सीवीसी पीजे थामस के चयन की फाइलें सरकार की सीरत पर हर रोज नए सवालिया निशान लगा रही हैं। मामले में उजागर हुए ताजा तथ्य बताते हैं कि पीएम की अगुवाई वाली चयन समिति में न केवल नेता विपक्ष की राय को दरकिनार किया गया, बल्कि सरकार ने उनके तर्को को रिकार्ड का हिस्सा बनाना भी मुनासिब नहीं समझा। सीवीसी की नियुक्ति से जुड़ी सरकारी फाइलें कास्मेटिक सर्जरी का नमूना पेश करती हैं जिसमें थामस के अतीत के दागों की कोई झलक ही नहीं दिखती है। वहीं नियुक्ति प्रक्रिया से जुड़े अधिकारी यहां तक बताते हैं कि सीवीसी चुनने के लिए हुई अहम बैठक से पहले ही सरकार ने विपक्ष की राय को दरकिनार कर बहुमत से फैसले का विकल्प भी खंगाला था। दैनिक जागरण के पास मौजूद दस्तावेज के मुताबिक सीवीसी की नियुक्ति को लेकर 3 सितंबर 2010 को प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और नेता प्रतिपक्ष की अहम बैठक के ब्योरे को महज दो वाक्यों में समेट फाइल बंद कर दी गई। दस्तावेज में फैसले को लेकर सुषमा स्वराज को असहमत तो दिखाया गया है, लेकिन थामस के दागी रिकार्ड को लेकर बैठक में हुई पूरी बहस और उनके तर्को को सिरे से गायब कर दिया गया है। लिहाजा नियुक्ति की फाइल थामस के आरोपपत्र ही नहीं, बल्कि इस मामले पर विवाद को लेकर भी पूरी तरह मौन हैं। इस बारे में पूछे जाने पर चिदंबरम कहते हैं, ऐसी बैठकों के सिर्फ फैसले दर्ज किए जाते हैं, उसके ब्योरे नहीं। वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि इस फैसले से पहले इस मामले पर मंत्रालय के आला अधिकारियों ने यही सलाह दी थी कि इसे बहुमत की बजाए आम सहमति का चेहरा देना ही मुनासिब होगा।
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