Monday, February 14, 2011

राष्ट्रीय हितों पर प्रहार


संकीर्ण स्वार्थो की राजनीति किस तरह राष्ट्रीय हितों की अनदेखी करती है, इसका ताजा प्रमाण है जम्मू-कश्मीर की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से अक्साई चिन और कराकोरम को चीन के भूभाग के रूप में दिखाना। पीडीपी की यह हरकत इसलिए और अधिक आपत्तिजनक है, क्योंकि इसे दृष्टिकोण के रूप में प्रस्तुत किया गया। इस दृष्टिकोण के पीछे पीडीपी का चाहे जो उद्देश्य हो, इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि इससे सर्वाधिक लाभ चीन को होगा। ध्यान रहे कि सीमा विवाद को सुलझाने के मामले में उसने पहले से ही असहयोगपूर्ण रवैया अपना रखा है। इस संदर्भ में इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि पिछले कुछ समय से चीन कश्मीर को ही विवादित हिस्सा मानने की नीति पर चल रहा है। वह एक ओर जहां पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में विकास के नाम पर अपनी गतिविधियां बढ़ाता चला जा रहा है वहीं दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को एक विशेष प्रकार का वीजा देने की जिद पकड़े हुए है। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि विभिन्न राजनीतिक दलों ने पीडीपी के रवैये पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। यह ठीक है कि राजनीतिक दलों के ऐसे राष्ट्रहित विरोधी आचरण का सामना राजनीतिक तौर-तरीकों से ही किया जाना चाहिए, लेकिन किसी को यह भी देखने-समझने की जरूरत है कि क्या किसी राजनीतिक दल को अपनी राजनीति चमकाने के लिए राष्ट्रीय हितों को क्षति पहुंचाने की अनुमति प्राप्त है? पीडीपी ने केवल अक्साई चिन और कराकोरम को चीन का भूभाग दर्शा कर ही अपनी संकीर्ण राजनीति का परिचय नहीं दिया, बल्कि यह कहकर भी देश और विशेष रूप से कश्मीर घाटी की जनता को बरगलाने की कोशिश की है कि मिF में जिन हालात में सत्ता परिवर्तन हुआ वैसी ही स्थिति जम्मू-कश्मीर में भी है। माना कि मिF की घटनाओं का किसी न किसी रूप में दुनिया भर में असर हुआ है, लेकिन क्या पीडीपी नेताओं और विशेष रूप से महबूबा मुफ्ती को जम्मू-कश्मीर और मिF में कोई भेद नजर नहीं आता? क्या वह यह नहीं जानती थीं कि मिF में तीन दशकों से तानाशाही सत्ता थी और उनके अपने राज्य में लोकतांत्रिक व्यवस्था है? यह वही लोकतांत्रिक व्यवस्था है जिसमें हिस्सा लेकर एक समय उनके दल ने जम्मू-कश्मीर की सत्ता हासिल की थी। विडंबना यह है कि मिF और भारत की तुलना कुछ और नेता भी कर रहे हैं। यह सर्वथा अनुचित भी है और आपत्तिजनक भी। लोकतंत्र में सत्ता परिवर्तन के अपने तौर-तरीके होते हैं और जो लोग भी उनकी अनदेखी कर रहे हैं वे किसी न किसी रूप में अपनी अलोकतांत्रिक मानसिकता ही प्रदर्शित कर रहे हैं। यह ठीक नहीं कि जिस राजनीति पर देश को दिशा देने और उसे संचालित करने दायित्व है वही लोगों को बरगलाने और भड़काने की राह पर चल निकली है। चूंकि विभाजनकारी राजनीति बढ़ती चली जा रही है इसलिए इस पर विचार किया ही जाना चाहिए कि राष्ट्रीय हितों को क्षति पहुंचाने अथवा अलोकतांत्रिक तौर-तरीके अपनाने वाले राजनीतिक दलों पर अंकुश कैसे लगाया जाए? दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि हमारे नीति-नियंता राजनीतिक दलों की इस प्रवृत्ति की अनदेखी ही कर रहे हैं।


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