आम बजट के कुछ हिस्सों की चुनावी रंगत और समीकरणों की देखभाल से विधानसभा चुनावों के नजदीक होने का कुछ-कुछ अंदाजा था। लेकिन बजट सत्र के बीच ही-असम, केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी और पश्चिम बंगाल-के चुनावों की घोषणा हो जाएगी, इतना भी अपेक्षित नहीं था। बजटीय प्रावधानों से उन-उन राज्यों में बने सकारात्मक माहौल का फायदा सत्ताधारी गठबंधन दलों को दिलाने में चुनावी घोषणा अनायास उन पर सहयोगी हो गई है। उन सुविधाओं की घोषणाएं जन स्मृति में एकदम ताजा है। यह एक सुविधाजनक स्थिति है। हालांकि केंद्र और कुछ राज्य स्तर पर बने यूपीए गठबंधन के लिए दो बड़े मुद्दे असुविधाजनक भी हो सकते हैं। भ्रष्टाचार और महंगाई। आए दिन भ्रष्ट तरीके से अकूत धन बनाने के मामले उजागर हो रहे हैं। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर सरकार को झख मार कर जेपीसी का गठन करना पड़ा है। कॉमनवेल्थ गेम्स पर जांच चल रही है। महंगाई और काला धन के खिलाफ सरकार गहरे दबाव में है। इन सबसे जनता में संदेश गया है कि सरकार भ्रष्ट है, भ्रष्टाचारियों की संरक्षक और महंगाई रोकने की उसकी कूव्वत नहीं है। इस रिपोर्ट कार्ड की पृष्ठभूमि में होने वाले चुनाव ऐतिहासिक तथा राजनीति का ढर्रा बदलने वाले हो सकते हैं। यह तय है कि उन पांच राज्यों में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, माकपा समेत वाम दल और द्रमुक-अन्नाद्रुमक के बीच लड़ाई है। भाजपा का जनाधार लेदेक र असम में ही है। इनमें पश्चिम बंगाल के चुनाव पर पूरे देश की नजर है। 2009 के आम चुनाव के थोड़ा पहले और बाद से जिस तरह ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने निकाय चुनावों में बढ़त जारी रखा है, उसे देखते हुए लोग बंगाल से वामदल की ऐतिहासिक विदाई मान रहे हैं। न केवल लोकप्रिय विश्वासों में बल्कि खुद वामपंथी नेताओं की एकांत स्वीकृति है कि ममता को कोई रोकने वाला नहीं है। 1977 से सूबे पर काबिज वामदल सत्ता के वायरस से संक्रमित हो गए हैं और उन्हें फिर से मैदान में आकर संघर्ष से खोई हुई धार और साख अर्जित करनी है। यह माकपा के शीर्ष नेता का ही नजरिया है। सिंगुर-नंदीग्राम की सख्ती, माओवाद और बेलगाम कैडर ने जनता में बदलाव की अकुलाहट पैदा की है। वे बेदाग कही जाने वाली ममता को एक मौका देने पर लगभग सहमत हैं। ऐसा हुआ, जिसकी सम्भावना ज्यादा है, तो वह वामदल का सूपड़ा साफ करने के साथ सहयोगी कांग्रेस को भी तीन दशक बाद सत्ता का स्वाद चखाएंगी। बंगाल में ताकतवर बैठी ममता केंद्रीय समीकरणों में ज्यादा मर्जी चलाना चाहेगी। मतलब, यहां से कई आयाम बदलेंगे। केरल में परिवर्तन चक्र के हिसाब से अबकी कांग्रेस नेतृत्व की बारी है। वैसे भी मुख्यमंत्री अच्युतानंदन परिसंपत्ति और दलगत विवाद के चलते वामदल के लिए खेवनहार नहीं रह गए हैं। तमिलनाडु ऐसा राज्य है जहां परिदृश्य परिवर्तनकारी लगता है। यहां कांग्रेस का द्रमुक से घाटे का गठबंधन जारी है। राज्य में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा है। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में गिरफ्तार मंत्री राजा द्रमुक के हैं। जनता में उनके व मुख्यमंत्री करुणानिधि के कुनबे के आचरण के प्रति रोष है। उपमुख्यमंत्री स्टालिन के जन्मदिन पर भेजे गए उपहार तक लोगों ने यह मान कर लौटा दिए कि इसमें वही काली कमाई लगी है। यह बहुत अर्थपूर्ण संकेत है। दूसरी बात, करुणानिधि के बेटों में बागडोर को लेकर बवाल है, उसे देखते हुए यह ज्यादा सम्भव है कि जनता अन्नाद्रमुक की जयललिता को चुनना पसंद करे। कांग्रेस असम में हैट्रिक बना सकती है, जहां उल्फा से शांति वार्ता के लाभ उसे मिलने वाले हैं।
Thursday, March 3, 2011
दांव पर वाम
आम बजट के कुछ हिस्सों की चुनावी रंगत और समीकरणों की देखभाल से विधानसभा चुनावों के नजदीक होने का कुछ-कुछ अंदाजा था। लेकिन बजट सत्र के बीच ही-असम, केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी और पश्चिम बंगाल-के चुनावों की घोषणा हो जाएगी, इतना भी अपेक्षित नहीं था। बजटीय प्रावधानों से उन-उन राज्यों में बने सकारात्मक माहौल का फायदा सत्ताधारी गठबंधन दलों को दिलाने में चुनावी घोषणा अनायास उन पर सहयोगी हो गई है। उन सुविधाओं की घोषणाएं जन स्मृति में एकदम ताजा है। यह एक सुविधाजनक स्थिति है। हालांकि केंद्र और कुछ राज्य स्तर पर बने यूपीए गठबंधन के लिए दो बड़े मुद्दे असुविधाजनक भी हो सकते हैं। भ्रष्टाचार और महंगाई। आए दिन भ्रष्ट तरीके से अकूत धन बनाने के मामले उजागर हो रहे हैं। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर सरकार को झख मार कर जेपीसी का गठन करना पड़ा है। कॉमनवेल्थ गेम्स पर जांच चल रही है। महंगाई और काला धन के खिलाफ सरकार गहरे दबाव में है। इन सबसे जनता में संदेश गया है कि सरकार भ्रष्ट है, भ्रष्टाचारियों की संरक्षक और महंगाई रोकने की उसकी कूव्वत नहीं है। इस रिपोर्ट कार्ड की पृष्ठभूमि में होने वाले चुनाव ऐतिहासिक तथा राजनीति का ढर्रा बदलने वाले हो सकते हैं। यह तय है कि उन पांच राज्यों में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, माकपा समेत वाम दल और द्रमुक-अन्नाद्रुमक के बीच लड़ाई है। भाजपा का जनाधार लेदेक र असम में ही है। इनमें पश्चिम बंगाल के चुनाव पर पूरे देश की नजर है। 2009 के आम चुनाव के थोड़ा पहले और बाद से जिस तरह ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने निकाय चुनावों में बढ़त जारी रखा है, उसे देखते हुए लोग बंगाल से वामदल की ऐतिहासिक विदाई मान रहे हैं। न केवल लोकप्रिय विश्वासों में बल्कि खुद वामपंथी नेताओं की एकांत स्वीकृति है कि ममता को कोई रोकने वाला नहीं है। 1977 से सूबे पर काबिज वामदल सत्ता के वायरस से संक्रमित हो गए हैं और उन्हें फिर से मैदान में आकर संघर्ष से खोई हुई धार और साख अर्जित करनी है। यह माकपा के शीर्ष नेता का ही नजरिया है। सिंगुर-नंदीग्राम की सख्ती, माओवाद और बेलगाम कैडर ने जनता में बदलाव की अकुलाहट पैदा की है। वे बेदाग कही जाने वाली ममता को एक मौका देने पर लगभग सहमत हैं। ऐसा हुआ, जिसकी सम्भावना ज्यादा है, तो वह वामदल का सूपड़ा साफ करने के साथ सहयोगी कांग्रेस को भी तीन दशक बाद सत्ता का स्वाद चखाएंगी। बंगाल में ताकतवर बैठी ममता केंद्रीय समीकरणों में ज्यादा मर्जी चलाना चाहेगी। मतलब, यहां से कई आयाम बदलेंगे। केरल में परिवर्तन चक्र के हिसाब से अबकी कांग्रेस नेतृत्व की बारी है। वैसे भी मुख्यमंत्री अच्युतानंदन परिसंपत्ति और दलगत विवाद के चलते वामदल के लिए खेवनहार नहीं रह गए हैं। तमिलनाडु ऐसा राज्य है जहां परिदृश्य परिवर्तनकारी लगता है। यहां कांग्रेस का द्रमुक से घाटे का गठबंधन जारी है। राज्य में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा है। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में गिरफ्तार मंत्री राजा द्रमुक के हैं। जनता में उनके व मुख्यमंत्री करुणानिधि के कुनबे के आचरण के प्रति रोष है। उपमुख्यमंत्री स्टालिन के जन्मदिन पर भेजे गए उपहार तक लोगों ने यह मान कर लौटा दिए कि इसमें वही काली कमाई लगी है। यह बहुत अर्थपूर्ण संकेत है। दूसरी बात, करुणानिधि के बेटों में बागडोर को लेकर बवाल है, उसे देखते हुए यह ज्यादा सम्भव है कि जनता अन्नाद्रमुक की जयललिता को चुनना पसंद करे। कांग्रेस असम में हैट्रिक बना सकती है, जहां उल्फा से शांति वार्ता के लाभ उसे मिलने वाले हैं।
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