Saturday, January 15, 2011

भ्रष्टाचार पर बयानबाजी

यह वह समय है जब भ्रष्टाचार पर हर दिन कुछ न कुछ सुनने को मिलता है। दुर्भाग्य से ज्यादातर आरोप-प्रत्यारोप की शक्ल में ही होता है। इस आरोप-प्रत्यारोप के जरिये पक्ष-विपक्ष की ओर से या तो गड़े मुर्दे उखाड़े जाते हैं या फिर खुद को दूसरे के मुकाबले कम भ्रष्टाचारी साबित करने का प्रयास किया जाता है। यह सिलसिला एक अर्से से कायम है और फिलहाल उसके थमने के आसार नहीं नजर आते। ऐसा लगता है कि भ्रष्टाचार को एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने का हथियार बना लिया गया है। विगत दिवस मुख्य विपक्षी दल भाजपा की ओर से सत्तापक्ष पर कुछ और गंभीर आरोप जड़े गए और केंद्र सरकार को सबसे भ्रष्ट सरकार की संज्ञा दी गई। सत्तापक्ष और विशेष रूप से कांग्रेस ऐसे आरोप पर शायद ही चुप बैठे, लेकिन पिछले दिनों उसकी ओर से जिस तरह यह कहा गया कि भाजपा अपनी भाषा सुधारे उससे उसके इरादों को समझा जा सकता है। शायद पक्ष-विपक्ष यह समझने के लिए तैयार नहीं कि भ्रष्टाचार को लेकर जारी बयानबाजी आम आदमी में निराशा का संचार करने के साथ-साथ भारतीय राजनीति के प्रति अरुचि भी पैदा कर रही है। देश को जो संदेश जा रहा है वह यह कि भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने अथवा भ्रष्ट तत्वों को दंडित करने में किसी की कोई दिलचस्पी नहीं। नि:संदेह इसका एक कारण यह भी है कि किस्म-किस्म के घपले-घोटाले सामने आते चले जाने के बावजूद केंद्र सरकार खोखले आश्वासन देने के अलावा और कुछ नहीं कर रही है। उसकी ओर से कभी लोकपाल विधेयक लाने की सूचना दी जाती है और कभी भ्रष्टाचार रोकने के उपाय सुझाने वाली समिति का गठन करने की, लेकिन तत्काल प्रभाव से कुछ भी होता नहीं दिखता। आखिर केंद्रीय सत्ता आम जनता का भरोसा हासिल करने और साथ ही अपनी साख बचाने के लिए भ्रष्टाचार के खिलाफ तत्काल प्रभाव से कोई कठोर कदम क्यों नहीं उठा सकती? क्या इसलिए कि वह गठबंधन सरकार है? यह सवाल इसलिए, क्योंकि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की मानें तो भ्रष्टाचार पर लगाम न लग पाने की वजह गठबंधन सरकार है। यदि राहुल गांधी सही हैं तो इसका मतलब है कि कांग्रेस के सहयोगी दल केंद्र सरकार को इसके लिए विवश कर रहे हैं कि वह भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए कठोर नियम-कानून बनाने से परहेज करे? क्या वास्तव में ऐसा है? एक क्षण के लिए यह तो समझ आता है कि गठबंधन की तथाकथित मजबूरियों के चलते केंद्र सरकार स्पेक्ट्रम घोटाले को अंजाम देने वाले द्रमुक नेता ए. राजा के खिलाफ कठोर कार्रवाई न कर पा रही हो, लेकिन आखिर केंद्रीय जांच ब्यूरो कांग्रेसी सांसद सुरेश कलमाड़ी के प्रति इतना नरम-उदार क्यों है? इसी तरह वह एक अभियुक्त को केंद्रीय सतर्कता आयुक्त क्यों बनाए हुए है? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या तब भी गठबंधन की मजबूरियों का रोना रोया जाएगा जब भ्रष्टाचार के खिलाफ निष्कि्रयता दिखाने के कारण केंद्र सरकार की देश-दुनिया में बदनामी हो रही हो और उसकी साख तली में जा लगी हो? राहुल गांधी ने महंगाई के लिए भी गठबंधन राजनीति को जिम्मेदार ठहराया है। यदि गठबंधन राजनीति इतनी ही बुरी है और हाल-फिलहाल उससे पीछा छुड़ाना भी संभव नहीं तो फिर इस राजनीति के कायदे-कानून तय करने में क्या हर्ज है?

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