मुफ्त सौगात देने की परंपरा तमिलनाडु में ही शुरू हुई
दक्षिण भारत के तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। अन्नाद्रमुक और द्रमुक आमने-सामने हैं। दोनों दलों का मूल वोट बैंक एक ही है-द्रविड़ वोट। दोनों के ही हिस्से में 25 से 30 फीसदी वोट आते हैं। ऐसे में जीतता वही है, जो गैर द्रविड़ वोटों पर कब्जा कर पाता है। लिहाजा वहां गठबंधन की राजनीति काम आती है। वहां भी छोटे दलों के पुख्ता वोट बैंक हैं और उस बड़े दल के साथ जाने या न जाने की उनकी भी मजबूरी होती है।
तमिलनाडु देश का पहला राज्य है, जहां फिल्मी सितारे सत्ता पर काबिज हुए, और फिर तो यह सिलसिला ही बन गया। इसी तरह तमिलनाडु देश का पहला राज्य है, जहां सबसे पहले चुनावी घोषणापत्रों में मुफ्त सौगातें देने का सिलसिला शुरू हुआ था। वहां सबसे पहले स्कूली बच्चों के लिए मिड डे मील योजना शुरू हुई। दो-तीन रुपये किलो चावल देने की परिपाटी भी वहीं से शुरू हुई। अनाज के बाद बारी आई टीवी की। द्रमुक ने तो पिछला विधानसभा चुनाव बीपीएल समूह को रंगीन टीवी देकर ही जीत लिया था। इस बार के चुनाव में भी कोई लैपटॉप, कोई मिक्सर-ग्राइंडर, कोई पंखा, तो कोई वाशिंग मशीन, यहां तक कि गाय और भेड़ देने की भी घोषणा कर रहा है!
तमिलनाडु में बीती सदी के पचास के दशक में सवर्ण जातियों के खिलाफ आंदोलन चला था। अन्नादुरई, करुणानिधि और एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) उस आंदोलन के अगुवा थे। अन्नादुरई ने तमिल फिल्मों का इस्तेमाल आंदोलन के प्रचार-प्रसार के लिए किया। वह फिल्मों के लिए कहानियां लिखा करते थे। करुणानिधि फिल्मों के पटकथा लेखक हुआ करते थे। इसी तरह एमजीआर हीरो थे और बाद में तमिल फिल्मों की नायिका जयललिता उनसे जुड़ीं।
करुणानिधि ने सबसे पहले फिल्मों में संवाद की भाषा बदली। पहले सवर्ण जाति की भाषा में ही संवाद होते थे, जिसमें भारी-भरकम शब्दों का इस्तेमाल होता था। करुणानिधि ने अन्नादुरई के कहने पर उस भाषा में संवाद लिखने शुरू किए, जिसे तमिलनाडु की दलित जनता बोलती थी। इस तरह पेरियार आंदोलन सीधे-सीधे दलितों से जुड़ा। अन्नादुरई ने ऐसी कहानियां लिखीं, जिनमें दलितों का संघर्ष और फिर उनकी जीत का जश्न होता था। उस दौरान राजा-महाराजाओं और महलों की कहानियों से तौबा की गई। उसकी जगह अन्नादुरई और करुणानिधि ने ऐसे विषयों पर फिल्में बनानी शुरू कीं, जिनमें दलित, गरीब, मजदूर और किसानों का दर्द था। एमजीआर इन फिल्मों के हीरो होते थे। वह काली पतलून और लाल कमीज पहनते थे। काली पतलून द्रविड़ नस्ल का प्रतीक होती थी, जबकि लाल कमीज सामाजिक न्याय का। इनकी फिल्मों में बार-बार उगता हुआ लाल सूरज दिखाया जाता, जो उनकी पार्टी का चुनाव चिह्न भी था।
करीब बीस वर्षों तक यह सिलसिला चलता रहा। एक बेहद मजबूत सामाजिक आंदोलन खड़ा हो चुका था। लेकिन सत्तर के दशक में इस कहानी में नाटकीय मोड़ आया। अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते करुणानिधि और एमजीआर अलग हुए। करुणानिधि के पास द्रमुक रहा, जबकि एमजीआर ने अन्नाद्रमुक पार्टी बना ली।
हैरत की बात है कि जिस राज्य में एक मजबूत सामाजिक आंदोलन हुआ और फिल्मों के जरिये जिसका आधार मजबूत हुआ, उसी राज्य में आज चुनावी सियासत भीषण जातिवाद की शिकार है। वहां जाति के आधार पर इस कदर वोट डाले जाते हैं कि उत्तर भारत के राज्य भी शरमा जाएं। मौटे तौर पर उत्तरी तमिलनाडु में करुणानिधि का गठबंधन मजबूत रहता है, जबकि दक्षिण में जयललिता का। पिछले यानी 2006 के विधानसभा चुनाव में द्रमुक गठबंधन को करीब 45 प्रतिशत और पराजित अन्नाद्रमुक गठबंधन को लगभग 40 फीसदी वोट मिले थे। जाहिर है, पिछले चुनाव में करुणानिधि गैरद्रविड़ वोटों का जुगाड़ करने में कामयाब रहे थे। इस बार भी उन्होंने पीएमके को अपने गठबंधन में शामिल किया है। पीएमके अति पिछड़ों की पार्टी है और राज्य के लगभग पांच फीसदी वन्नियार वोटों पर उसका कब्जा है। दूसरी तरफ, जयललिता के साथ कैप्टन विजयकांत गए हैं। वह तमिल फिल्मों के सुपर स्टार हैं। उनकी एमडीएमके नाम की पार्टी है, जिसमें दलित आते हैं। इसके पास दस प्रतिशत वोट है। एक अन्य फिल्मी हस्ती शरद कुमार भी इस बार जयललिता के साथ हैं। उनकी पार्टी एआईएसएमके के पास वोट तो तीन फीसदी के आसपास ही है, लेकिन शरद कुमार की अपील ज्यादा है।
करुणानिधि भी इसमें पीछे नहीं रहना चाहते। उन्होंने एक-एक वोट का जुगाड़ करने के लिए केएमके जैसी छोटी पार्टी से भी हाथ मिलाया है। राज्य में दर्जन भर से ज्यादा अन्य दल भी हैं, जिनके अपने-अपने वोट बैंक हैं।
दरअसल तमिलनाडु में जाति से ज्यादा समुदाय आधारित दल हैं, जो चुनावों को और मुश्किल बना देते हैं। राहुल गांधी ने जाति और समुदाय को तोड़ने के लिए राज्य के कई दौरे किए। युवा कांग्रेस को मजबूत करने के बहाने उन्होंने जनमानस को टटोलने की कोशिश की और खासकर युवा वर्ग से जाति से ऊपर उठकर वोट डालने का आग्रह भी किया। लेकिन उन्हें एहसास हो गया कि जाति और समुदाय की गहरी पैठी जड़ों को तीन-चार दौरों से नहीं उखाड़ा जा सकता। ऐसे में कांग्रेस अकेला चलने के बजाय फिर उसी द्रमुक के साथ चल रही है, जिस पर 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले के आरोप लगे हैं। कांग्रेस की तरह जयललिता भी जानती हैं कि भ्रष्टाचार का मुद्दा हाशिये पर ही रहेगा। चलेगा, तो सिर्फ जाति और समुदाय का जोर। यही वजह है कि जयललिता और करुणानिधि, दोनों ही अपने-अपने गठबंधन में और ज्यादा समुदायों को शामिल करने की होड़ में लगे हैं।
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