अलगाववादियों और मुख्यधारा के खेमों में बंटे जम्मू कश्मीर के सियासी मंच पर जल्द ही दो नए राजनीतिक दलों का उदय होने वाला है। खासबात यह है कि दोनों ही दलों की कमान बरसों पहले हिंसा का खूनी खेल खेलने वाले पूर्व आतंकियों के हाथों में है। एक दल हिजबुल के पूर्व आप्रेशनल कमांडर इमरान राही और जुबैर-उल-इस्लाम तैयार करने में लगे हैं, जबकि दूसरा संगठन पूर्व इख्वान कमांडर लियाकत अली खान बना रहे हैं। कश्मीर को भारत का हिस्सा बताने के साथ ही उनका दावा है कि वे राज्य में तीसरे फं्रट की भूमिका निभाने के साथ ही जनता को हुर्रियत, नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी समेत का प्रभावशाली विकल्प देंगे। उल्लेखनीय है कि राही और लियाकत पहले भी सियासी संगठन बना चुके हैं,लेकिन मुख्यधारा की सियासत में किसी तरह की जमीन तैयार करने में नाकाम रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, पूर्व आतंकी कमांडरों की पार्टी खड़ा करने में कई राजनीतिक संगठन शामिल हैं। इनमें वह दल प्रमुख हैं जो अलगाववादियों व आतंकियों के प्रति उदार रवैया रखते हैं। इनमें अवामी नेशनल कांफ्रेंस का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। अवामी नेशनल कांफ्रेंस के संस्थापक जीएम शाह राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे हैं और वह अलगाववादियों के करीब माने जाते रहे हैं। हालांकि इन दोनों संगठनों के गठन की अभी तैयारी ही चल रही है, लेकिन वादी में चर्चा है कि इनका गठन केंद्र सरकार और सेना आतंकियों व हुर्रियत के सफाए के लिए करा रही है। इमरान राही को जहां केंद्र समर्थन दे रही है, वहीं लियाकत अली को सेना। लियाकत अली का कहना है कि घाटी के कई मुख्यधारा के सियासी नेताओं के साथ-साथ हुर्रियत का कैडर भी हमारे साथ संपर्क में है। सही समय आने पर हम इन सभी का खुलासा करेंगे। उन्होंने कहा, जो लोग कह रहे हैं कि हमारे संगठनों को केंद्र सरकार या सेना द्वारा तैयार किया जा रहा है, वह हुर्रियत और आतंकियों का प्रापोगंडा कर रहे हैं, ताकि आम लोग हमसे दूर रहें, लेकिन असलियत सभी को पता है। भारतीय सेना कोई पाक फौज नहीं है जो यहां सियासी संगठनों को चलाए या बनाए। यह हिंदुस्तान है और कश्मीर हिंदुस्तान का हिस्सा। वहीं, इमरान राही ने भी कयासों को बेबुनियाद बताते हुए कहा,हमारा केंद्र या सेना से कोई तालमेल नहीं है। कश्मीर में अमन बहाली और कश्मीर समस्या के सही समाधान के प्रति गंभीर लोग हमारा पूरा समर्थन कर रहे हैं। यह लोग हमसे जुड़ रहे हैं। मेरा पहले भी सियासी संगठन रहा है। जुबैर भी सियासत में रहे हैं। अवामी नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष मुजफ्फर शाह ने भी इस मामले में सफाई देते हुए कहा, हम किसी एजेंसी के पिट्ठू नहीं हैं।जो लोग हम पर सेना या केंद्र सरकार के साथ मिलीभगत का आरोप लगा रहे हैं, वह खुद ही इनके या फिर किसी और संगठन के एजेंट हैं।इमरान राही हिजबुल मुजाहिद्दीन के उन चार कमांडरों में शामिल है जिन्होंने आठ फरवरी 1996 को केंद्र सरकार से कश्मीर में अमन बहाली के लिए पहली बार वार्ता प्रक्रिया शुरू की थी। इसी बातचीत के चलते सूबे में लगभग 16 साल बाद राष्ट्रपति शासन समाप्त हुआ था और एक निर्वाचित सरकार ने सत्ता संभाली थी।
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