झारखंड में लगातार होती रही राजनीतिक उठापटक के बीच अब संवैधानिक प्रावधानों के दुरुपयोग को लेकर सवाल उठने लगे हैं। पहले पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन और अब अर्जुन मुंडा को विधायक बने बगैर ही मुख्यमंत्री बनाए जाने के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका पर गौर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दोनों नेताओं के साथ साथ राज्यपाल को भी नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। जनहित याचिका में शिकायत की गई है कि राज्य के दस साल के इतिहास में राजनेता लगातार संवैधानिक प्रावधान का दुरुपयोग कर अपना हित साध रहे हैं। जबकि लोकतांत्रिक व्यवस्था खतरे में है। झारखंड के राजनीतिक मसले यूं तो कई बार कोर्ट के दरवाजे तक पहुंचे हैं, इस बार संविधान के उपयोग को लेकर सवाल खड़ा हो गया है। देव आशीष भट्टाचार्य की याचिका पर गौर करते हुए जस्टिस अल्तमश कबीर और जस्टिस सिरिक जोसेफ की पीठ ने राज्यपाल, सोरेन और मुंडा से जवाब मांगा है। याचिका में कहा गया है संविधान के अनुच्छेद 164(4) में छह महीने के लिए किसी व्यक्ति को विधायक बने बगैर मंत्री या मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। छह महीने के अंदर उक्त व्यक्ति को विधायक बनना जरूरी होता है, लेकिन झारखंड में इसका दुरुपयोग हो रहा है। झामुमो नेता शिबू सोरेन तीन बार इसी प्रावधान का लाभ उठाकर मुख्यमंत्री बन चुके हैं और उसके बाद हट चुके हैं। हद तो तब हो गई जब वर्तमान विधानसभा में पहली बार पांच महीने के लिए सोरेन मुख्यमंत्री बने। फिर राष्ट्रपति शासन लगा। और फिर मुंडा को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी गई। भट्टाचार्य ने इसे राजनीतिक साजिश करार देते हुए ध्यान दिलाया कि दोनों सरकार में गठबंधन के साथी समान हैं। एस आर चतुर्वेदी बनाम पंजाब सरकार के मामले में आए फैसले का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि 164(4) के प्रावधान का उपयोग अपवाद के रूप में होना चाहिए, लेकिन झारखंड में इसे कानून बना लिया गया है जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए घातक है। सोमवार को इस पर गौर करते हुए कोर्ट ने जहां दोनों नेताओं से जवाब मांगा है वहीं मुख्यमंत्री की नियुक्ति करने के लिए राज्यपाल से भी जवाब मांगा गया है।
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