Wednesday, January 26, 2011

नवचिंतन का क्रियान्वयन


सांसद निधि की शुरुआत कराने के मामले में बिहार का महत्वपूर्ण योगदान था। पीवी नरसिंहराव द्वारा अपनी अल्पमत सरकार को बचाने के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा के मुखिया शिबू सोरेन के साथ किए गए सौदेबाजी को आज पूरा देश जानता है। उसी प्रक्रिया में सांसद निधि का प्रावधान हुआ था और नरसिंहराव की सरकार अपने कार्यकाल के पांच वर्ष पूरे करने में सफल रही। पिछले 15-16 सालों में इस प्रावधान के कारण चयनित जन प्रतिनिधियों की साख काफी गिरी है और इसने जनता के पैसे का दुरुपयोग के मामले में नए मापदंड स्थापित किए हैं। इस निधि में बढ़ोतरी होती रही और जन प्रतिनिधि इसे किसी भी तरह छोड़ने को तैयार नहीं है। इस परिदृश्य में बिहार केमुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक सराहनीय कदम उठाया है। बिहार में विधायक निधि समाप्त कर दी गई है और इसका विरोध वहां विपक्ष भी नहीं कर पा रहा है। नीतीश कुमार ने ऐसा माहौल बनाया कि मुंह खोलकर विरोध असंभव हो गया है। साहस के साथ जनमानस की समझ तथा जनहित में राजनीतिक दृष्टि से दीर्घकालिक हितों के निर्णय ले सकने की क्षमता ही किसी के नेतृत्व के गुणों को विस्तार और विश्वसनीयता देती है। ऐसे ही नेता देश को सही नेतृत्व दे सकते हैं। पिछले पांच वर्षो में देश ने यह जाना कि बिहार बदल रहा है। उसके पहले के पंद्रह वर्ष बिहार में कुशासन तथा स्वार्थपरकता के वर्ष थे। पिछले पांच वर्ष में बिहार ने अपना मन बनाया और बदलाव की आवश्यकता पर मोहर लगाई। अब बिहार अपना ऐतिहासिक दायित्व निभा रहा है। नए विचार तथा चिंतन का प्रवाह वहां से प्रस्फुटित हो रहा है। यही नहीं उनका क्रियान्वयन भी हो रहा है। इस प्रकार का परिवर्तन देश में इस समय विरले लोगों द्वारा ही संभव है। 2010 के अंतिम चार महीनों में भ्रष्टाचार के खुलासे जिस तेजी से हुए उससे पूरा देश स्तब्ध है। सभी जानते हैं कि भ्रष्टाचार हर ओर व्याप्त है, लेकिन वह इतना बढ़ गया है और भ्रष्टाचारियों की बेशर्मी इतनी ज्यादा बढ़ चुकी है इसका पता तो अब चल रहा है। राजनेताओं तथा नौकरशाहों का भ्रष्टाचार एक सामान्य बात है, लेकिन आदर्श सोसाइटी घोटाले के मामले जिस तरह सेना के उच्चतम स्तरों पर बैठे लोगों पर उंगली उठाई वह चिंतित करने वाली है। ऐसे स्थिति और माहौल में विधायक निधि समाप्त करने का साहस लगभग असंभव ही था। सांसद निधि का प्रावधान पीवी नरसिंहराव की अल्पमत सरकार को पांच साल का चलाते रहने के लिए खेले गए अनेक खेलों में प्रमुख था। तब का बिहार अलग था। शिबू सोरेन के झारखंड मुक्ति मोर्चा ने वह सरकार बचाई थी। धन का आदान-प्रदान बाकायदा चेक से हुआ, लेकिन तकनीकी कारणों से सर्वोच्च न्यायालय भी कुछ नहीं कर सका। उसके बाद यह धनराशि लगातार बढ़ती रही है। यह जानते हुए भी कि इस प्रावधान से चयनित प्रतिनिधियों की साख लगातार घटी है। आखिर क्या कारण है कि बिहार इसे समाप्त करने का साहस कर सका? ऐसा तभी संभव है जब व्यक्ति अपने व्यक्तित्व में उन सब लोगों की आशाओं, अपेक्षाओं को आत्मसात कर लेता है तभी उसकी अंत:शक्ति उसे बड़े पटल पर सोचने और कार्य करने को प्रेरित करती है। बिहार की घटना छोटी नहीं है। इसमें वह ताकत है जिसका दर्शन लोगों ने जेपी के नेतृत्व में किया था। बिहार ने मूल्य आधारित निर्णय लेने में पहल की है और उसका अनुसरण करने में किसी भी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री को हिचक नहीं होनी चाहिए। सांसद निधि व्यवस्था सारे देश में समाप्त होनी चाहिए। ऐसा कदम भ्रष्टाचार की जड़ों को कमजोर करेगा और जन प्रतिनिधियों की साख में कुछ बढ़ोतरी भी कर सकेगा। दुर्भाग्य से आज के राजनैतिक परिदृश्य में केवल आरोप-प्रत्यारोप ही सामने है। (लेखक एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक हैं)



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