अलग तेलंगाना राज्य की मांग पर विचार के लिए गठित की गई श्रीकृष्ण समिति ने अपनी राय एकीकृत आंध्र प्रदेश के पक्ष में ही दी है। इसके मुताबिक तेलंगाना इलाके के आर्थिक विकास एवं राजनीतिक सशक्तिकरण के लिए सबसे अच्छा विकल्प एक क्षेत्रीय परिषद का गठन होगा। अगर इस विकल्प को लागू करवाना मुमकिन नहीं हो तो हैदराबाद तेलंगाना को देते हुए इसे अलग राज्य बनाया जा सकता है। समिति ने जो तीसरा विकल्प सुझाया है उसके मुताबिक आंध्र प्रदेश को दो राज्यों में विभक्त करने के साथ ही हैदराबाद को एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया जा सकता है। श्रीकृष्ण समिति ने अपनी 600 पेज की दो खंड की रिपोर्ट में छह विकल्पों पर विचार किया है। मगर इनमें से यथास्थिति बनाए रखने सहित तीन विकल्पों को अव्यवहारिक बताते हुए खारिज कर दिया है। अपनी रिपोर्ट में इसने तेलंगाना के सामाजिक-आर्थिक विकास और राजनीतिक सशक्तिकरण के लिए एक वैधानिक अधिकार संपन्न क्षेत्रीय परिषद गठित करने को सर्वश्रेष्ठ विकल्प बताया है। परिषद को सौंपे जाने वाले विषयों में विकास की उप-योजना लागू करवाने के लिए इसके पास संपूर्ण अधिकार होंगे। संवैधानिक रूप से इसके अधिकारों को स्थापित करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 371 के खंड 21 में संशोधन करना होगा। समिति ने साफ तौर पर कहा है कि राज्य का विभाजन पहला विकल्प नहीं हो सकता,लेकिन राज्य के तीनों क्षेत्र तेलंगाना, रायलसीमा और तटीय आंध्र प्रदेश अगर इस पर सहमत हों तो इसे सीमांध्र और तेलंगाना के रूप में दो भाग में विभाजित किया जा सकता है। ऐसे में मौजूदा राजधानी हैदराबाद भी तेलंगाना को दी जा सकती है। समिति ने माना है कि दूसरे विकल्प का खतरा यह है कि रायलसीमा और तटीय क्षेत्र में इससे नाराजगी बढ़ सकती है और अलग रायलसीमा राज्य के लिए हिंसक आंदोलन भी तेज हो सकता है। इसलिए श्रीकृष्ण समिति ने राज्य को तीन प्रशासनिक भागों में बांटने का विकल्प भी पेश किया है। इसके तहत राजधानी हैदराबाद के साथ आसपास के इलाके को मिला कर 12 हजार वर्ग किलोमीटर का केंद्र शासित प्रदेश भी बनाया जाए। समिति ने कहा है कि तेलंगाना के बहुत से लोगों के मन में यह धारणा बन गई है कि उनके क्षेत्र की उपेक्षा की गई है,जबकि आर्थिक समीक्षा में पाया गया कि राज्य में रायलसीमा का इलाका सबसे पिछड़ा है।
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