Thursday, February 3, 2011

उलमा के बसपा में शामिल होने पर सपा में बेचैनी


बसपा के नए पैतरे से सपा में बेचैनी है। बसपा ने सपा के परंपरागत मुस्लिम वोट बैंक पर निगाह लगा दी है। पिछले दिनों सपा समर्थक लगभग 130 उलमा को बसपा ने जिस तरह से पार्टी में शामिल किया, उससे सपा की मुसलमानों के बीच अपनी पैठ मजबूत करने की कोशिश को झटका लगा है। बसपा के इस पैतरे से घबराई सपा की कोशिश अब सरकार को मुस्लिम विरोधी साबित करने के लिए अभियान छेड़ने की है। इसके लिए उसने पार्टी के मुस्लिम नेताओं को हमला बोलने का जिम्मा सौंपा है। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर मुस्लिम मतों को सहेजने के लिए सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने मुसलमानों से माफी मांगने और फायर ब्रांड नेता मोहम्मद आजम खां की वापसी कराने जैसे कदम उठाए हैं। अयोध्या मामले में हाईकोर्ट के फैसले पर यादव की टिप्पणी को भी इसी नजरिए से देखा जाता है। मुसलमानों के बीच सपा अभी पूरी तरह से अपना अभियान शुरू भी नहीं कर पाई थी कि बसपा ने उसे झटका दे दिया। बसपा नेता और कैबिनेट मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने रविवार को मुस्लिम कन्वेंशन उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष मौलाना इकबाल कादरी सहित प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के 130 उलमा को पार्टी की सदस्यता ग्रहण करा दी। इनमें ज्यादातर सपा से जुड़े थे और अक्सर ही उसके कार्यक्रमों में हिस्सा लेते रहते थे। इस घटना से बेचैन सपा ने विधान परिषद में नेता विरोधी दल अहमद हसन को आगे किया। मंगलवार को उन्होंने बसपा पर निशाना साधते हुए कहा कि वह गलतबयानी कर मुसलमानों को गुमराह करने का काम कर रही है। बसपा सरकार ने अपने साढ़े तीन साल के कार्यकाल में मुसलमानों के हितों में कोई काम नहीं किया। हसन ने कहा कि मुसलमान यह बात भूले नहीं हैं कि बसपा ने तीन बार भाजपा से मिल कर सरकार बनाई। गुजरात में नरेंद्र मोदी के पक्ष में बसपा प्रमुख मायावती ने चुनाव प्रचार किया। उर्दू अनुवादकों को नौकरी से बाहर कर दिया और उर्दू अध्यापकों की नियुक्ति पर रोक लगा दी। उन्होंने कहा कि सपा मुसलमानों के बीच यह बात ले जाएगी कि बसपा किस-किस तरह से मुसलमानों के हितों के खिलाफ काम करती रही है।


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