Sunday, March 6, 2011

यूपी में दिखेगा द्रमुक से तल्खी का असर


तमिलनाडु विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस-द्रमुक रिश्तों की तल्खी से परेशान हुई संप्रग सरकार को समर्थन की कमी शायद ही महसूस हो। हालांकि इसकी कीमत कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में चुकानी पड़ सकती है, जहां राहुल गांधी लंबे समय से पार्टी की हालत ठीक करने में लगे हुए हैं। द्रमुक के नए पैंतरे से थोड़ी परेशान कांग्रेस को दरअसल केंद्र में बसपा और सपा के साथ राजद का बाहर से समर्थन पहले ही प्राप्त है। इस बात के भी पूरे संकेत हैं कि जरूरत पड़ने पर इनमें से कुछ दल सक्रिय समर्थन के लिए तैयार होने में ज्यादा वक्त नहीं लगाएंगे। लखनऊ में रविवार को मुलायम सिंह ने सीधे तौर पर कहा भी कि केंद्र की सरकार को कोई खतरा नहीं है। यह भी माना कि तीन दिन पहले उनकी प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से मुलाकात हुई थी और अगले एक दो दिनों में वह फिर से प्रधानमंत्री से मिलेंगे। सपा का पुराना अनुभव तो अच्छा नहीं है लेकिन जरूरत हुई तो फिर से समर्थन में ज्यादा गुरेज भी शायद ही हो। बस इंतजार है सही अवसर का। सपा ने अपनी रणनीति का एलान भले न किया हो लेकिन पार्टी अध्यक्ष सरकार की उम्र को लेकर भरोसा जता दिया। वहीं सपा महासचिव मोहन सिंह ने भी दिल्ली में संकेत दिए कि जरूरत पड़ी तो घायल और आक्रांत सपा फिर संप्रग सरकार की मदद को आगे आ सकती है। दिल्ली में मोहन सिंह ने यूं तो पिछली सरकार के अनुभव पर दुख जताया कहा और एक बार समर्थन देकर उनकी पार्टी दंड भोग चुकी है और घायल तथा आक्रांत है, लेकिन साथ ही जोड़ा कि यदि फिर से मौका आया तो हर स्तर पर विचार के बाद कोई फैसला लिया जाएगा। उन्होंने स्पष्ट रूप से सरकार को भीतर से समर्थन की हामी तो नहीं भरी, लेकिन इसे नकारा भी नहीं। दरअसल सपा अपनी ओर से ऐसा कोई संकेत देना नहीं चाहती है कि वह कांग्रेस के साथ के लिए लालायित है। यह और बात है कि यूपी में उसे एक अदद साथी की तलाश है। केंद्र सरकार को समर्थन के बाबत पूछे जाने पर मोहन सिंह ने कहा कि सपा जल्दी-जल्दी चुनाव नहीं चाहती। लिहाजा मुद्दा आधारित समर्थन दे रही है। संप्रग-एक और संप्रग-दो में अंतर बताते हुए उन्होंने कहा कि संप्रग-दो उन लोगो का गिरोह है जो कुर्सी के लिए छीना-झपटी कर रहे हैं। ऐसे में इसकी संभावना कम है कि सरकार गिरे|

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