Sunday, January 30, 2011

कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र बनाम आंतरिक कलह


यूपी में सियासी वर्चस्व की जंग ने कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र बहाली की कवायद को पलीता लगा दिया है। नतीजतन कांग्रेस को यह खासा महंगा पड़ रहा है। स्थिति यह है कि विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं वैसे-वैस संगठन चुनाव को लेकर पार्टी नेताओं में पैदा हुई खटास नासूर बनती जा रही है। राज्य में करीब एक दर्जन से ज्यादा ऐसे जिले हैं जहां अभी तक पार्टी जिलाध्यक्षों की घोषणा नहीं कर सकी है। इसमें कानपुर और मेरठ जैसे महत्वपूर्ण जिले भी शामिल हैं। सबसे दयनीय हालत गोरखपुर की हैं, जहां पार्टी पूरी तरह न केवल दो गुटों में बंट गई हैं बल्कि संगठन का विवाद अब सड़कों पर पहुंच गया है। मंगलवार को कांग्रेस के एक गुट ने प्रदेश मुख्यालय आकर धरना-प्रदर्शन तक किया। उत्तर प्रदेश में संगठनात्मक चुनाव की घोषणा के साथ ही कांग्रेस नेताओं में वर्चस्व की जंग शुरू हो गई। कई जिलों में स्थिति विस्फोटक होने पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को हस्तक्षेप कर मामला शांत कराना पड़ा। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने शुरू में इसे काफी हल्के से लिया। इसके पीछे पार्टी के कद्दावर नेताओं की यह सोच थी कि विधानसभा चुनाव आने के साथ ही सभी विवाद पृष्ठभूमि में चले जाएंगे, लेकिन एक दर्जन से ज्यादा जिले ऐसे हैं जहां यह विवाद थमने के जगह नासूर बन गया है। हालत यह है कि पार्टी को अब यह न तो निगलते बन रहा है और न ही उगलते। पार्टी नेतृत्व किंकर्तव्यविमूढ़ है। उसकी समझ में नहीं आ रहा कि किसे खुश करे और किसे नाराज,क्योंकि नेताओं की नाराजगी विधानसभा चुनावों में पार्टी को भारी पड़ सकती है। मसलन, वाराणसी में चुनाव को लेकर इतना अधिक विवाद हुआ कि एक पक्ष सोनिया गांधी के दरबार तक पहुंच गया और अंतत: आलाकमान को यहां के संगठन चुनाव स्थगित करने का फरमान जारी करना पड़ गया। इससे भी बदतर हालत गोरखपुर की है। यहां कांग्रेस के नेता दो खेमों में बंट गए हैं और खुलकर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। संगठन चुनाव परिणाम की घोषणा के बाद भी विवाद खत्म नहीं हुआ और अब इसकी लपटें प्रदेश मुख्यालय तक आ पहुंच गई हैं। चुनाव में मात खाया खेमा पार्टी नेतृत्व पर चुनाव नतीजों में फेरबदल करने के लिए लगातार दबाव बनाए हुए है। इससे पार्टी के स्थिति सांप छंछूदर जैसी हो गई है। वैसे प्रदेश इकाई के लिए इसमें चाहकर भी कुछ करना संभव नहीं है, क्योंकि एक बार परिणाम घोषित हो जाने के बाद इसमें फेरबदल का अधिकार केवल आलाकमान में ही निहित है। इसके अलावा राज्य के 13 जिले ऐसे हैं जहां अभी तक जिलाध्यक्षों की घोषणा नहीं हो सकी है। इसमें रायबरेली व सुलतानपुर भी शामिल है, जिनके लिए कहा जाता है कि इन पर फैसला राहुल गांधी व सोनिया गांधी करेंगी। इसके अलावा मेरठ, कानपुर, आजमगढ़, सीतापुर, जेपी नगर, औरेया व अलीगढ़ हैं। इनमें अधिकांश में जिलाध्यक्ष पर ही पेंच फंसे हुए हैं। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता सुबोध श्रीवास्तव कहते हैं कि गोरखपुर में क्षुब्ध कार्यकर्ताओं की भावनाओं से वरिष्ठ नेताओं को अवगत करा दिया गया है। उनके अनुसार संगठन के फोरम पर अपनी बात कहने का सबको अधिकार है।


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