Thursday, February 3, 2011

आंतरिक सुरक्षा पर सियासत का साया


हिंदुस्तान के आला हुक्मरान एक साथ बैठे तो थे आम हिंदुस्तानी की जिंदगी को ज्यादा महफूज करने के इरादे से, लेकिन पूरे दिन भिड़ते रहे अपने राजनीतिक फायदों के लिए। नक्सली हिंसा कम होने के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के दावे पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे भिड़ गए। इसी तरह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महंगाई और भ्रष्टाचार को आंतरिक सुरक्षा से जोड़ा तो गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने भी उन पर अपनी भड़ास निकाल ली। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुए धमाके को ले कर भी केंद्र और राज्यों ने अपने-अपने अलग राग अलापे। आंतरिक सुरक्षा पर मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की शुरुआत में ही प्रधानमंत्री ने यह कहते हुए अपनी सरकार की पीठ थपथपाई कि बीते साल नक्सली हिंसा की वारदातों और इससे होने वाली सुरक्षा बलों की मौतों में कमी आई है। इस पर भड़के नरेंद्र मोदी ने बैठक से बाहर निकल कर कहा कि यह सरकार के लिए गर्व करने का विषय नहीं है। सरकार भले दावा कर रही हो, लेकिन हकीकत यह है कि नक्सली पहले के मुकाबले ज्यादा तादाद में सुरक्षाकर्मियों को मार रहे हैं। नीतीश कुमार ने सरकार को आड़े हाथ लेने के लिए उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया। नीतीश ने आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे उठाने के बजाय यहां भी महंगाई और भ्रष्टाचार पर सरकार को घेरने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि जब तक इन दोनों का समाधान नहीं होगा, आंतरिक सुरक्षा की स्थिति नहीं सुधरेगी। इन दोनों मुख्यमंत्रियों के बयानों पर चिदंबरम ने एक बार फिर मोर्चा लिया। उन्होंने महंगाई और भ्रष्टाचार को आंतरिक सुरक्षा से जोड़े जाने को बेहद बेतुका बताया। इसी तरह मोदी के बयान का भी उन्होंने यह कहते हुए मजाक उड़ाया कि गुजरात को नक्सलियों के खतरे का एहसास नहीं है। वाराणसी में हुए धमाकों को लेकर भी केंद्र और राज्यों के बीच अपनी ढपली अपना राग वाला मामला रहा। गृहमंत्री ने दावा किया कि इस धमाके को लेकर पक्की खुफिया सूचना राज्य को मुहैया करवा दी गई, लेकिन मुख्यमंत्री मायावती के लिखित भाषण में दावा किया गया कि केंद्र ने इस बारे में पक्की सूचना मुहैया नहीं करवाई थी।



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