Monday, March 14, 2011

पंजाब बड़े आंदोलन के लिए खदबदा रहा


पंजाब सरकार ने विधानसभा में 1 अक्टूबर 2010 को 16 विधेयक पारित करवाए। इनमें दो कानून ऐसे हैं जो संविधान तथा लोकतांत्रिक मूल्यों का सरेआम उल्लंघन हैं। पहला कानून पंजाब प्रिवेंशन ऑफ पब्लिक एवं प्राइवेट प्रापर्टी एक्ट-2010 है। इस कानून में शांत तरीके से इकट्ठे होने व अपनी बात कहने का अधिकार भी खत्म हो जाएगा। दूसरा कानून विशेष सुरक्षा ग्रुप है। इस प्रस्तावित कानून की कुछ धाराएं ऐसी हैं जो इतनी खतरनाक हैं कि अंग्रेजों के रोलेट एक्ट में भी नहीं थीं

पंजाब की जरखेज मिट्टी एक बार फिर किसी नए आंदोलन के लिए तैयार नजर आती है। इसके संकेत लोगों में पैदा हो रही बेचैनी, विभिन्न संगठनों द्वारा एक मंच आ कर लोगों के मुद्दों पर संघर्ष करना तथा ऐसे संघर्षो को रोकने के लिए सरकार के बनाए जा रहे लोकतंत्र विरोधी कानूनों के रूप में दिखाई देने लगे हैं। हरितक्रांति के बाद देश के खुशहाल राज्य के तौर पर जाने जाते पंजाब की स्थिति अब बदल चुकी है। राज्य का भूजल खतरनाक सीमा तक नीचे चला गया है, राज्य के ज्यादातर ब्लाक अति शोषित जोन घोषित हो चुके हैं। मिट्टी की उपजाऊ शक्ति नष्ट हो रही है। आबोहवा में घुल रही जहर के चलते पंजाब कैंसर का घर बनता जा रहा है। कृषि घाटे का धंधा बनने के कारण किसान आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो रहे हैं। मजदूर दिहाड़ी के लिए भटक रहे हैं। खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा तहस-नहस हो गई है। स्वास्थ्य सुविधाएं जैसे पंख लगा कर उड़ गई हों। भगत सिंह जैसे शहीदों की धरती पर नशों की छठी नदी बहने लगी है। इन सब के बीच पंजाब का सामाजिक ताना- बाना भी बिखरता दिखाई देने लगा है। सिख गुरुओं के जाति-पाति खत्म करने व सरबत के भले के सिद्धांत का रंग भी राजनीतिक स्वार्थी हितों के चलते फीका पड़ता दिखाई देने लगा है। वियाना में रविदासीया समुदाय के एक संत की हत्या के बाद हुए टकराव, अब डेरा सच्चा सौदा के प्रेमियों व पंथक संगठनों के समर्थकों के बीच लगातार हो रही झड़पें इसकी कहानी कह रही हैं। लेकिन पंजाब के किसान, मजदूर व अन्य संगठन सक्रिय हो कर एक बार फिर लोगों को संगठित करने में जुटे हुए हैं। भले किसान, मजदूर व अन्य संगठन विभिन्न भागों में बंटे हुए हैं लेकिन समय के दबाव ने इनको एक मंच पर आने को मजबूर कर दिया है। स्थिति की गम्भीरता यह है कि पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना ने पंजाब सरकार के कहने पर केवल बठिंडा व संगरूर दो जिलों का डोर टू डोर सर्वे किया है। इसमें चौंकने वाले तथ्य सामने आए हैं। पांच वर्षो में दोनों जिलों में 2890 किसान व मजदूर संगठनों ने सदस्यों ने आत्महत्या की है। इन परिवारों को राहत के तौर पर एक पैसा भी नहीं दिया गया। अन्य जिलों का भी सर्वेक्षण करवाने का सरकार ने वादा किया था लेकिन इसके लिए पैसा ही नहीं जारी किया गया। 17 मजदूर व किसान संगठन एक गठबंधन के तौर पर आंदोलन कर रहे हैं। ट्रेड यूनियन खास तौर पर आंगनवाड़ी वर्करों की जद्दोजहद ने एक नया मुकाम हासिल किया है। मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के गृह क्षेत्र में प्रदशर्न करते ठेके पर रखे पैरामेडिकल स्टाफ पर जोरदार लाठीचार्ज हुआ जिस में कई लड़कियां भी जख्मी हो गईं। ताकत की राजनीति की इसी मानसिकता के चलते पंजाब सरकार ने विधानसभा में 1 अक्टूबर 2010 को 16 विधेयक पारित करवाए इनमें दो कानून ऐसे हैं जो संविधान तथा लोकतांत्रिक मूल्यों के सरेआम उल्लंघन हैं। पहला कानून पंजाब प्रीवेंशन ऑफ पब्लिक एवं प्राइवेट प्राप्र्टी एक्ट-2010 है। इस कानून में शांत तरीके से इक्ट्ठे होने व अपनी बात कहने का अधिकार भी खत्म हो जाएगा। कानून की धारा 3 में लिखा है कि किसी भी शांतिपूर्ण मार्च, प्रदर्शन व रैली के लिए आर्गेनाइजरों को जिला उपायुक्त से स्वीकृति लेनी पड़ेगी। मंजूरी न मिलने पर सरकार के पास अपील की जा सकेगी। यदि फिर भी मंजूरी नहीं मिली तो भी कोई प्रदशर्न करने पर आर्गेनाइजेर व इसमें शामिल होने वालों को दो वर्ष की सजा व 25 हजार रु पये जुर्माना हो सकता है। यदि इस दौरान कोई अगजनी की घटना घटती है तो सजा तीन वर्ष, विस्फोटक घटना पर 7 वर्ष की सजा व 7-0 हजार रु पये तक जुर्माना हो सकता है। कोई भी अदालत प्रोसिक्यूशन एजेंसी को बताए बिना जमानत नहीं दे पाएगी। यदि मार्च की मंजूरी मिल गई तो जिस पुलिस अधिकारी की ड्यूटी लगेगी, आयोजक उस के पास जा कर मार्च व प्रोसेसन का रूट तय करवाएगा। इस तरह शांतिपूर्ण आंदोलनों को पूरी तरह सिविल व पुलिस प्रशासन के रहमोकरम पर छोड़ दिया जाएगा। दूसरा कानून विशेष सुरक्षा ग्रुप है। जिसके उद्देश्य में लिखा है कि इंटेलिजेंस की रिपोर्टों के अनुसार पंजाब में बड़ी हस्तियों को जानमाल का खतरा है। इसलिए एक विशेष सुरक्षा ग्रुप की जरूरत है। सवाल है कि जब पंजाब को आतंकवाद के दौरान भी ऐसे कानून की जरूरत नहीं पड़ी तो अब ऐसे कानून को क्यों लाया जा रहा है? इस प्रस्तावित कानून की कुछ धाराएं ऐसी हैं जो इतनी खतरनाक हैं कि अंग्रेजों के रोलेट एक्ट में भी नहीं थी। इसमें ‘देशद्रोह’ की जद में लगभग प्रत्येक व्यक्ति आ सकता है। इसकी परिभाषा में लिखा है कि कोई भी गैर कानूनी गतिविधि देशद्रोह माना जाएगा। किसी भी सार्वजनिक जगह पर बीड़ी-सिगरेट पीना गैर कानूनी के साथ साथ अब देशद्रोह भी हो जाएगा। इस के अलावा विशेष ग्रुप के किसी भी अधिकारी व कर्मचारी पर उसकी डिय़ूटी निभाने के दौरान की कार्यवाही के लिए किसी अन्य कानून के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकेगा। इसमें किसी व्यक्ति की हत्या तक भी शामिल है। यह नागरिकों को मारने का खुला लाईसेंस है। इन प्रस्तावित कानूनों के खिलाफ 34 किसान, मजदूर, युवा, छात्र व मुलाजिम संगठनों ने एकजुट होकर जिला स्तर पर धरने दिए। इस दबाव के चलते फिलहाल अधिसूचनाएं तो जारी नहीं हुई लेकिन तलवार फिलहाल लटक रही है। यह तलवार किसी और ने नहीं बल्कि देश में 1975 में लागू किए गए आपातकाल के 19 महीने तक मोर्चा लगा कर जेलें भरने की मिसाल कायम करने वाले शिरोमणिअकाली दल ने लटकाई है।

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