Friday, January 21, 2011

फीका पड़ता राहुल का करिश्मा


ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का मिशन 2012 परवान चढ़ने से पहले ही झंझावात का शिकार हो रहा है। राहुल गांधी के दो दिवसीय उत्तर प्रदेश भ्रमण के दौरान प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में युवाओं ने जिस तरीके से उनका विरोध किया उससे तो यही प्रतीत हो रहा है कि राहुल गांधी का करिश्मा अब चल नहीं पा रहा है, क्योंकि युवाओं की बात और उनकी वकालत करने के बावजूद युवा ही उनका विरोध सबसे ज्यादा कर रहे हैं। हालांकि देश के अलग-अलग हिस्सों में युवाओं के बीच जाकर राजनीति का ज्ञान बांटने वाले राहुल गांधी को भी यह आशा नहीं रही होगी कि उन्हें उत्तर प्रदेश में इस तरह युवाओं का विरोध झेलना पड़ेगा। अब तक तो यही कहा जाता रहा है कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय में कांग्रेस के लोगों का प्रवेश आसान नहीं होता है, लेकिन कांग्रेसी रणनीतिकारों ने भले ही मदन मोहन मालवीयजी की कर्मस्थली में युवा तुर्क राहुल गांधी को प्रवेश दिलाने में कामयाबी पा ली हो, लेकिन राहुल गांधी के खिलाफ युवाओं के विरोध व असंतोष को वह संभाल पाने में असमर्थ ही रहे। इस तरह आरती सजाकर खैरकदम की ख्वाहिश अधूरी ही रह गई। युवा छात्रों के विरोध का दंश कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी को दीर्घकाल तक सालता रहेगा। काशी हिंदू विश्वविद्यालय से उठी राहुल गांधी के विरोध की लपट न केवल इलाहाबाद और लखनऊ में देखी गई, बल्कि उसकी तपिस मोहब्बत की नगरी आगरा और महारानी लक्ष्मीबाई की नगरी झांसी में भी देखी गई। समझने वाली बात यह है कि आखिर राहुल गांधी के विरोध में अचानक कौन सी ऐसी हवा बही कि पूरा युवा वर्ग ही उनके खिलाफ खड़ा होने का मन बनाता दिख रहा है। कल तक राहुल गांधी का आभामंडल संपूर्ण भारत के युवाओं को आकर्षित कर रहा था और लग रहा था कि नेहरु-गांधी परिवार का यह वारिस नई पीढ़ी का केंद्रबिंदु बनेगा। कांग्रेस पार्टी भी यह कहते नहीं अघाती थी कि राहुल गांधी भविष्य के जयप्रकाश नारायण हैं और वह देश और समाज में एक नया क्रांतिकारी परिवर्तन लाएंगे। देखा जाए तो युवाओं के मन में भी राहुल गांधी को लेकर एक भरोसा जगा था। उनकी आदर्शवादी बातों को सुन-सुनकर युवाओं को भी लगने लगा था कि राहुल गांधी देश की भ्रष्ट राजनीति और आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे राजनीतिकों के खिलाफ जोरदार मुहिम चलाएंगे। हालांकि वैसा कुछ भी नहीं हुआ और युवाओं के हाथ निराशा लगी। कई बार यह भी देखा गया कि राहुल गांधी का राजनीतिक आचरण भी उन्हीं राजनीतिक नेताओं के जैसा ही है जो राजनीतिक भ्रष्टाचार के मुद्दे पर दोमुंही बात किया करते हैं और जनता को मूर्ख बनाने का काम करते हैं। इतिहास गवाह है कि देश का युवा अपना नायक उसे चुनता है जो जुबान और कर्म में सामंजस्य बनाए रखता है। शायद युवाओं को लगने लगा है कि राहुल गांधी इन दोनों गुणों में सामंजस्य नहीं स्थापित कर पा रहे हैं। राहुल गांधी जिन विश्वविद्यालयों में गए वहां अपनी कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक बखान ही करते देखे गए। यहां तक कि वह विपक्षी दलों की सारगर्भित और रचनात्मक आलोचना करने की बजाय विषवमन ही किए। विशेष तौर पर भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस के खिलाफ उन्होंने जिन शब्दों का इस्तेमाल किया उससे देश का युवा बेहद ही नाराज दिखा। राहुल गांधी की नजर में भले ही देश का युवा कच्चा और नासमझ हो, लेकिन आदर्शवादी राहुल गांधी के संदेश में छिपा सियासत की गंध युवाओं को महसूस करते देर नहीं लगी। वह अच्छी तरह समझ गए हैं कि राहुल गांधी युवाओं को नैतिकता की सीख देने के बहाने कांग्रेस पार्टी के एजेंडा को ही आगे बढ़ा रहे हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी की राजनीतिक कलाकौशल की परीक्षा और उसमें उनके चारों खाने चित्त होने के बाद युवाओं को लगने लगा कि राहुल गांधी का आभामंडल कुछ रणनीतिकारों द्वारा अत्यंत चालाकी से गढ़ा और बुना गया है, न कि उनका वह मूल स्वरूप है। बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार से पटकनी खाने के बाद राहुल गांधी का करिश्माई मिथक जो जाने-अनजाने उत्तर प्रदेश के विपक्षियों के सिर पर भी चढ़-बढ़कर बोल रहा था और उन्हें भयभीत कर रहा था, वह अचानक गायब हो गया। विकीलीक्स के रहस्योद्घाटन के बाद युवाओं की समझ में पूरी तरह से आ गया कि राहुल गांधी में अभी राजनीतिक परिपक्वता और कूटनीतिक धार न के बराबर है। अन्यथा अमेरिकी राजदूत से हिंदू आतंकवाद की तर्कहीन चर्चा वह शायद ही करते। रही सही कसर संप्रग सरकार के मंत्रियों के भ्रष्टाचार ने पूरा कर दिया। युवाओं को लग रहा था कि राहुल गांधी इन भ्रष्टाचारियों के खिलाफ जरूर मजबूत कार्यवाही करेगें, लेकिन कार्रवाई करनी तो दूर की बात रही राहुल गांधी ने भ्रष्टाचारियों के खिलाफ जुबान तक खोलने की जहमत नहीं उठाई। देखा गया कि कश्मीर मसले पर उनके मित्र उमर अब्दुला देश विरोधी बयान देते नजर आए, लेकिन राहुल गांधी ने उन्हें एक और मौका देने की बात कही। कश्मीर मसले पर अलगाववादियों की जुबान कैंची की तरह चलती रही, लेकिन राहुल गांधी तमाशबीन बने रहे और उनके खिलाफ एक शब्द भी बोलना उचित नहीं समझा। लोगों का यह भी मानना है कि देश में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग की सरकार है और राहुल गांधी का कर्तव्य बनता है कि वह उन कार्यों का जरूर विरोध करें जो देश की सुरक्षा व एकता तथा नागरिकों के जीवन से जुड़ा हुआ है। इस सबकी बजाय राहुल गांधी चुप्पी साध रखे हैं। वह सिर्फ अपनी सरकार के मंत्रियों का बचाव करते ही नजर आ रहे हैं। ऐसे में देश का युवा उनकी राजनीतिक चालाकियों को अच्छी तरह भांप गया है। ऐसे में यदि युवा वर्ग उनका विरोध करता है तो आश्चर्य नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह राहुल से जुड़ी अपेक्षाओं के प्रति युवाओं का आक्रोश है, जो उन्हें नए सिरे से सोचने के लिए कह रहा है अथवा संदेश दे रहा है। राहुल गांधी के विरोध का एक और प्रमुख कारण है उनके द्वारा किया गया वादा खिलाफी का आचरण है। वह छात्रों को लगातार विश्वास दिला रहे थे कि छात्रसंघ बहाल कर दिया जाएगा, लेकिन छात्रसंघ की बहाली के बजाय वह एनएसयूवाई का संगठन खड़ा करने में ही अपनी जुगत भिड़ाते दिखे। झांसी में उनके विरोध की मूल वजह बुंदेलखंड राज्य के निर्माण से जुड़ा हुआ है। राहुल गांधी यहां के लोगों को कई बार भरोसा दे चुके हैं, लेकिन अलग राज्य का सपना अभी भी दूर की कौड़ी बना हुआ है। अगर महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ देश का युवा वर्ग सड़कों पर उतर रहा है तो इसके लिए कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ही जिम्मेदार है। वह भले ही राहुल गांधी को देवत्व के गुणों से लैस करके सियासत के मैदान में उतारना चाहती हो, लेकिन एक लोकतांत्रिक देश की जनता में तो वहीं पूजा जाएगा जो जनता के हृदय का सम्राट बनेगा। कांग्रेस को अपनी बाजीगरी भरी नीतियों पर फिर से करना चाहिए। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


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