विपक्षी दलों के लोकतांत्रिक दलीलों को ठेंगे पर रखकर सत्ता सुख का निरंकुश भोग लगाने वाली संप्रग सरकार के लिए आने वाला बजट सत्र बेहद चुनौती भरा साबित होने वाला है। विपक्षी दलों के आक्रामक तेवर को देखते हुए आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि संसद का बजट सत्र हंगामेदार होने की पूरी संभावना रहेगी। सरकार को भी डर सताने लगा है कि कहीं विपक्ष ने एक बार फिर जेपीसी गठन की मांग को अपनी नाक की सवाल बनाया तो उसकी फजीहत तय है। हालांकि सरकार की कोशिश यह जरूर रहेगी कि वह बजट सत्र से पहले अपने शासन के काले कारनामे को इतना जरूर धो-मांज ले कि उस पर पड़े भ्रष्टाचार के गहरे दाग उसके चेहरे को और अधिक विकृत न करने पाए। सरकार ने इस दिशा में कसरत करनी भी शुरू कर दी है। 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले के महाराजा ए राजा और उनके शागिर्दो की गिरफ्तारी शायद इसी कोशिश का नतीजा है, लेकिन सरकार को मानकर चलना चाहिए की ए राजा की गिरफ्तारी मात्र से विपक्ष संतुष्ट होने वाला नहीं है। मुख्य विपक्षी दल भाजपा द्वारा कहा जा चुका है कि ए राजा कि गिरफ्तारी सरकार की सद्इच्छा का परिणाम नहीं है, बल्कि अदालत की लताड़ का नतीजा है। ए राजा की गिरफ्तारी को भाजपा जेपीसी गठन की मांग के औचित्य को और प्रमाणित करने करने वाली बता रही है। विपक्षी दलों के दबाव के बावजूद सरकार यह कोशिश जरूर करेगी कि संसद की कार्यवाही बाधित न होने पाए और बजट आराम से पास हो जाए, लेकिन बजट सत्र में सरकार के चाहने और न चाहने पर बहुत कुछ निर्भर रहने वाला नहीं है। इसलिए कि सरकार के हाथ में विपक्षी दलों में फूट डालकर अपना मकसद साधने एवं खेलने के लिए पत्ते बिल्कुल ही नहीं बचे हैं। बजट सत्र के दौरान हर हाल में सरकार को अपनी खाल मोटी रखनी ही होगी। मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी जिस अंदाज में महंगाई, भ्रष्टाचार और काले धन की वापसी को मुद्दा बनाकर सरकार की बखिया उधेड़ रही है, उससे तो यही प्रतीत हो रहा है कि वह संसद में भी सरकार की बांह मरोड़ने से चूकने वाली नहीं है। भाजपा ने इस बात पर दबाव बनाना अभी से शुरू कर दिया है कि अगर सरकार 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच-पड़ताल के लिए जेपीसी का गठन नहीं करती है, आरोपों से घिरे केंद्रीय सतर्कता आयुक्त को पद से नहीं हटाती है और विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने की कोई ठोस पहल करती नहीं दिखती है तो वह इस मुद्दे को संसद का विषयवस्तु बनाने से पीछे नहीं हटेगी। न केवल भारतीय जनता पार्टी, बल्कि अन्य विपक्षी दल भी वैचारिक मतभेदों के बावजूद भारतीय जनता पार्टी के सुर में सुर मिला सकते हैं। सीपीएम भी जेपीसी गठन की मांग को दोहराने लगी है। संभावना तो इस बात की भी प्रबल दिख रही है कि सरकार के कुछ सहयोगी दल, जिनके राज्यों में निकट भविष्य में विधानसभा का चुनाव होने जा रहा है, वे भी अपनी साख को जनता में बचाए रखने के लिए सरकार को भले ही आइना न दिखाएं, लेकिन उसके साथ मुस्तैदी से खड़े भी नहीं दिखेंगे। पिछले दिनों रेलमंत्री ममता बनर्जी द्वारा अपने गृहराज्य पश्चिम बंगाल में महंगाई के सवाल पर सरकार के खिलाफ रैली और आंदोलन का नेतृत्व किया जा चुका है। सच कहा जाए तो अपनी दुर्दशा के लिए खुद सरकार ही जिम्मेदार है। एक लोकतांत्रिक देश में निर्वाचित सरकार द्वारा अव्यावहारिक और अडि़यल रुख अख्तियार करना किसी भी प्रकार से न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता है। भ्रश्टाचार के घेरे से बाहर निकलने की जिस तरकीब को सरकार अपना हथियार बनाती दिख रही है, उससे उसकी स्थिति और अधिक हास्यास्पद बन गई है। सीएजी की रिपोर्ट को हवा-हवाई बताने वाले वर्तमान दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल के उस दावे को भी करारा झटका लगा है, जो यह कहते फिर रहे थे कि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में राजस्व का तनिक भी नुकसान नहीं हुआ है। सरकार की तरफ से ही गठित न्यायाधीश शिवराज पाटिल समिति द्वारा पेश रिपोर्ट में 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा और संचार मंत्रालय के आधा दर्जन से ज्यादा अधिकारियों को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया गया है। ऐसे में क्या नहीं लगता है कि सरकार के काबिल मंत्री कपिल सिब्बल सीएजी रिपोर्ट को बकवास बताकर देश की जनता को अब तक गुमराह कर रहे थे? कपिल सिब्बल ही क्यों, अन्य काबिल रणनीतिकार भी ए राजा को बचाने के लिए सौ-सौ नौटंकिया कर रहे थे। ए राजा की सीबीआइ द्वारा की गई गिरफ्तारी से साफ हो गया है कि उन्हें बचाने की जहमत के पीछे की असल मंशा भ्रष्टाचार पर पर्देदारी ही थी।
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