मनमोहन सिंह की टीम में अनेक ऐसे मंत्री हैं जिनके पास सरकार चलाने के साथ-साथ संगठन को मजबूत बनाने की भी जिम्मेदारी है। सवाल यह उठता है कि अगर बजट सत्र के बाद प्रधानमंत्री बहुत बड़ा फेरबदल करेंगे तो जिन मंत्रियों का अभी उन्होंने काम बदला है क्या उनकी भी जिम्मेदारी फिर बदलेंगे?
तैयारी यूं तो बड़े की थी पर हो पाया छोटा विस्तार। बाद में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह बोले कि यह तो छोटा है पर बजट सत्र के बाद काफी बड़ा फेरबदल होगा। प्रधानमंत्री ने तीन लोगों को तरक्की देकर कैबिनेट मंत्री बनाया। दो को राज्यमंत्री। बीस छोटे बड़े मंत्रियों के विभागों में फेरबदल कर दिया। उनकी नजर में यह छोटा था तो आखिर बजट सत्र बाद ‘बड़ा’ का स्वरूप क्या होगा। सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री ने जब बड़े पैमाने पर फेरबदल की तैयारी की थी तो वह छोटे में तब्दील कैसे हो गई। किसी न किसी रूप में अक्षम और दागी लोगों से किनारा करना था आखिर उसका क्या हुआ। क्या अपने ऐसे मंत्रियों को उन्होंने सुधरने के लिए बजट सत्र तक मौका दिया है या फिर वजह कुछ और है। सरकार में युवाओं को ज्यादा से ज्यादा तरजीह देने, मंत्रियों का औसत आयु कम करने, एक व्यक्ति एक पद, बुजुर्ग या अस्वस्थ लोगों को बाहर रखने के साथ-साथ संगठन से सरकार में और सरकार से संगठन में जाने वाले लोगों के मसले का क्या हुआ? मंत्रिमंडल के इस फेरबदल में न तो प्रधानमंत्री की इच्छा पूरी होती दिखी है और न ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की। इस फेरबदल के बाद कई मंत्री इस कदर दुखी हैं कि उनकी पीड़ा सबके सामने है। मनमोहन सिंह की टीम में अनेक ऐसे मंत्री हैं जिनके पास सरकार चलाने के साथ- साथ संगठन को मजबूत बनाने की भी जिम्मेदारी है। सवाल यह उठता है कि अगर बजट सत्र के बाद प्रधानमंत्री बहुत बड़ा फेरबदल करेंगे तो जिन मंत्रियों का अभी उन्होंने काम बदला है क्या उनकी भी जिम्मेदारी फिर बदलेंगे? या फिर ऐसे लोग सरकार में बने रहेंगे या संगठन में जाएंगे। यह भी तो असमंजस की स्थिति है। एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत को अगर माना जाएगा तो मनमोहन कैबिनेट के कई मंत्री जिनके कामकाज उन्होंने बदले हैं उन्हें सरकार एवं संगठन में से किसी एक को तो छोड़ना ही पड़ेगा। जाहिर है सरकार छोड़ना कोई स्वेच्छा से शायद ही चाहेगा। इस छोटे विस्तार से प्रधानमंत्री के साथ-साथ उन मंत्रियों की भी दुविधा है कि बजट बाद तक वे काम करें मन लगाकर या बड़े फेरबदल तक यूं ही चलते और चलाते रहें। बुराड़ी महाधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पुराने और लंबे समय से संगठन में काम कर रहे कांग्रेसियों को जिन्हें कभी सरकार में काम करने का मौका नहीं मिला उन्हें भी सुनहरे सपने दिखाए थे। सोनिया जी ने कहा था कि हमें अहसास है कि हमारे काफी सहयोगियों को काम के बदले उनका पुरस्कार मिल चुका है। कुछ लोग ऐसे हैं जिनको थोड़ा-बहुत मिला है। लेकिन शायद उतना नहीं जितना वे चाहते थे। लेकिन ऐसे कांग्रेसजनों की संख्या सबसे ज्यादा है, जिनमें पुरुष और महिलाएं दोनों हैं, जिन्हें न तो सरकार में कुछ मिला है और न ही पार्टी में। बावजूद इसके वे पूरी निष्ठा के साथ कांग्रेस को अपना योगदान दे रहे हैं। बाद में सोनिया गांधी ने सरकार और संगठन में अब तक पद नहीं पा लोगों को जवाब दिया था कि ‘आपका भी नम्बर आएगा’। आखिर इनका नम्बर वाकई में कब तक आएगा। क्या बजट सत्र बाद बिना सरकार और संगठन में कोई पद हासिल किए निष्ठा के साथ काम कर रहे लोगों में से कुछ एक का नम्बर आएगा। अब प्रधानमंत्री ने जब स्वयं कह दिया है कि यह छोटा विस्तार था, बड़ा बाद में होगा। तो देखते हैं कि वह कितना बड़ा होता है। बजट बाद बड़ा होने की उम्मीद में लोग अभी से जुगत और जतन करने में जुट गए हैं। कहते हैं कि जो जुगाड़ू होते हैं वे अपना जुगाड़ कर ही लेते हैं। अब इस बार का ही देखिए जिन्हें आदर्श घोटाले में बाहर जाना था उन्हें ऐसा महत्वपूर्ण मंत्रालय मिला जो रोजगार की गारंटी से सीधा जुड़ा है। मिस्टर परसेंट के नाम से जाने जाने वाले मंत्री जी की बाहर जाने की गारंटी थी पर उनका विभाग बदल गया। खराब स्वास्थ्य के चलते बाहर जाने वाले को एक मौका और मिला। सवाल यह है कि किसी न किसी आधार और प्रमाण के चलते जिन्हें जाना था उन्हें मौका मिल गया। इसके दो नुकसान हुए। एक तो जनता में नकारात्मक संदेश गया तो दूसरा बड़े उत्साह से संगठन से सरकार में आने की उम्मीद जगाए नेताओं को निराशा हासिल हुई। सरकार में बने रह गए लोग बजट बाद हटाए जाने के डर से काम न करके अपने बचने का जुगाड़ ढूं़ढ़ते रहेंगे तो दूसरी तरफ एक बार फिर संगठन से सरकार में जाने में असफल नेता और जीतोड़ कर अपनी रणनीति को अंजाम देने में जुट जाएंगे। प्रधानमंत्री को जहां बड़ा करने की तैयारी करनी है वहीं कांग्रेस अध्यक्ष अपने संगठन की टीम को चुस्त-दुरुस्त करने की तैयारी कर रहीं हैं। सोनिया ने बुराड़ी अधिवेशन में जो कहा था या उनके मन में संगठन को प्रभावी बनाने के जो भी तौरत रीके अपनाये जाने हैं, वह उसके लिए काम कर रहीं हैं। सोनिया गांधी ने कल राष्ट्रपति भवन में कहा कि एआईसीसी की टीम का गठन किया जा रहा है। इस टीम का कैसा स्वरूप होगा? युवाओं को कितनी तरजीह मिलेगी? सरकार की तरफ से कौन शामिल होगा? या फिर सालों से मौका नहीं पाने वाले लोगों में से कितनों को सोनिया गांधी अपनी इस टीम में जोड़ पाती हैं। उम्मीद सभी यह लगाए बैठे थे कि महंगाई और खासतौर पर भ्रष्टाचार के मोर्चे पर विपक्ष के हमलों से जूझ रही सरकार कुछ ऐसा करेगी जिससे विपक्ष की धार कुछ कम जरूर होगी। हो तो यह भी सकता है कि विपक्ष के हमलों के चलते ही किसी न किसी रूप में आरोपित मंत्रियों को सरकार में ही इधर-उधर कर रखा गया। वरना आदर्श घोटाले में केवल आरोप के चलते महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को कुर्सी छोड़नी पड़ी तो ऐसे ही दबावों के चलते ए राजा सरकार से बाहर गए। भ्रष्टाचार के सवाल पर सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह दोनों ने ही तत्काल कदम उठाए। हम सभी इस बार दोनों से ही उम्मीद कुछ ज्यादा ही लगाए बैठे थे। कौन सी परिस्थितियां थीं जिसके चलते आखिरकार वह सब नहीं हो पाया जिसे मंत्रिमंडल विस्तार में हो जाना था। मजे की बात तो यह हेै कि उस फेरबदल की झलक भी नहीं मिली जिसकी आस विपक्षी दलों के साथ-साथ खुद कांग्रेस के दिग्गज लगाए बैठे थे। हां एक बात तो जरूर रही कि बड़े रहे हों या फिर छोटे मंत्री डरे सहमे तो वे आखिर तक रहे। हांलाकि अभी ऐसे लोगों पर लटकी तलवार न तो सोनिया गांधी ने हटायी है और न ही प्रधानमंत्री का ऐसा कोई इरादा दिखता है। वजह यह है कि बुराड़ी अधिवेशन में प्रधानमंत्री ने खुद कहा था कि सीजर की पत्नी को भी शक के दायरे से ऊपर रहना चाहिए। मतलब यह है कि ईमानदार और साफ-सुथरे लोगों के आसपास रहने वाले लोग भी ऐसे ही होने चाहिए।
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