सीवीसी पर इतना शोर, लेकिन हवाला मामले में चुप्पी क्यों ?
जब से सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्रीय सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई शुरू की है, तब से यह पद लगातार सुर्खियों में बना हुआ है। मामला काफी पेचीदा है। केंद्रीय सतर्कता आयुक्त पीजे थॉमस का कहना है कि केरल की दो सरकारों ने आपसी राजनीति के कारण पाम ऑयल घोटाले की जांच प्रक्रिया को न तो आगे चलने दिया और न ही खत्म किया। इस तरह दो दलों की राजनीति का वह नाहक शिकार बने। वह खुद को इस कांड में दोषी नहीं मानते। केरल कैडर के आईएएस अधिकारियों के संगठन ने भी थॉमस को बेदाग बताते हुए उनके प्रति खुला समर्थन व्यक्त किया है।
थॉमस का तर्क यह भी है कि दोनों ही दलों की सरकारों ने उनकी प्रगति में रुकावट नहीं डाली और उन्हें राज्य के मुख्य सचिव के पद तक पहुंचने दिया। यदि उनकी छवि खराब थी, तो इन सरकारों ने ऐसा क्यों किया? इसके बाद उन्हें केंद्र सरकार में सचिव बनने से भी किसी ने नहीं रोका। तत्कालीन केंद्रीय सतर्कता आयुक्त प्रत्यूष सिन्हा ने भी थॉमस की फाइल बिना किसी आपत्ति के केंद्र सरकार को भेज दी थी। ऐसे में, कानूनी प्रक्रिया की देरी के लिए वह अपना जीवन बरबाद नहीं करना चाहते। इसलिए वह सीवीसी का पद छोड़ने को भी तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि उन्होंने कोई आवेदन कर और साक्षात्कार का सामना कर किसी चयन प्रक्रिया के तहत इस पद की प्राप्ति के लिए कोई प्रयास नहीं किया। केंद्र सरकार ने खुद उन्हें इस पद के योग्य समझकर सीवीसी की कुरसी पर बिठाया है, तो वह इस्तीफा क्यों दें? केरल के आईएएस अधिकारियों का कहना है कि पाम ऑयल घोटाले में दो दलों की लड़ाई ने कई अधिकारियों का जीवन तबाह कर दिया, जिससे उनके कैडर में भारी निराशा है।
यह भी रोचक तथ्य है कि पीजे थॉमस की नियुक्ति को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देनेवाले पूर्व अधिकारियों के दल के प्रमुख और देश के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंग्दोह ने एक सार्वजनिक वक्तव्य के जरिये पीजे थॉमस के ईमानदार होने की पुष्टि की है। फिर भी वह अपनी जनहित याचिका को सही ठहराते हुए कहते हैं कि चूंकि सीवीसी की नियुक्ति में सर्वोच्च न्यायालय के ‘विनीत नारायण केस’ के निर्देशों की अवहेलना करनेता प्रतिपक्ष की सहमति नहीं ली गई, इसलिए यह नियुक्ति वैध नहीं है। लिंग्दोह का यह भी कहना है कि पाम ऑयल घोटाले में आरोपित होने के कारण थॉमस को यह पद खुद ही स्वीकार नहीं करना चाहिए था।
उल्लेखनीय है कि सीवीसी की नियुक्ति पर इतना बवंडर मचाने वाला मीडिया पिछले साल भर से सोया पड़ा था। नवंबर, 2009 में सीवीसी के तीन में से दो सदस्य सुधीर कुमार और रंजना कुमार अपना कार्यकाल पूरा कर चुके थे। नियमानुसार इन दोनों पुलिस और बैंक अधिकारियों की जगह नए अधिकारियों की नियुक्ति इनकाकार्यकाल पूरा होने से पहले ही हो जानी चाहिए थी। पर सरकार ने एक वर्ष तक इसकी कोई परवाह नहीं की। मजबूरन अकेले प्रत्यूष सिन्हा के सहारे सीवीसी चलता रहा। एक अगस्त, 2010 को अपने साप्ताहिक कॉलम में जब मैंने यह सवाल उठाया (सतर्कता आयोग की दुर्गति क्यों?) तब कहीं जाकर तत्कालीन गृह राज्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण की नींद टूटी और उन्होंने सीवीसी के रिक्त पदों को भरने की कवायद शुरू की। इतनी महत्वपूर्ण संस्था के प्रति सरकार की इस कोताही पर याचिकाकर्ता साल भर तक क्यों सोए रहे?
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि थॉमस के खिलाफ शोर मचाने वाले उस वक्त कहां थे, जब संसदीय समिति ने केंद्रीय सतर्कता आयोग के पुनर्गठन का विधेयक बनाते समय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की अवहेलना करते हुए उसे एक पंगु संस्था बनाकर छोड़ दिया था? चिंता की बात तो यह भी है कि दिसंबर, 1997 में हवाला मामले में निर्णय देते समय सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेएस वर्मा ने इस जनहित याचिका की प्रमुख प्रार्थनाओं की अनदेखी कर एक अलग ही फैसला दे डाला, जिसे बिना समझे ही मीडिया ने ‘ऐतिहासिक फैसला’ माना। इस तरह राजनीतिक क्षेत्रों में व्याप्त भारी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ी जा रही आजादी के बाद की इस सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण लड़ाई को कुचल दिया गया।
साफ जाहिर है कि संसद हो या मीडिया, सभी ने हवाला कांड पर एक खतरनाक चुप्पी साधी थी और आज भी उसी मानसिकता से ‘जैन हवाला घोटाले’ की चर्चा तक करने से हिचकते हैं। इसलिए थॉमस की नियुक्ति पर विवाद कोई महत्वपूर्ण सवाल नहीं है। अगर वास्तव में याचिकाकर्ता भ्रष्टाचार के मुद्दे से कड़ाई से निपटना चाहते हैं, तो उन्हें जैन हवाला कांड यानी ‘विनीत नारायण केस’ को फिर से खोलकर जांच की मांग करनी चाहिए। पर ऐसा वे नहीं करेंगे। क्योंकि ये वही लोग हैं, जिन्होंने हवाला संघर्ष के दौरान भाजपा के एक वरिष्ठ नेता को बचाने कापुरजोर प्रयास किया।
जाहिर है, नैतिकता के दो मानदंड कदापि नहीं हो सकते। जबकि हवाला केस में भी कुछ लोगों के अनैतिक आचरण पर मैंने तभी कई सवाल खड़े किये थे, जिनका जवाब आज तक नहीं दिए गए और सीवीसी के गठन का अधकचरा फैसला देकर हवाला केस मामले को फिर रफा-दफा कर दिया गया। इस सारे इतिहास को देखते हुए यह जरूरी है कि पीजे थॉमस के मामले में सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय मेरी मूल याचिका के तथ्यों की ओर भी ध्यान दे। ऐसा किए बिना भ्रष्टाचार के खिलाफ उसका कोई भी कदम कारगर सिद्ध नहीं होगा। इसलिए मैंने भी सर्वोच्च न्यायालय में फिर से सक्रिय होने का मन बनाया है.
जानकारी के लिए धन्यवाद|
ReplyDeleteआप को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ|
इस सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteभारतीय ब्लॉग लेखक मंच"की तरफ से आप को तथा आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामना. यहाँ भी आयें, यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो फालोवर अवश्य बने .साथ ही अपने सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ
ReplyDeleteहमारा पता है ...........www.upkhabar.in