कहने को सूबे में दलित एजेंडे पर काम करने वाली सरकार है मगर कई एक विभाग ऐसे हैं जहां सरकारी नुमाइंदे खुद यहां डंडे बरसाने से नहीं चूक रहे हैं। मसलन दलितों के विकास के नाम पर सरकार में ऊंचे-ऊंचे ओहदों पर बैठे अफसर मुख्यमंत्री मायावती तक को गच्चा दे रहे हैं। स्वास्थ्य सेवाओं में खासकर आयुर्वेद विभाग में तो दलितों को मिलने वाली सुविधाओं का टोटा है। उन्हें स्पेशल कम्पोनेंट के नाम पर भी एक पैसा नहीं दिया जा रहा है।
बसपानेत्री के राज में दलितों के साथ हो रहे अन्याय का उजागर मुरादाबाद निवासी सलीम बेग की आरटीआई द्वारा मांगी गई सूचना के जरिए हुआ है। बेग ने मुख्यमंत्री कार्यालय के जनसूचना अधिकारी से सूचना मांगी थी कि आयुर्वेद विभाग में दलितों के विकास के लिए पिछले तीन सालों में कितना धन स्वीकृत किया गया, कितना अवमुक्त और कितना शेष है? मगर मुख्यमंत्री कार्यालय के निर्देश पर आयुर्वेद निदेशालय ने जो सूचना मुहैया कराई है वह चौकाने वाली है। निदेशालय प्रभारी अधिकारी डॉ. आरके सिंह ने लिखित में बताया है कि दलितों के विकास के नाम से आयुर्वेद विभाग में कोई योजना संचालित नहीं है। लखनऊ स्थित आयुर्वेद महाविालय के रिटायर्ड प्रधानाचार्य डॉ. भगवान सिंह ने भी डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट को बताया कि दलितों के नाम पर कोई सुविधाएं आज तक विभाग को उपलब्ध नहीं हो पाईं। दलित एजेंडे वाली सरकार में एक और तथ्य चौंकाने वाला यह है कि आयुर्वेद विभाग में स्पेशल कम्पोनेंट प्लान के तहत सिवाय पांच जिलों को छोड़ कर इतने बड़े प्रदेश में इस विभाग को एक पैसा तक नहीं दिया गया। यह राज्य सरकार की संवेदनशून्यता है या फिर सरकारी मशीनरी चला रहे बड़े अफसरशाहों की उदासीनता। सबसे दुर्भाग्यजनक तथ्य तो यह भी है कि विभाग के मुखिया प्रमुख सचिव प्रदीप शुक्ला तक को यह जानकारी नहीं है कि आयुर्वेद विभाग में दलितों को सुविधाएं मिल भी पा रही हैं या नहीं। डीएनए ने जब इस बाबत प्रमुख सचिव से पूछा तो उन्होंने कहा कि मेरी जानकारी में नहीं है। इस सम्बंध में विशेष सचिव व निदेशक श्रद्धा मिश्रा बेहतर बता सकती हैं। आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक आयुर्वेद विभाग को स्पेशल कम्पोनेंट प्लान के तहत वर्ष 2008-09, 2009-10 में एक पैसा नहीं मिला। इस दौरान सिर्फ मुजफ्फरनगर को 431 लाख, बरेली को 2221 लाख, गाजीपुर को 1293 लाख, लखनऊ 9534 लाख तथा बाराबंकी को 862 लाख समेत कुल 14341 लाख रुपए दिए गए। यूपी में आयुर्वेद केन्द्र के अनुदान पर ही आश्रित है। निदेशालय की जानकारी के अनुसार वर्ष 2008 में ड्रग एंड क्वालिटी कंट्रोल पर 15 लाख, ड्रग क्वालिटी कंट्रोल व ड्रग टेस्टिंग पर दो लाख, आयुर्वेदिक प्रयोगशालाओं के लिए 65 लाख 33 हजार रुपए, अलीगढ़ के तिब्बिया कॉलेज के दवाखाना के लिए 1,35,39,306, ग्रामीण क्षेत्रों में दवा आपूर्ति पर 5,88,50,000, आयुष इंस्टीट्यूट के विकास के लिए दो करोड़ व वाराणसी आयुर्वेद कॉलेज के लिए 1,70,00, 000 रुपए अनुदान के रूप में मिला है। इसके साथ ही प्रदेश में आयुर्वेदिक महाविालयों के बारे में निदेशालय ने बताया है कि लखनऊ के टुड़ियागंज में राजकीय आयुर्वेदिक महाविालय, झांसी में बुंदेलखंड राजकीय आयुर्वेदिक महाविालय, वाराणसी में सम्पूर्णानंद संस्कृत राजकीय आयुर्वेदिक महाविालय, मुजफ्फरनगर में स्वामी कल्याण देव राजकीय आयुर्वेदिक महाविालय, पीलीभीत में ललित हरि राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज, इलाहाबाद के हडिया में राजकीय महाविालय, बांदा में तथा बरेली में शाहू रामनरायन मुरली मनोहर आयुर्वेदिक कॉलेज है।
बसपानेत्री के राज में दलितों के साथ हो रहे अन्याय का उजागर मुरादाबाद निवासी सलीम बेग की आरटीआई द्वारा मांगी गई सूचना के जरिए हुआ है। बेग ने मुख्यमंत्री कार्यालय के जनसूचना अधिकारी से सूचना मांगी थी कि आयुर्वेद विभाग में दलितों के विकास के लिए पिछले तीन सालों में कितना धन स्वीकृत किया गया, कितना अवमुक्त और कितना शेष है? मगर मुख्यमंत्री कार्यालय के निर्देश पर आयुर्वेद निदेशालय ने जो सूचना मुहैया कराई है वह चौकाने वाली है। निदेशालय प्रभारी अधिकारी डॉ. आरके सिंह ने लिखित में बताया है कि दलितों के विकास के नाम से आयुर्वेद विभाग में कोई योजना संचालित नहीं है। लखनऊ स्थित आयुर्वेद महाविालय के रिटायर्ड प्रधानाचार्य डॉ. भगवान सिंह ने भी डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट को बताया कि दलितों के नाम पर कोई सुविधाएं आज तक विभाग को उपलब्ध नहीं हो पाईं। दलित एजेंडे वाली सरकार में एक और तथ्य चौंकाने वाला यह है कि आयुर्वेद विभाग में स्पेशल कम्पोनेंट प्लान के तहत सिवाय पांच जिलों को छोड़ कर इतने बड़े प्रदेश में इस विभाग को एक पैसा तक नहीं दिया गया। यह राज्य सरकार की संवेदनशून्यता है या फिर सरकारी मशीनरी चला रहे बड़े अफसरशाहों की उदासीनता। सबसे दुर्भाग्यजनक तथ्य तो यह भी है कि विभाग के मुखिया प्रमुख सचिव प्रदीप शुक्ला तक को यह जानकारी नहीं है कि आयुर्वेद विभाग में दलितों को सुविधाएं मिल भी पा रही हैं या नहीं। डीएनए ने जब इस बाबत प्रमुख सचिव से पूछा तो उन्होंने कहा कि मेरी जानकारी में नहीं है। इस सम्बंध में विशेष सचिव व निदेशक श्रद्धा मिश्रा बेहतर बता सकती हैं। आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक आयुर्वेद विभाग को स्पेशल कम्पोनेंट प्लान के तहत वर्ष 2008-09, 2009-10 में एक पैसा नहीं मिला। इस दौरान सिर्फ मुजफ्फरनगर को 431 लाख, बरेली को 2221 लाख, गाजीपुर को 1293 लाख, लखनऊ 9534 लाख तथा बाराबंकी को 862 लाख समेत कुल 14341 लाख रुपए दिए गए। यूपी में आयुर्वेद केन्द्र के अनुदान पर ही आश्रित है। निदेशालय की जानकारी के अनुसार वर्ष 2008 में ड्रग एंड क्वालिटी कंट्रोल पर 15 लाख, ड्रग क्वालिटी कंट्रोल व ड्रग टेस्टिंग पर दो लाख, आयुर्वेदिक प्रयोगशालाओं के लिए 65 लाख 33 हजार रुपए, अलीगढ़ के तिब्बिया कॉलेज के दवाखाना के लिए 1,35,39,306, ग्रामीण क्षेत्रों में दवा आपूर्ति पर 5,88,50,000, आयुष इंस्टीट्यूट के विकास के लिए दो करोड़ व वाराणसी आयुर्वेद कॉलेज के लिए 1,70,00, 000 रुपए अनुदान के रूप में मिला है। इसके साथ ही प्रदेश में आयुर्वेदिक महाविालयों के बारे में निदेशालय ने बताया है कि लखनऊ के टुड़ियागंज में राजकीय आयुर्वेदिक महाविालय, झांसी में बुंदेलखंड राजकीय आयुर्वेदिक महाविालय, वाराणसी में सम्पूर्णानंद संस्कृत राजकीय आयुर्वेदिक महाविालय, मुजफ्फरनगर में स्वामी कल्याण देव राजकीय आयुर्वेदिक महाविालय, पीलीभीत में ललित हरि राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज, इलाहाबाद के हडिया में राजकीय महाविालय, बांदा में तथा बरेली में शाहू रामनरायन मुरली मनोहर आयुर्वेदिक कॉलेज है।
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