनके इन सीटों से मैदान में न उतरने का खामियाजा भी पार्टी को उठाना पड़ सकता है। कुछ ऐसी ही स्थिति पौड़ी जिले में भी है, जहां वर्तमान में आठ से में पांच विधायक भाजपा के हैं, लेकिन नए परिसीमन में यहां केवल छह सीटें रह गई हैं। कह सकते हैं कि यहां भी घाटा भाजपा को ही है। इसके उलट कांग्रेस को भाजपा के मुकाबले कहीं कम घाटे की स्थिति का सामना करना पड़ेगा। मसलन, कांग्रेस के सिटिंग विधायक वाली एकमात्र कनालीछीना सीट ही नए परिसीमन में अस्तित्वविहीन हुई है। जाहिर है ऐसे में नए परिसीमन से कांग्रेस को मात्र एक सीट का नुकसान। बसपा और उक्रांद इस मायने में जरूर भाग्यशाली हैं कि उन्हें ऐसी किसी असहज स्थिति से दो-चार नहीं होना पड़ रहा है।
Wednesday, January 26, 2011
नए परिसीमन से फिलहाल घाटे में भाजपा
उत्तराखंड विधानसभा के आगामी चुनाव में लगभग एक साल बाकी है। चुनाव के बाद सत्ता किस करवट बैठेगी अभी यह भी तय नहीं है। बावजूद इसके यह अभी से तय है कि सूबे में सत्तासीन भाजपा आधा दर्जन से ज्यादा सीटों के घाटे के साथ चुनावी समर में उतरेगी। नुकसान भाजपा की मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस को भी उठाना पड़ रहा है, लेकिन अपेक्षाकृत काफी कम, महज एक विधानसभा सीट का। अलबत्ता, मौजूदा विधानसभा में बहुजन समाज पार्टी व उत्तराखंड क्रांति दल ऐसे किसी भी नुकसान से साफ बचते नजर आ रहे हैं। चुनाव से पहले ही विधानसभा सीटों के नुकसान का यह समीकरण किसी सियासी जोड़-तोड़ का नतीजा नहीं है, बल्कि यह है राज्य विधानसभा सीटों के नए परिसीमन से उभरी तस्वीर है। अगले चुनाव नए परिसीमन के आधार पर होना तय है ऐसे में सियासी दलों को इससे प्रथमदृष्टया होने वाले लाभ हानि का गणित साफ दिखाई दे रहा है। सत्तारूढ़ भाजपा को आधा दर्जन से अधिक और मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को एक सीट का नुकसान इसी परिसीमन प्रक्रिया के नतीजों के रूप में होता नजर आ रहा है। सत्तारूढ़ भाजपा के पास मौजूदा विधानसभा में जितनी सीटें हैं उनमें से आधा दर्जन से ज्यादा चुनाव से पहले ही कम होने जा रही हैं। इन सीटों पर अभी भाजपा विधायक हैं। मसलन, राज्य के बागेश्र्वर जिले में तीन विधानसभा सीटें हैं और वर्तमान में तीनों भाजपा के ही पास हैं, लेकिन नए परिसीमन में यहां एक सीट खत्म हो गई है। यानि भाजपा को एक सीट का नुकसान। कमोवेश यही स्थिति चमोली जिले की भी है, जहां फिलवक्त चारों सीटें भाजपा के पास हैं,लेकिन भविष्य में इस जिले की एक सीट, नंदप्रयाग खत्म हो जाएगी।, मतलब सीधे-सीधे भाजपा को एक सीट का नुकसान यहां भी होगा। आरक्षण की नई व्यवस्था के कारण भी भाजपा को कई सीटों का घाटा उठाना पड़ रहा है। मसलन, ऊधमसिंह नगर जिले की बाजपुर सीट अब अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई है तो टिहरी जिले की धनोल्टी सीट आरक्षण के दायरे से बाहर हो गई है। ऐसा ही देहरादून जिले की सहसपुर व राजपुर सीटों के साथ भी हुआ है। रिजर्व सीट सहसपुर अब सामान्य हो रही है तो अभी सामान्य श्रेणी की राजपुर सीट नए परिसीमन में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई है। इन सभी सीटों पर सिटिंग विधायक भाजपा के हैं, यानि इनके इन सीटों से मैदान में न उतरने का खामियाजा भी पार्टी को उठाना पड़ सकता है। कुछ ऐसी ही स्थिति पौड़ी जिले में भी है, जहां वर्तमान में आठ से में पांच विधायक भाजपा के हैं, लेकिन नए परिसीमन में यहां केवल छह सीटें रह गई हैं। कह सकते हैं कि यहां भी घाटा भाजपा को ही है। इसके उलट कांग्रेस को भाजपा के मुकाबले कहीं कम घाटे की स्थिति का सामना करना पड़ेगा। मसलन, कांग्रेस के सिटिंग विधायक वाली एकमात्र कनालीछीना सीट ही नए परिसीमन में अस्तित्वविहीन हुई है। जाहिर है ऐसे में नए परिसीमन से कांग्रेस को मात्र एक सीट का नुकसान। बसपा और उक्रांद इस मायने में जरूर भाग्यशाली हैं कि उन्हें ऐसी किसी असहज स्थिति से दो-चार नहीं होना पड़ रहा है।
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