Tuesday, February 15, 2011

यूपी में जनता से छिनेगा महापौर-अध्यक्ष चुनने का हक


देश को सबसे ज्यादा सांसद देने वाले राज्य उत्तर प्रदेश की विधानसभा में सोमवार को विचित्र स्थिति पैदा हो गई। सरकार ने सदन में महापौर व नगरपालिका अध्यक्ष का चुनाव जनता के बजाए सदस्यों के माध्यम से कराने का संशोधन विधेयक सदन में रखा। साथ ही निकायों में गठित विकास निधि का 25 फीसदी धन गरीबों और मलिन बस्तियों के विकास पर खर्च करने संबंधी विधेयक भी सदन में पेश किया। हैरानी की बात यह है कि सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही विधेयक पेश किए जाने की बात से अंजान रहे। 74वें संविधान संशोधन के बाद 1994 से प्रदेश में नगर निगमों के महापौरों व नगर पालिका परिषद व नगर पंचायतों के अध्यक्षों का चुनाव सीधे जनता से होता रहा है। चूंकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 आर (2)(बी) में राज्य विधानमंडल को नगरीय निकायों के प्रमुखों की निर्वाचन प्रक्रिया बदलने की शक्ति दी गई है। इसलिए राज्य सरकार ने 17 साल बाद उप्र नागर स्थानीय स्वायत्त शासन विधि (द्वितीय संशोधन) विधेयक 2011 पेश किया। विधेयक में महापौर का चुनाव जनता के बजाय पार्षदों से कराने के लिए सरकार ने उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम-1959 की धारा 11, 11ए व 17 तथा नगर पालिका परिषद व नगर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव सदस्य से कराने के लिए नगर पालिका अधिनियम-1916 की धारा 43 49 मे ंसंशोधन प्रस्तावित किया है। दोनों अधिनियमों की उक्त धाराओं में संशोधन होने पर महापौर व अध्यक्ष पद के प्रत्याशी का चुनाव जनता द्वारा न होकर पार्षदों या सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार गुप्त मतदान से होगा। भाजपा सदस्य कार्यस्थगन प्रस्ताव की सूचना के माध्यम से चाह रहे थे कि सरकार यह आश्वासन दे कि वह इस तरह का कोई विधेयक नहीं लाने जा रही है, जबकि इससे पहले संशोधन विधेयक सदन की मेज पर रखा जा चुका था, पर एजेंडे से यह स्पष्ट नहीं हो रहा था कि वास्तव में संशोधन है क्या। शायद यही वजह थी कि सरकार की ओर से बार बार यह कहा जा रहा था कि यह कल्पना पर आधारित प्रश्न है, इसलिए इसका संज्ञान ही नहीं लिया जाना चाहिए। जवाब से असंतुष्ट भाजपा व कांग्रेस ने इस मुद्दे पर वाकआउट कर दिया। विधानसभा अध्यक्ष सुखदेव राजभर ने भी प्रस्ताव को अग्राह्य कर दिया। कांग्रेस और भाजपा सदस्य सदन से बाहर जा ही रहे थे कि मीडिया से उन्हें जानकारी मिली कि इसी मामले का ही संशोधन प्रस्ताव तो कुछ क्षण पहले रखा गया है। सदस्य वापस लौटे और सरकार पर आरोप लगाया कि वह विपक्ष को अंधेरे में रख कर यह संशोधन कराने का काम कर रही है। यह भी कहा गया कि मंत्री तक को भी इसका ज्ञान नहीं था। भाजपा सदस्य विरोधस्वरूप सदन के आंगन में भी पहुंच गये। कुछ धरने पर भी बैठ गये। अध्यक्ष ने कहा, वह व्यवस्था दे चुके हैं, फिर भी इस प्रकरण को दिखवा लेंगे। भाजपा सदस्य संतुष्ट नही हुए और सदन से बाहर चले गये। उनका कहना था कि बसपा का शहरों में कोई जनाधार नहीं है इसलिए वहमहापौर और नगरपालिका अध्यक्ष के निर्वाचन की प्रक्रिया बदल रही है।

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