भाजपा कार्यकारिणी में भी भ्रष्टाचार और महंगाई के खिलाफ अभियान तेज करने की घोषणा हुई है। इसके लिए 20 जनवरी से 20 फरवरी तक तहसील स्तर पर और पूरे मार्च महीने में गांव-गांव तक अभियान चलाने का निर्णय लिया गया। किंतु थोड़ी गहराई से विचार करने पर साफ हो जाता है कि रणनीति एवं राजनीतिक अभियान दोनों स्तरों पर यह ऐसा इंजन साबित हो रहा है, जो एक्सेलेरेटर दबने पर केवल फड़फड़ाता है और गति पकड़ने की जगह ठहर जाता है
असम की राजधानी गुवाहाटी भाजपा के लिए उत्तर पूर्व के किसी राज्य में राष्ट्रीय कार्यकारिणी आयोजित करने का पहला स्थान बना। जाहिर है, इसका एक उद्देश्य असम के आगामी विधानसभा चुनाव के पूर्व पार्टी एवं पार्टी गठजोड़ के लिए माहौल बनाना था। दल के अध्यक्ष नितिन गडकरी ने उद्घाटन भाषण में कहा भी कि भाजपा पूर्वोत्तर के लोगों के साथ है और निश्चित तौर पर उनकी समस्याओं के समाधान के तरीकों के साथ आगे बढ़ेगी। बांग्लादेशी घुसपैठियों से लेकर उग्रवाद, अलगाववाद की चर्चा उनके भाषण और प्रस्तावों में थी किंतु कार्यकारिणी न असम या पूर्वोत्तर पर केन्द्रित थी और न इसका मुख्य स्वर यह बन पाया। पार्टी के नेताओं का ध्यान दिल्ली पर ही केन्द्रित रहा। यह कहना ज्यादा सही होगा कि गुवाहाटी की केन्द्रीय कार्यकारिणी केन्द्रीय राजनीति के घटाटोप में घिरी रही और इसमें उत्तर पूर्व कहीं छूट गया। चाहे नेताओं के भाषण हों या पारित प्रस्ताव, सबमें राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने वाले तत्व ज्यादा रहे। असम या उत्तर पूर्व के लिए भले यह थोड़ा निराशाजनक हो, किंतु यह अनपेक्षित या अस्वाभाविक नहीं था। पार्टी ने 2010 का अंत भ्रष्टाचार एवं महंगाई पर केन्द्र सरकार के साथ सीधी राजनीतिक मोच्रेबंदी से किया और वह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के बैनर तले भ्रष्टाचार के विरुद्ध महासंग्राम नारे के साथ देशव्यापी अभियान चला रही है। गुवाहाटी इसकी गूंज से प्रतिध्वनित न हो, यह कैसे संभव था। आखिर भ्रष्टाचार व महंगाई दो ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर सरकार और उसके नेतृत्व को लपेटकर विरोधी राजनीतिक माहौल निर्मित करने की संभावना दिखाई देती है। ठीक गुवाहाटी कार्यकारिणी के तीन दिन पहले आयकर अपीलीय प्राधिकरण ने बोफोर्स दलाली प्रकरण में क्वात्रोच्चि और विन चड्ढा के खिलाफ फैसला देकर भाजपा के तूणीर में ऐसा तीर डाल दिया, जिससे कांग्रेस कई बार बिंधी है। यही नहीं, कांग्रेस ने बुराड़ी महाविधवेशन में जिस तरह भाजपा व संघ पर सीधा हमला किया, उसका असर नेताओं के मनोविज्ञान पर कायम रहना स्वाभाविक था। कहा जा सकता है कि भाजपा ने गुवाहाटी कार्यकारिणी से उसका उत्तर देने की स्वाभाविक कोशिश की है, जिसमें भ्रष्टाचार तथा महंगाई ने उसके शब्दों को बल प्रदान किया। तो क्या गुवाहाटी कार्यकारिणी से कांग्रेस व संप्रग सरकार के विरुद्ध राजनीतिक माहौल निर्मित होने का आधार बन गया है? पार्टी के स्वर को आधार बनाएं तो उसने 2014 में केन्द्र में वापसी के लिए लोकसभा में अपनी सदस्य संख्या का लक्ष्य 200 निर्धारित किया है। उसके आकलन में भ्रष्टाचार, महंगाई तथा कांग्रेस व सरकार के दोनों शीर्ष नेतृत्व की अनर्गल महिमा से राजनीति में परिवर्तन का माहौल बन रहा है। दल के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के अनुसार 2011 राजनीति के लिए पुन: 1947 व 1977 की तरह मोड़ बिंदु साबित हो सकता है और भाजपा सुरक्षा और विकास के प्रश्न पर खुद को संप्रग से बेहतर साबित कर सीटों की संख्या बढ़ाने का लक्ष्य हासिल कर सकती है। उन्होंने तर्क दिया कि बिहार के चुनावी नतीजे ने 2011 के मोड़ बिंदु साबित होने का संकेत दे दिया है। उनके अनुसार बिहार में भाजपा की जीत दर नब्बे फीसद से अधिक है। वहां पार्टी और गठबंधन को मिली ऐतिहासिक और असाधारण सफलता के पीछे विकास से ज्यादा सुरक्षा का योगदान है। आडवाणी व पार्टी का बिहार के संदर्भ में अपना आकलन हो सकता है लेकिन वे भूल रहे हैं कि 2003 के दिसम्बर में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान में विजय को देशव्यापी सामूहिक माहौल का नमूना मान वाजपेयी सरकार ने समय पूर्व चुनाव में जाने का जो निर्णय किया, उसका परिणाम भाजपा नेताओं को आज तक टीसता है। भाजपा के इस आकलन पर दो राय नहीं कि भ्रष्टाचार और महंगाई के कारण सरकार के विरुद्ध जनता में व्यापक आक्रोश है और इसका राजनीतिक प्रकटीकरण सरकार विरोधी रुझान में होना चाहिए किंतु राजनीति का प्रवाह सामान्य गणितीय समीकरण के अनुसार निर्धारित नहीं होता। इसके लिए प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक पक्ष को ऐसी भूमिका निभानी होती है जिससे जनता प्रभावित होकर अनुकूल राजनीतिक अभिव्यक्ति दे। भाजपा या उसके नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन इस कसौटी पर कितना खरा उतर रहा है, इसका मूल्यांकन आसानी से किया जा सकता है। भाजपा नेतृत्व लगातार यह संदेश फैलाने की कोशिश में है कि वह सरकार को मात देने तथा भविष्य में उसका विकल्प बनने की ओर अग्रसर है। कार्यकारिणी में भी भ्रष्टाचार और महंगाई के खिलाफ अभियान तेज करने की घोषणा हुई है। इसके लिए 20 जनवरी से 20 फरवरी तक तहसील स्तर पर और मार्च में गांव-गांव अभियान चलाने का निर्णय लिया गया। किंतु गहराई से विचार करने पर साफ हो जाता है कि रणनीति एवं राजनीतिक अभियान दोनों स्तरों पर यह ऐसा इंजन साबित हो रहा है, जो एक्सेलेरेटर दबने पर केवल फड़फड़ाता है और गति पकड़ने की जगह ठहर जाता है। कार्यकारिणी में बोफोर्स मामले में कांग्रेस अध्यक्ष, समग्र भ्रष्टाचार पर प्रधानमंत्री और महंगाई पर समूची सरकार को घेरने की रणनीति प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल के नाते समझ में आती है। राजनीतिक प्रस्ताव पेश करते हुए सुषमा स्वराज ने कहा कि 2010 में जहां तीन बड़े घोटाले सामने आए, वहीं 2011 में चौथा बोफोर्स घोटाले का भूत सामने आ गया जो कांग्रेस नेतृत्व के घर तक जा पहुंचा है। अरुण जेटली ने कहा कि साफ हो गया है कि कांग्रेस का प्रथम परिवार किस तरह सच्चाई को दबाने में जुटा रहा। कार्यकारिणी की समाप्ति पर आयोजित रैली में पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने बोफोर्स घोटाले में सीधे कांग्रेस अध्यक्ष का नाम लिया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री या तो इसका प्रतिवाद करें या फिर मामले की जांच का आदेश दें। प्रस्ताव में कहा गया है कि राजीव गांधी को मिस्टर क्लीन बताया गया पर उनके राज में घोटाले हुए। उसी तरह मनमोहन सिंह की ईमानदार छवि होते हुए भी उनके कार्यकाल में एक पर एक भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं। सोनिया गांधी व मनमोहन सिंह दो शीर्ष व्यक्तित्व कांग्रेस एवं संप्रग सरकार के पास हैं जिनकी नैतिक आभा इसकी सबसे बड़ी ताकत है और यदि इसको क्षीण कर दिया जाए तो जन समर्थन अपने आप क्षरित हो जाएगा। किंतु क्या भाजपा ने पिछले साल के पूर्वार्ध में आरंभ महंगाई के विरुद्ध संघर्ष या भ्रष्टाचार के विरुद्ध महासंग्राम के अब तक के अभियान में इसका संकेत दिया है कि वह वाकई इस अभियान को गांव-गांव तक ले जाने तथा वर्तमान वर्ष को वाकई राजनीतिक मोड़ बिंदु साबित कर राजनीतिक धारा अपने अनुकूल मोड़ देने में समर्थ है? महंगाई विरोधी अभियान का चरम बिंदु राजधानी दिल्ली की रैली थी जिसमें भाषण के आगे कुछ नहीं हुआ और अब भ्रष्टाचार विरोधी महासंग्राम भी रैलियों तक सीमित है जिससे कोई उम्मीद नहीं बंधती। इस समय का राजनीतिक माहौल अनुकूल हो सकता है बशत्रे वह जनता के बीच भ्रष्टाचार और महंगाई के कारण जो आक्रोश है उसे सहीं नेतृत्व प्रदान करे। किंतु इसके लिए मुहिम को परवान चढ़ाने की आवश्यकता है जो केवल प्रतीकात्मक रैलियों व भाषणों से नहीं हो सकता। जैसी दूरदृष्टि, परिश्रम एवं जन मनोविज्ञान से सीधे संवाद करने की क्षमता वाला नेतृत्व चाहिए आज की भाजपा उससे वंचित है।
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