लेखक क्वात्रोची के सन्दर्भ में आयकर न्यायाधिकरण के फैसले पर दिग्विजय सिंह के संदेहों को अनावश्यक मान रहे हैं....
बोफोर्स तोप सौदे में 73 लाख डालर की दलाली लेने वाले इतालवी व्यवसायी ओट्टावियो क्वात्रोची के प्रति कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह की चिंता वाकई अद्भुत है। साफ तौर पर दिग्विजय सिंह का इस पर विश्वास है कि अतिथि देवो भव का विचार सभी अतिथियों पर लागू होना चाहिए-भले ही वे अपराधी हों या कमीशन एजेंट। दिग्विजय सिंह के मुताबिक आयकर विभाग के अपीलीय न्यायाधिकरण ने अपने फैसले में बोफोर्स तोप सौदे में दलाली खाने वालों में क्वात्रोची का जो नाम लिया है वह तीन कारणों से संदेह पैदा करता है। पहला, इस निर्णय का समय बहुत बड़ी पहेली की तरह है। उनके मुताबिक न्यायाधिकरण को चार जनवरी को फैसला देना था, लेकिन उसने 31 दिसंबर को अपना निर्णय दे दिया। दूसरे, न्यायाधिकरण ने अपना फैसला तीन जनवरी को सार्वजनिक कर दिया अर्थात बोफोर्स मामला बंद करने संबंधी सीबीआइ की अपील पर अदालत का नजरिया सामने आने के ठीक एक दिन पहले। इस कथित जल्दबाजी से दिग्विजय सिंह को न्यायाधिकरण के मंतव्य पर संदेह होता है। दिगिवजय सिंह के संदेह का तीसरा आधार यह है कि न्यायाधिकरण विन चड्ढा के पुत्र हर्ष चड्ढा की अपील पर सुनवाई कर रहा था, लेकिन उसने क्वात्रोची को कमीशन का भुगतान किए जाने पर अपना ध्यान केंद्रित क्यों किया? दिग्विजय सिंह की इस साजिश संबंधी ध्योरी पर नजदीकी ध्यान दिए जाने की जरूरत है। सबसे पहले तो यह कि यदि संदेह के आधार सही भी हैं तो दिग्विजय सिंह सरीखे एक भारतीय नागरिक को इस बात से क्यों परेशानी हो रही है कि आयकर न्यायाधिकरण ने कमीशन एजेंटों (जिनमें एक विदेशी भी शामिल है) के संदर्भ में अपना फैसला तीन-चार दिन पहले सुना दिया। आखिर दिग्विजय किस जल्दबाजी की बात कर रहे हैं? क्या उन्हें नहीं मालूम कि न्यायाधिकरण का फैसला बोफोर्स द्वारा क्वात्रोची के खाते में दलाली की रकम जमा कराए जाने के 22 वर्ष बाद आया है? दूसरे, दिग्विजय सिंह को यह शिकायत क्यों है कि न्यायाधिकरण का फैसला तीन जनवरी को सार्वजनिक कर दिया गया? इसके विपरीत एक सजग नागरिक के रूप में उन्हें यह सवाल उठाना चाहिए था कि 31 दिसंबर को फैसला हो जाने के बावजूद इसे तीन जनवरी को क्यों सार्वजनिक किया गया? जिन्हें भारतीय संस्थानों में पारदर्शिता और जवाबदेही की परवाह है उन्हें इस देरी पर चिंतित होना चाहिए, न कि यह सवाल उठाना चाहिए कि फैसला एक ऐसे समय क्यों दिया गया जब क्वात्रोची के संदर्भ में महत्वपूर्ण अदालती निर्णय आना था। कांग्रेस पार्टी में जिम्मेदारी वाला पद संभालने वाले दिग्विजय सिंह की इस शिकायत का भी कोई औचित्य नहीं कि न्यायाधिकरण ने क्वात्रोची का उल्लेख क्यों किया? आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण का फैसला पढ़ने वाला कोई भी व्यक्ति इससे सहमत होगा कि दिग्विजय के संदेह का कोई आधार नहीं है। न्यायाधिकरण ने कहा है कि कमीशन एजेंटों पर प्रतिबंध के बावजूद बोफोर्स ने क्वात्रोची के कहने पर 15 नवंबर 1985 को एई सर्विसेज के साथ नया करार किया। इस समझौते के अनुसार यदि बोफोर्स को 31 मार्च 1986 के पहले सौदा मिल जाता तो वह सौदे की कुल राशि की तीन प्रतिशत राशि दलाली के रूप में भुगतान करेगी। यह विचित्र संयोग है कि बोफोर्स और भारत के समझौते पर 24 मार्च 1986 को हस्ताक्षर हुए। बोफोर्स ने भारत के रक्षा मंत्रालय को 10 मार्च, 1986 को भेजे गए पत्र में जानबूझकर दलाली से संबंधित समझौते का तथ्य छिपाया। न्यायाधिकरण ने उल्लेख किया है कि क्वात्रोची 28-2-1965 से 29-7-1993 तक भारत में रहे। इस दौरान केवल 4-3-1966 से 12-6-1968 की संक्षिप्त अवधि के दौरान वह देश से बाहर रहे। न तो क्वात्रोची और न ही स्नैमप्रोगेटी को हथियार अथवा किसी अन्य रक्षा उपकरण का कोई अनुभव था। भारतीय अधिकारियों द्वारा स्विट्जरलैंड से प्राप्त किए गए बैंक प्रपत्रों के आधार पर न्यायाधिकरण ने बताया है कि भारत ने सौदे की 20 प्रतिशत राशि का भुगतान 2 मई 1986 को किया। इसमें से बोफोर्स ने तीन सितंबर 1986 को ज्यूरिख स्थित एई सर्विसेज के अमुक खाते में 7343941.98 डालर की रकम में जमा कर दी। साफ है कि कांग्रेस में वफादारी की एकमात्र कसौटी यह है कि आलाकमान के इतालवी मित्रों के हितों की आप कितनी चिंता करते हैं। कांग्रेस के नेताओं के लिए इटली का कोई भी अतिथि देवता के समान ही है। यह दिग्विजय सिंह सरीखे नागरिक ही हैं जो भारत को एक शताब्दी से भी अधिक समय से गुलाम बनाए हुए हैं। उन्होंने इसकी झलक दिखा दी है कि यदि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बन जाती हैं तो कांग्रेस नेता चाटुकारिता की किस हद तक गिर सकते हैं। (लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)
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