Monday, March 7, 2011

वो भी अकेला छोड़ गए


कुछ तो मजबूरियां रहीं होंगी, यूं कोई बेवफा नहीं होता।’ महज तीन सीटों के नाम पर तमिलनाडु में डीएमके और कांग्रेस के बीच गठबंधन टूटने के किस्से के पीछे एक मशहूर शेर की इसी लाइन की आवाज सुनाई पड़ रही है। तमिलनाडु एक ऐतिहासिक विधानसभा चुनाव के दरवाजे पर खड़ा है जिसमें सत्ता संतुलन के नए आयाम गढ़े जाने की सम्भावना है। पार्टियां अपने गठबंधनों के साथ चुनावी कुश्ती की तमाम तैयारियों के साथ ताल ठोक रही हैं, चुनावी पर्चे दाखिल करने का समय सिर पर है। ऐसे नाजुक समय में अचानक डीएमके सुप्रीमो करुणानिधि गठबंधन टूटने की घोषणा कर देते हैं और इसका ठीकरा भी कांग्रेस पर ही फोड़ देते हैं कि वह साथ रहना ही नहीं चाहती है। लेकिन ऐसे समय जब दोनों पार्टियों के गले के ऊपर से पानी बह रहा हो और जयललिता जैसा ताकतवर प्रतिस्पद्र्धी बाजी पलटने को तैयार बैठा हो, ऐसी बेवफाई कितनी भारी पड़ सकती है इसका अंदाज भी दोनों को है। शायद इसीलिए गठबंधन टूटने की घोषणा तो हुई है, साथ छोड़ने की नहीं। ऐसी ही घोषणा करुणानिधि ने यूपीए सरकार की दूसरी पारी का खेल शुरू होने के पहले की थी और वह ए. राजा को न केवल केंद्र में मंत्री बल्कि पसंदीदा टेलीकॉम मंत्रालय दिलाने में सफल हो गए थे। अब राजा जेल में हैं, टेलीकॉम विभाग बदनामी की सुर्खियां बटोर रहा है और सीबीआई सूंघते-सूंघते करुणानिधि की सांसद बेटी कनिमोझी के दरवाजे तक पहुंच गई है। इस मामले में करुणानिधि न तो शिकायत करने की हालत में हैं और न कांग्रेस पर दबाव बना पाने की हालत में। लेकिन, कांग्रेस इसका फायदा उठा कर उन्हें ‘द्रविड़ नायक’ के सिंहासन से लुढ़का दे, इसके लिए भी वह तैयार नहीं है। कांग्रेस ने मौके का फायदा उठाकर एक दर्जन सीटें अधिक झटक लीं तो करुणानिधि खून का घूंट पीकर बर्दाश्त कर गए। अब कांग्रेस के महत्वाकांक्षी तमिल नेता जी.के. वासन और पी. चिदम्बरम अपने कोटे में वृद्धि के साथ ग्रामीण इलाकों में सेंध मारना चाहते हैं जो डीएमके की राजनीतिक बुनियाद बनाती है। राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस का यूथ ब्रिगेड भी सत्ता संतुलन में भागीदारी के लिए कसमसा रहा है। सरकारी स्कीमों की सफलता ने ग्रामीण इलाकों को प्रभावित किया है और वहां तक टू-जी स्पेक्ट्रम की बास भी नहीं पहुंची है। यही इलाका है जो करुणानिधि और उनके परिवार का राजनीतिक भविष्य तय करेगा। इसलिए करुणानिधि के पास अपना आखिरी हथियार चलाने के अलावा कोई चारा भी नहीं बचा था। एक झटके में उन्होंने कांग्रेस को तमिलनाडु में अकेला कर दिया है। जयललिता का गठबंधन पका-पकाया और तैयार है। आज की तारीख में वह कांग्रेस को कुछ नहीं दे सकतीं। उधर, बजट सत्र के बीचों-बीच फंसी कांग्रेस के लिए अब न तो खाते और न उगलते बन रहा है। करुणानिधि का झटका उसे बंगाल में भी ममता दी के आगे बेबस कर देगा, जहां सीट बंटवारे पर घमासान मचा हुआ है। ऐसे में कांग्रेस इस गठबंधन का टूटना बर्दाश्त करेगी, यह देखने की बात है

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