Friday, February 18, 2011

’मन‘ की मजबूरी, ’मन‘का मलाल


जब प्रधानमंत्री देश के समक्ष स्वीकार कर रहे हैं कि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए तो ऐसे में सवाल यह है कि आखिरकार कार्रवाई करेगा कौन? प्रधानमंत्री ने अगले मंत्रिमंडल विस्तार का संकेत पिछले विस्तार के तुरंत बाद दे दिया था। आज फिर दोहराया कि बजट सत्र के बाद वह अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल करेंगे। एक बार फिर वही सवाल उठता है कि जो काम प्रधानमंत्री मनमाफिक अब तक नहीं कर पाये तो क्या आगे कर पाएंगे? आखिरकार उन्हें अब तक किसने रोके रखा था, जिससे वह अब मुक्त हो गये हैं
यूं तो छोटी-बड़ी मजबूरी कभी न कभी हर किसी के सामने आती रहती है। मजबूरी के चलते बहुतेरे लोग सही रास्ता छोड़ देते हैं तो बहुत कुछ गलत रास्ते और गलत कामों को अपना लेते हैं। गलत काम करने वालों के पास भी अपने पक्ष में सही, सटीक और पुख्ता तर्क होता है। सवाल यह है कि ऐसे लोगों के तर्कों को कानून या समाज कितना स्वीकारता या मान्यता देता है। अंतत: अच्छे-बुरे और गलत-सही कामों का मूल्यांकन कानून की कसौटी पर ही होता है। राजनीति से जुड़े लोग जनता की अदालत के फैसले को कानून की अदालत से ज्यादा महत्व देते हैं। कहने का मतलब यह कि सभी के पास अपने-अपने तर्क हैं। लोग किन तर्कों को स्वीकारते हैं। यहां बात प्रधानमंत्री की मजबूरी की हो रही है। डा. मनमोहन सिंह ने आज देश के चुनिंदा संपादकों के साथ बातचीत में प्रधानमंत्री के रूप में अपनी मजबूरी और मलाल की र्चचा की। अगर मजबूरी प्रधानमंत्री की हो, वह भी सार्वजनिक तो सभी को खटकता है। यूं तो प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को हंसते- मुस्कुराते शायद ही ज्यादा लोगों ने देखा हो। पर आज देश के सामने जिस तरह से मुस्कुराते हुए उन्होंने देश में व्याप्त तमाम तरह के भ्रष्टाचार और दूसरी अनियमितताओं के लिए थोड़ा बहुत खुद को जिम्मेदार माना, इससे बड़ा उदाहरण उनकी ईमानदारी का कुछ हो नहीं सकता। प्रधानमंत्री ने आज खुले तौर पर स्वीकार किया कि मैं यह नहीं कहता कि कभी कोई गलती नहीं की लेकिन मैंने उतनी बड़ी गलती नहीं की है जितना प्रचार किया जा रहा है। प्रधानमंत्री की ईमानदारी और उनकी साफ सुथरी छवि पर देश की जनता के साथ-साथ खासतौर पर विपक्षी दलों के नेताओं को भी तनिक संदेह नहीं है। विपक्षी दलों के छोटे-बड़े नेता समय-समय पर मनमोहन सिंह की सरकार को कोसते रहते हैं। तरह-तरह के आरोप भी लगाते हैं पर जैसे ही बात मनमोहन सिंह की आती है, वे भी उनकी ईमानदारी के कायल हो जाते हैं। अब तक प्रधानमंत्री को विपक्षी दलों के नेता कमजोरकहते थे, आज स्वयं प्रधानमंत्री ने ही माना कि उनके सामने तमाम तरह की मजबूरियां हैं, जिनके चलते वह मन
माफिक काम नहीं कर पा रहे। मनका मलाल तो उन्हें इतना है कि टीवी न्यूज चैनलों के प्रमुख संपादकों के साथ सवाल-जवाब के क्रम में प्रधानमंत्री ने यह तक स्वीकार लिया कि राजा को वह अपनी टीम में नहीं रखना चाहते थे। जो कुछ भी हुआ निश्चित रूप से सब गठबंधन की मजबूरी के चलते ही हुआ। गठबंधन की मजबूरी के चलते मलाल यहां तक था कि सब कुछ या कहें तो बहुत कुछ जानते हुए भी वे कुछ रोक नहीं सके, जो आज देश और दुनिया के सामने दिख रहा है। कॉमनवेल्थ खेलों से लेकर 2 जी स्पैक्ट्रम और इसरो के साथ-साथ तमाम छोटे बड़े घोटालों के सामने आने पर प्रधानमंत्री ने यह तो माना कि मीडिया के अतिउत्साह के चलते देश की छवि खराब हो रही है। ऐसा नहीं है कि भारत में केवल घोटाले ही चल रहे हैं। काम भी हुआ है, जो दिख रहा है। भ्रष्टाचार के सवाल रहे हों या फिर दूसरी अनियमितताओं को लेकर जिस तरह से उंगलियां मनमोहन सिंह पर उठ रहीं थीं, उनके बारे में उन्हें भी पता था कि उनकी ईमानदार छवि पर किसी को कोई संदेह नहीं है। 2जी स्पैक्ट्रम आवंटन की जांच को लेकर जेपीसी की मांग और संसद के बजट सत्र को सुचारु रूप से चलाने के खातिर प्रधानमंत्री ने कहा कि वे जेपीसी सहित किसी भी समिति के समक्ष जाने को तैयार हैं। प्रधानमंत्री जी यह क्यों नहीं समझते कि साथियों को तो छोड़िए विरोधी भी आप पर संदेह नहीं कर रहे। उनका निशाना जहां है, वह आप भी जानते हैं। यही वजह है कि जैसे-जैसे भ्रष्टाचार का कोई नया मामला सामने आता है, विरोधी खड़े हो जाते हैं पर आपके सामने नहीं। भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों पर कार्रवाई किए जाने के सवाल पर मनमोहन सिंह का यह कहना कि जो कोई व्यक्ति गलत कार्यों में लिप्त पाया जाएगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। जब प्रधानमंत्री देश के समक्ष स्वीकार कर रहे हैं कि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए तो ऐसे में सवाल यह है कि आखिरकार कार्रवाई करेगा कौन? प्रधानमंत्री ने अगले मंत्रिमंडल विस्तार का संकेत पिछले विस्तार के तुरंत बाद दे दिया था। आज फिर दोहराया कि बजट सत्र के बाद वह अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल करेंगे। एक बार फिर वही सवाल उठता है कि जो काम प्रधानमंत्री मनमाफिक अब तक नहीं कर पाये तो क्या आगे कर पाएंगे? आखिरकार उन्हें अब तक किसने रोके रखा था, जिससे वह अब मुक्त हो गये हैं। जिसके चलते उनका भरोसा दिखा है। प्रधानमंत्री ने बड़ी सहजता से मुस्कराते हुए स्वीकारा कि उनसे भी गलती हुई है पर उन्होंने यह भी जोर देकर कहा कि और लोग भी हैं जिनसे गलतियां हुई हैं। वह अकेले ही जिम्मेदार न तो हैं और न ही ऐसा समझा जाए। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल देश के सामने यह है कि दूसरे वे लोग कौन हैं, जिन्होंने गलतियां की हैं। निश्चित रूप से देश ऐसे लोगों के नाम और उनके द्वारा की गयीं गलतियों या गलत कार्यों के बारे में जानना चाहता है। प्रधानमंत्री को ऐसे में क्या उन लोगों के नाम और गलत कामों को सार्वजनिक नहीं कर देना चाहिए। शायद यही उनकी मजबूरी है, जिसका उन्हें मलाल भी है। हालांकि विपक्ष ने अपनी आलोचना में यह संकेत तो दे ही दिया है कि बजट सत्र में वह इस पर भी सवाल उठाने से नहीं चूकेगा। ए राजा को मंत्रिमंडल में शामिल करने के पीछे गठबंधन की राजनीति का दबाव सभी को पता था। बड़ी बात यह है कि प्रधानमंत्री ने ईमानदारी से स्वीकारा कि उनकी इच्छा के विपरीत गठबंधन धर्म के चलते राजा को स्वीकारना पड़ा। 2जी स्पैक्ट्रम को लेकर राजा ने क्या किया, कैसे किया, क्यों किया यह सब राजा को ही पता है। उन्होंने यह तक स्वीकारा कि गठबंधन धर्म के चलते सहयोगी दलों के मंत्रियों के कामकाज में हस्तक्षेप करना या पूछताछ करना भी उचित नहीं होता। उनका कहना, ‘मेरे सामने जो कोई भी विषय अब तक आया है, उस पर हमने वह किया जो मुझे करना चाहिए था।मंत्रिमंडल में शामिल मंत्रियों और उनके कामकाज में हस्तक्षेप नहीं कर पाने की मजबूरी प्रधानमंत्री ने देश के सामने स्वीकारी। भारत के इतिहास में शायद ही किसी प्रधानमंत्री ने इतनी ईमानदारी और सफाई से देश के सामने सब बातें स्वीकार की हों। माना जा रहा है कि भ्रष्टाचार और अनियमितताओं से जुड़े मामलों में मंत्रियों के डिस्क्रिनरीकोटा की भी भूमिका काफी हद तक है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी मंत्रियों के डिस्क्रिनरीकोटा को समाप्त किए जाने की वकालत करती रहीं हैं। सहारा न्यूज नेटवर्क के एडीटर एवं न्यूज डायरेक्टर उपेन्द्र राय ने प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह से पूछा किमंत्री समूहने फैसला किया है कि भ्रष्टाचार से लड़ाई के लिए जरूरी है कि मंत्रियों का डिस्क्रनरीकोटा खत्म किया जाए। किस तरह से यह कोटा खत्म करने की बात हुई है। प्रधानमंत्री ने कहा कि एक इश्यू है जो कांग्रेस प्रेसिडेंट ने अपने भाषण में और ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सेशन में इस बात की र्चचा की थी। उन तमाम विषयों पर बातचीत करने के लिए हमने एक ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स को यह काम सौंपा है। 


प्रणब मुखर्जी उसके चेयरमैन हैं और एक इश्यू उसमें यह भी है कि जो डिस्क्रनरी’ पावर मिनिस्टर्स की है, उनको खत्म किया जाए। अब इस बात पर विचार करना होगा कि क्या कुछ किया जा सकता है। अभी 60 दिन उनको दिए गए हैं रिपोर्ट देने के लिए। मैं उस रिपोर्ट का इंतजार का रहा हूं। मंत्रियों के डिस्क्रनरीकोटा खत्म किए जाने को लेकर एक नया विवाद जो अंदर था, वह धीरे-धीरे बाहर आएगा। खैर यह तो बाद की बात है रिपोर्ट आने में भी समय लगेगा और उस पर विचार करने में भी वक्त लगेगा। फैसला कब तक होगा और क्या होगा, यह तो दूर की बात है। सवाल आज का है, जहां भ्रष्टाचार के एक से बढ़ कर एक मामले सरकार के सामने आते जा रहे हैं। कहीं मंत्रियों की भूमिका तो कहीं नौकरशाहों की मिलीभगत की बात उजागर हो रही है। क्या सही और क्या गलत, किसकी कितनी गलती और किसको कितनी बड़ी सजा मिलती है, इसी पर अब सबकी निगाहें हैं। संपादकों के साथ आज प्रधानमंत्री की बातचीत को दूरदर्शन और सहारा न्यूज नेटवर्क के चैनलों के साथ-साथ दूसरे चैनल भी सीधा प्रसारण कर रहे थे। प्रधानमंत्री ने अपनी इस बातचीत में, जिसे देश और देश की जनता देख रही थी सिर्फ अपनी सफाई पेश की। उन्होंने न तो सरकार की और न ही कांग्रेस पार्टी के बारे में कोई बात रखी। उनके समक्ष मनमोहन सिंह की टीम में शामिल मंत्रियों के कामकाज और कुछ मंत्रियों पर उठ रहे सवालों के बारे में भी प्रश्न पूछे गए पर उन्होंने किसी के बारे में कोई सफाई पेश नहीं की। पिछले कुछ महीनों से अपनी ही सरकार पर लगे गंभीर आरोपों के बारे में भी उन्होंने कुछ नहीं कहा। मतलब साफ था कि आज प्रधानमंत्री ने सिर्फ और सिर्फ अपनी छवि और ईमानदारी का प्रमाण जनता के सामने रखा। खुले तौर पर काम न कर पाने के पीछे की मजबूरी और इसका मलाल उनके चेहरे पर तो दिख ही रहा था, उनके बोलचाल में भी यह संदेश स्पष्ट था। आज बहुत सारे लोगों के दिमाग में एक सवाल बार-बार उठ रहा था कि मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के सवाल को न सिर्फ टाल दिया बल्कि खुद के बने रहने पर जोर दिया। 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के बारे में सवाल को वे टाल गए और फिलहाल बचे कार्यकाल में इस्तीफा नहीं देने की बात कह कर उन्होंने कई सारी आशंकाओं और सवालों को खारिज कर दिया। एक घंटे से ज्यादा समय की बातचीत में सबसे खास बात यह रही कि मनमोहन सिंह ने एक बार भी कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के नाम का किसी भी रूप में जिक्र नहीं किया। न तो उन्होंने भविष्य में प्रधानमंत्री के रूप में और न ही कांग्रेस और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नाम का किसी रूप में जिक्र हुआ। केरल में कांग्रेस की अच्छी स्थिति के चलते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की अगुआई में सरकार बनने की बात बड़े दमखम से कही। साथ ही असम में कांग्रेस सरकार के कामकाज की प्रशंसा की। गठबंधन की राजनीति के दौर में गठबंधन धर्म की मजबूरियां बताने वाले प्रधानमंत्री ने बड़ी दृढ़ता से कहा कि मुझे काम करना है, ऐसे में इस्तीफा देने या पद छोड़ने का कोई सवाल नहीं है। मलाल उन्हें जितना भी हो पर जिस भरोसे के साथ उन्होंने आज अपनी सफाई देने के साथ-साथ अपनी स्थिति देश के सामने रखी और साथ ही बजट सत्र के बाद अपनी टीम में व्यापक फेरबदल तथा साफ-सफाई का संकेत दिया, उससे उम्मीद जगी है कि आगे काम करने में प्रधानमंत्री को किसी मजबूरी का शायद सामना न करना पड़े। अगर ऐसा हुआ तो उन्हें कम से कम मलाल तो नहीं होगा।


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