इस वर्ष असम में होने वाले विधानसभा चुनाव की लड़ाई की अकेले दम तैयारी कर रही भारतीय जनता पार्टी को उम्मीद है कि वह केरल विधानसभा में भी अपना पहला सदस्य भेजने में सफल हो सकेगी। यह राज्य पार्टी के लिए अब तक एक अभेद्य दुर्ग ही बना हुआ है। भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने शनिवार को यहां पत्रकारों से एक अनौपचारिक बातचीत के दौरान कहा, तमिलनाडु, पुडुचेरी, असम, केरल और पश्चिम बंगाल की पार्टी इकाइयों से जो सूचनाएं मिली हैं उसके आधार पर हमने फैसला लिया है कि हम इन राज्यों में अकेले चुनाव लड़ेंगे। पार्टी के तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल विधानसभा में विधायक हैं लेकिन भाजपा वहां राजग के घटक दलों के साथ चुनाव लड़ी है। लोकसभा 2009 के चुनावों में दार्जिलिंग संसदीय क्षेत्र से वरिष्ठ भाजपा नेता जसवंत सिंह चुने गए थे। वहां पार्टी का गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के साथ समझौता था लेकिन पार्टी वहां भाजपा का कोई विधायक नहीं है। इसी तरह तमिलनाडु में उसके चार सांसद हैं, यहां भी भाजपा ने राजग सहयोगियों के समर्थन से चुनाव लड़ा था। पार्टी सूत्रों के अनुसार, केरल राज्य भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती हैं। यहां पार्टी को तब 12 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे जब उसके प्रति अत्यधिक ध्रुवीकरण माहौल था। बावजूद इसके उसे केरल विधानसभा में अपना पहला सदस्य भेजना बाकी है। इस राज्य में माकपा के नेतृत्व में वाम लोकतांत्रिक मोर्चा या कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा का प्रभुत्व रहा है और सामरिक कारणों से भाजपा समर्थक को इनमें से किन्हीं एक का साथ देने के लिए बाध्य होना पड़ता है। अब भाजपा थिंक टैंक चाहता है कि पार्टी का जहां थोड़ा सा भी आधार है वहां उम्मीदवारों को मैदान में उतारा जाए और भविष्य में एक शक्तिशाली दल के उभरने की संभावनाओं को तलाशा जाए। पार्टी को जानकारी मिली है कि तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी की जनता गैर कार्यात्मक सरकारों को नीचा दिखाना चाहती है, वह इन राज्यों की सरकारों की कार्यप्रणाली से बुरी तरह निराश है। उसका मानना है कि जनता के विकास और जीवन शैली में सकारात्मक बदलाव के लिए सरकारों ने कुछ नहीं किया। पार्टी चाहती है कि इन राज्यों में वह भाजपा शासित प्रदेशों का उदाहरण प्रस्तुत करे जिनका ग्राफ विकास के मानचित्र अपेक्षाकृत अधिक ऊंचा है।
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