देर से किया और वह भी दुरुस्त नहीं.! लंबी मगजमारी और बेशुमार इंतजार के बाद हुए मंत्रिमंडल विस्तार के बाद केंद्र सरकार और कांग्रेस भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता जैसे गंभीर मुद्दों के खिलाफ कार्रवाई का संदेश देने में बिल्कुल नाकाम दिखीं। भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए सरकार ने मंत्रालयों में फेरबदल की कॉस्मेटिक सर्जरी भर की। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी इसे छोटा फेरबदल करार दिया और व्यापक फेरबदल बजट सत्र के बाद करने का एलान किया। मौजूदा फेरबदल में छोटे-बड़े बदलावों के नाम पर 35 मंत्रालयों या विभागों को इधर से उधर किया गया है। किसी भी मंत्री को हटाया नहीं गया है। इस विस्तार में किए गए एलानों को पूरा करने में प्रधानमंत्री इस कैबिनेट विस्तार में मजबूर नजर आए। पहले तो बार-बार विस्तार का समय बढ़ा। इसके अलावा उन्होंने कैबिनेट को अपेक्षाकृत युवा करने का संकेत दिया था और भ्रष्टाचार व अकर्मण्यता के खिलाफ कार्रवाई का दम भी भरा था। दोनों ही मोर्चो पर आरोपों से घिरे किसी भी मंत्री को सरकार से बाहर करने का साहस नहीं दिखा सकी। कैबिनेट फेरबदल को अगर भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता के पैमाने को मापें तो निराशा ही हाथ लगती है। राष्ट्रमंडल खेल आयोजन से जुड़े रहे एमएस. गिल को खेल मंत्रालय से हटाकर सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय में पटक दिया गया। उनकी जगह गृह राज्यमंत्री रहे अजय माकन को खेल एवं युवा मंत्रालय देकर मंत्रालय को नया और जवान चेहरा देने की कोशिश की गई है। इस कदम से अगर सरकार ने थोड़ा-बहुत संदेश दिया भी तो दूसरे फैसलों में भ्रष्टाचार और शिथिलता के आरोपी मंत्रियों को एक-दूसरे से बदल भर दिया। राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान निर्माण संबंधी विवादों में रहे शहरी विकास मंत्रालय की कमान संभालने वाले जयपाल रेड्डी को प्रोन्नत कर पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस जैसा हाईप्रोफाइल मंत्रालय दे दिया गया। यही नहीं, राजमार्ग परियोजनाओं में शिथिलता के लिए जिम्मेदार सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री कमलनाथ को जयपाल रेड्डी की जगह भेजा गया है। खास बात है कि सरकार की झुग्गीमुक्त शहरों की अहम परियोजना में शहरी विकास मंत्रालय की खास भूमिका होगी। उस पर भी तुर्रा यह है कि तेल एवं प्राकृतिक गैस से शिथिलता के चलते हटाए गए मुरली देवड़ा को कंपनी मामलों का मंत्री बना दिया गया है। सबसे दिलचस्प बदलाव ग्रामीण विकास व पंचायती राज्य मंत्रालय में हुआ है। शिथिलता के आरोपों से जूझते रहे सीपी. जोशी को कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी का हस्तक्षेप बचा ले गया। उन्हें इस मंत्रालय से हटाकर कमलनाथ की जगह सड़क परिवहन एवं राजमार्ग जैसे अहम मंत्रालय में भेजा गया है। आदर्श सोसाइटी से लेकर सूदखोरों को बचाने जैसे मामलों और भारी उद्योग मंत्रालय में ध्यान न देने के आरोपों में घिरे रहे विलास राव देशमुख को सीपी. जोशी की जगह ग्रामीण विकास मंत्रालय जैसा बेहद जिम्मेदारी वाला मंत्रालय दिया गया है। इस्पात मंत्रालय में शिथिलता के लिए जाने जाते रहे वीरभद्र सिंह को अति सूक्ष्म, छोटी और मझोले उद्यमों के मंत्रालय भेजा गया है। मगर उनकी जगह उम्रदराज बेनी प्रसाद वर्मा को राज्यमंत्री का स्वतंत्र प्रभार देकर कैसी गतिशीलता देने की कोशिश की गई है, समझ से परे है। बडे़ बदलाव के नाम पर श्रीप्रकाश जायसवाल, सलमान खुर्शीद और प्रफुल्ल पटेल को कैबिनेट का दर्जा देने का फैसला रहा। इसके अलावा बेनी प्रसाद वर्मा, अश्विनी कुमार और केसी. वेणुगोपाल को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है। जायसवाल का कोयला मंत्रालय बरकरार रखकर उनका रुतबा और हनक बढ़ा दी गई है। सलमान खुर्शीद को कैबिनेट का दर्जा तो मिला, लेकिन उनसे कंपनी मामलों का मंत्रालय छीन लिया गया। खुर्शीद इस मंत्रालय में बेहद सक्रिय थे और कई औद्योगिक घराने उनके पीछे पड़े हुए थे। उनका अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय बरकरार रखते हुए जल संसाधन मंत्रालय और दिया गया है। इसी तरह प्रफुल्ल पटेल को कैबिनेट मंत्री तो बनाया गया, लेकिन उन्हें नागरिक उड्डयन की जगह भारी उद्योग जैसा कम सक्रिय मंत्रालय दिया गया है। प्रफुल्ल को कैबिनेट दिलाने के लिए कृषि मंत्री शरद पवार ने उपभोक्ता मामले व सार्वजनिक वितरण मंत्रालयों को छोड़ दिया। अब यह मंत्रालय पवार के राज्य मंत्री रहे केवी. थॉमस को स्वतंत्र प्रभार का दर्जा देकर दिया गया है।
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