Sunday, January 9, 2011

समझौता धमाके पर दो कबूलनामों से उठे सवाल

वनवासी कल्याण आश्रम से जुड़े स्वामी असीमानंद के कबूलनामे के जरिए जांच एजेंसियां भले ही समझौता एक्सप्रेस धमाके की गुत्थी सुलझाने का दावा कर रही हों, लेकिन इसके साथ ही इस मामले पर एक नया सवाल भी उठ गया है। देश की सबसे प्रतिष्ठित फोरेंसिक लैब में नार्को जांच के दौरान सिमी के सरगना सफदर नागोरी ने माना था कि यह साजिश उसने रची है। असीमानंद के कबूलनामे के आधार पर जांच एजेंसियों ने समझौता धमाके की पूरी कहानी का खुलासा करने का दावा किया है, लेकिन समझौता धमाके की हरियाणा पुलिस की जांच से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि मार्च, 2008 में इंदौर से गिरफ्तार सिमी प्रमुख सफदर नागोरी ने साफ तौर पर माना था कि यह पूरी साजिश सिमी ने लश्कर-ए-तैयबा की मदद से रची। चार अप्रैल 2008 को मध्य प्रदेश की एक निचली अदालत से इजाजत लेने के बाद फोरेंसिक साइंस लैब (एफएसएल) बंगलूर में सफदर, कमरुद्दीन नागोरी और आमिल परवेज की नार्को जांच की गई। एफएसएल निदेशक बीएम मोहन ने 10 अप्रैल, 2008 को बताया था कि तीनों ने साढ़े चार घंटे के नार्को में कई अहम खुलासे किए। नागोरी ने इस काम में अपने सहयोगियों के नाम के साथ पूरे घटनाक्रम का ब्योरा दिया था। उसके मुताबिक एहतेसाम सिद्दीकी और अब्दुस्सुभान ने बम तैयार किया, जबकि लश्कर के आतंकी ने इंदौर से सूटकेस खरीदा जिसमें बम छुपाया गया। सिमी के ही एक कार्यकर्ता ने इस सूटकेस का कवर इंदौर से ही सिलवाया। पैसों के इंतजाम में सिमी की कोलकाता इकाई के प्रमुख मिस्बाउल इस्लाम और उसके एक साथी अब्दुल रजाक का योगदान रहा था। हालांकि नागोरी के इकबालिया बयान से भी जांच की गुत्थी पूरी तरह नहीं सुलझ सकी थी, क्योंकि जांच एजेंसियां इससे मेल खाने वाले साक्ष्य नहीं जुटा सकी थीं। अब एनआईए के सामने भी असीमानंद के कबूलनामे के मुताबिक साक्ष्य जुटाने की चुनौती है। असीमानंद को एक अन्य मामले की जांच कर रही दूसरी एजेंसी ने गिरफ्तार किया था।

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