केंद्रीय मंत्री और साथ ही एक राजनेता के रूप में पी. चिदंबरम का यह बयान सर्वथा दुर्भाग्यपूर्ण, अरुचिकर और आपत्तिजनक है कि यदि देश में केवल दक्षिणी और पश्चिमी हिस्से होते तो भारत कहीं ज्यादा तरक्की करता। किसी भी राजनेता से ऐसे बयान की अपेक्षा नहीं की जा सकती और कम से कम उस नेता से तो बिलकुल भी नहीं जो गृहमंत्री के पहले लंबे समय तक देश का वित्तमंत्री रहा हो। आखिर उन्होंने यह सोच भी कैसे लिया कि यदि उत्तर भारत न होता तो बेहतर होता? यदि चिदंबरम ने वित्तमंत्री के रूप में देश के हर हिस्से के समग्र विकास की कोशिश की होती तो शायद उन्हें ऐसे किसी निष्कर्ष पर पहुंचने की जरूरत ही नहीं पड़ती कि उत्तर भारत देश के विकास में बाधक है। यदि वह उत्तर भारत के पिछड़ेपन से चिंतित भी थे तो चिंता प्रकट करने का यह कौन सा तरीका हुआ? अब यदि केंद्रीय मंत्री स्तर के नेता क्षेत्र विशेष के प्रति दुराव प्रकट करने वाली भाषा का इस्तेमाल करेंगे तो फिर वे देश को कोई सही दिशा कैसे दे सकेंगे? नि:संदेह उत्तर भारत के कथित पिछड़ेपन के लिए वहां के सत्तारूढ़ नेताओं को भी कठघरे में खड़ा किया जाएगा, लेकिन यदि उत्तरीराज्य अपेक्षित प्रगति नहीं कर पाए हैं तो इसके लिए केंद्र भी बराबर का दोषी है। जिस तरह यह किसी से छिपा नहीं कि राज्यों के विकास में केंद्र सरकार की अहम भूमिका होती है उसी तरह यह भी जग जाहिर है कि कई बार संकीर्ण राजनीतिक कारणों से राज्य विशेष या तो केंद्र की विशेष कृपा पाते हैं या फिर उसकी उपेक्षा का शिकार बनते हैं। अगर केंद्र सरकार सभी राज्यों के समान विकास के लिए प्रयासरत है तो फिर राज्य सरकारें भेदभाव की शिकायत क्यों करती रहती हैं? पिछले दिनों तो बिहार और मध्य प्रदेश के सांसदों को संसद परिसर में धरना देने के लिए विवश होना पड़ा। इसके पहले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने जब केंद्र के असहयोग के खिलाफ धरने पर बैठने की ठानी तब उनकी समस्या सुनी गई। देश इससे भी परिचित है कि कई बार राज्यों को रियायतें-अनुदान देने में किस तरह संकीर्ण राजनीतिक कारणों से देर की जाती है? यदि चिदंबरम यह सोच रहे हैं कि विकिलीक्स की भर्त्सना करने से उनका काम आसान हो जाएगा और वह सही साबित हो जाएंगे और यह वेबसाइट गलत तो ऐसा बिल्कुल भी होने वाला नहीं है। चिदंबरम की मानें तो विकिलीक्स के खुलासों को तनिक भी महत्व नहीं दिया जाना चाहिए। यदि वास्तव में ऐसा है तो कांग्रेस विकिलीक्स के जरिए सामने आए भाजपा नेता अरुण जेटली के इस बयान को क्यों तूल दे रही है जिसके तहत उन्होंने अमेरिकी राजनयिक से कथित तौर पर यह कहा था कि हिंदू राष्ट्रवाद उनकी पार्टी के लिए महज एक अवसरवादी मुद्दा है? जो भी हो, विकिलीक्स के जरिए विभिन्न नेताओं के विचार जिस तरह सामने आए हैं उससे स्पष्ट हो रहा है कि राजनेता किस तरह दोहरा आचरण प्रदर्शित करते हैं। आश्चर्य नहीं कि उनकी कथनी और करनी में अंतर बढ़ता जा रहा है और इसी कारण देश की समस्याएं भी बढ़ती जा रही हैं। विकिलीक्स के खुलासे इस आम धारणा को मजबूत करने वाले हैं कि हमारे राजनेता किस तरह सार्वजनिक रूप से कुछ कहते हैं और गोपनीय रूप से कुछ और।
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